दिलेरखाँ दाऊदज़ाई शाहजहाँ के दरबार का एक सरदार था। वीरता के सम्मान में इसे दिलेर खाँ की उपाधि मिली थी। इसका वास्तविक नाम जलाल खाँ था। बादशाह ने इसे कन्नौज और काल्पी सरकारों का फौजदार बनाया। इसके पूर्व ये स्थान इसके बड़े भाई बहादुर खाँ के पास जागीर के रूप में थे। मुअज़्ज़म खाँ भी मीरजुमला के सहायक के रूप में यह दक्षिण भी भेजा गया। कल्याण दुर्ग के घेरे के समय इसे वीरता दिखाने का अवसर मिला जिससे इसपर शाहजहाँ की विशेष कृपा दृष्टि हो गई। विद्रोही मुहम्मद शुजाअ के दमन के लिए यह गया और सफल हुआ। मिर्जा राजा जयसिंह की सम्मति से यह औरंगजेब की सेवा में प्रस्तुत हो गया। औरंगजेब ने इसे शेखमीर के साथ दाराशुकोह का पीछा करने के लिए भेजा। अजमेर में दोनों का टकराव हो गया और दारा को भागना पड़ा। सन् १६५९ में इसने बड़ी उत्कट वीरता से शुजाअ को बंगाल से निकाल दिया। आसाम में शामलगढ़ दुर्ग विजय करने में भी दिलेर खाँ सफल हुआ।

दिलेर खाँ मिर्जा राजा जयसिंह के साथ शिवजी को दमन करने को भेजा गया। शिवाजी ने इससे संधि कर ली। इसके बाद इसने बीजापुर में लूट पाट मचायी। बगलाना का साल्हेर दुर्ग शत्रुओं से प्राप्त करने में यह असफल रहा। कुछ दिन मुल्तान का सूबेदार रहा, फिर यह दक्षिण भेजा गया। अपने दक्षिण वास काल में मंगलसर्फ नामक दुर्ग शिवाजी से इसने ले लिया। औरंगजेब ने इसे बीजापुर पर आक्रमण करने के लिए नियुक्त किया था, किंतु इसी बीच १६८३ में इसकी मृत्यु हो गई।