दारा शुकोह मुमताज महल के गर्भ से उत्पन्न मुगल सम्राट् शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र जो २० मार्च, १६१५ को उत्पन्न हुआ। १६३३ में युवराज बनाया गया और उसे उच्च मंसब प्रदान किया गया। १६४५ में इलाहाबाद, १६४७ में लाहौर और १६४९ में वह गुजरात का शासक (गवर्नर) बना। १६५३ में कंधार में हुई पराजय से इसकी प्रतिष्ठा को धक्का पहुँचा। फिर भी शाहजहाँ इसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में देखता था, जो दारा के अन्य भाइयों को स्वीकार नहीं था। शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर औरंगजेब और मुराद ने दारा के धर्मद्रोही होने का नारा लगाया। युद्ध हुआ। दारा दो बार, पहले आगरे के निकट सामूगढ़ में (जून, १६५८) फिर अजमेर के निकट देवराई में (मार्च, १६५९), पराजित हुआ। अंत में १० सितंबर, १६५९ को दिल्ली में औरंगजेब ने उसकी हत्या करवा दी। दारा का बड़ा पुत्र औरंगजेब की क्रूरता का भाजन बना और छोटा पुत्र ग्वालियर में कैद कर दिया गया।

सूफीवाद और तौहीद के जिज्ञासु दारा ने सभी हिंदू और मुसलमान संतों से सदैव संपर्क रखा। ऐसे कई चित्र उपलब्ध हैं जिनमें दारा को हिंदू संन्यासियों और मुसलमान संतों के संपर्क में दिखाया गया है। वह प्रतिभाशाली लेखक भी था। 'सफीनात अल औलिया' और 'सकीनात अल औलिया' उसकी सूफी संतों के जीवनचरित्र पर लिखी हुई पुस्तकें हैं। 'रिसाला ए हकनुमा' (१६४६) और 'तारीकात ए हकीकत' में सूफीवाद का दार्शनिक विवेचन है। 'अक्सीर ए आजम नामक उसके कवितासंग्रह से उसकी सर्वेश्वरवादी प्रवृत्ति का बोध होता है। उसके अतिरिक्त 'हसनात अल आरिफीन' और 'मुकालम ए बाबालाल ओ दाराशिकोह' में धर्म और वैराग्य का विवेचन हुआ है। 'मजमा अल बहरेन' में वेदांत और सूफीवाद के शास्त्रीय शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत है। ५२ उपनिषदों का अनुवाद उसने 'सीर-ए' अकबर में किया है।

हिंदू दर्शन और पुराणशास्त्र से उसके संपर्क का परिचय उसकी अनेक कृतियों से मिलता है। उसके विचार ईश्वर का श्विक पक्ष, द्रव्य में आत्मा का अवतरण और निर्माण तथा संहार का चक्र जैसे सिद्धांतों के निकट परिलक्षित होते हैं। दारा का विश्वास था कि वेदांत और इस्लाम में सत्यान्वेषण के सबंध में शाब्दिक के अतिरिक्त और काई अंतर नहीं है। दारा कृत उपनिषदों का अनुवाद दो विश्वासपथों - इस्लाम और वेदांत - के एकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान है।

राजनीतिक परिस्थितियों वश दारा में नास्तिकवाद की ओर रुचि हुई, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। बाल्यकाल से ही उसमें अध्यात्म के प्रति लगाव था। यद्यपि कुछ कट्टर मुसलमान उसे धर्मद्रोही मानते थे, तथापि दारा ने इस्लाम की मुख्य भूमि को नहीं छोड़ा। उसे धर्मद्रोही करार दिए जाने का मुख्य कारण उसकी सर्व-धर्म-सम्मिश्रण की प्रवृत्ति थी जिससे इस्लाम की स्थिति के क्षीण होने का भय था।

जागतिक सहिष्णुता और भारत में हिंदू मुस्लिम एकता में उसने अटूट विश्वास प्रकट किय। इन तत्वों को उसने सदेव धार्मिक प्रपंचों के ऊपर माना।