दाहर (दाहिर) सन् ६७९ में सिंध का राजा बना। सिंध के बंदरगाह देबाल के निकट समुद्री डाकुओं ने अरब के एक जहाज को लूट लिया। इराक के शासक हज्जाज ने इसकी शिकायत की। दाहिर ने उत्तर दिया कि समुद्री डाकू मेरा दबाव नहीं मानते। जबाव कुछ संतोषजनक न था। रुष्ट होकर खलीफ़ा ने सिंध और हिंद के विरुद्ध जिहाद की घोषणा की। स्थल तथा जल, दोनों रास्तों से अरब सेना देबाल पहुँची। मुहम्मद कासिम उसका सेनापति था। मुहम्मद कासिम ने देबाल ले लिया और हर एक आदमी को तलवार के घाट उतार दिया। नेरून दुर्ग आसानी से अरबों के हाथ लगा। उसके बौद्ध अधिकारी ने मुसलमानों को खाने पीने का सामान और धन भी दिया। बौद्ध आबादी की देशभक्तिहीनता के कारण शिविस्तान भी अरबों के अधिकार में आ गया। दाहिर अब सचेत हुआ। उसके दृढ़ निश्चय के सामने सिंध नदी को पार करना आसान न था। किंतु सिंध के मध्यवर्ती द्वीप का स्वामी शत्रुओं से मिल गया। कई जाटों और ठाकुरों ने भी उनकी मदद की, और मुहम्मद कासिम नदी के इस ओर पहुँच गया। २०जून, सन् ७१२ ई. के दिन हाथी पर चढ़कर रावर नाम के स्थान पर दाहर ने अरबों से युद्ध किया। दाहर का शौर्य अवर्णनीय था; आहत होकर हाथी से गिरने पर भी उसने युद्ध चालू रखा किंतु दाहर के वीरगति को प्राप्त होते ही हिंदू सेना भाग चली।

सिंध की विजय का इसके बाद का इतिहास फूट, धोखेबाजी, और किसी अंश में विफल शौर्य का भी है। दाहर वीर और साहसी था, किंतु राजनीतिज्ञ नहीं। चर्च की जाटविरोधी नीति और बौद्धों में अत्यधिक विश्वास ने सिंध को अरबों के हाथ सौप दिया। दाहर ने शौर्य में अधिक विश्वास रखा और सामदामादि उपायों में कम; इसी कारण वह कूटनीतिज्ञ मुहम्मद कासिम से हार गया।

(चर्चनामा : ईलियट ऐंड डाउसन, खंड १, पृ. १५२-१७०; होडिवाला, स्टडीज़ इन इंडो मुस्लिम हिस्ट्री, पृ. ८७-९३)। (दशरथ शर्मा)