दारा (डेरियस) प्रथम (ई.पू. ५२२ से ४८६ ई.पू.) ईसवी पूर्व ५२१ में कांबीसीस (Cambyses) के बाद हिस्टास्पीस (Hystaspeas) का लड़का डेरियस (Darius) या दारा परशिया की गद्दी पर बैठा। उसे प्रारंभ में जबरदस्त विद्रोहियों का सामना करना पड़ा। विद्रोहियों में सबसे प्रबल गौमता (Gaumata) नाम का व्यक्ति था, जिसने ईरान के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। लेकिन दारा के सहायकों ने शीघ्र ही गौमता को मारकर खत्म कर दिया (ई.पू. ५२१)। परशिया के अनेक प्रांतों ने भी दारा के खिलाफ विद्रोह कर स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया। एलाम, बैबीलोनिया, मीडिया, आर्मीनिया, लीडिया, एवं मिस्र तथा परशिया तक में विद्रोह हुए। लेकिन साहसी और प्रतिभाशाली दारा ने समस्त विद्रोहियों को कुचलकर पारसीक साम्राज्य को पुन: सुदृढ़ कर दिया। लगभग तीन वर्ष उसे विद्रोह दबाने में लगे (ई.पू. ५१८); इसके बाद परशिया के विस्तृत साम्राज्य में शांति स्थापित हो गई।
दारा के साम्राज्य में २० प्रांत थे। प्रांत का शासक सटरैप (Satrap) या क्षत्रप कहलाता था। दारा प्रथम की गणना महान् विजेताओं में की जाती है। उसने भारत पर भी चढ़ाई की थी और पंजाब तथा सिंध का बहुत सा भाग अपने अधिकार में कर लिया था (ई.पू. ५१२)। अत: उसके २० प्रांतों में पंजाब और सिंध का क्षेत्र भी शामिल था। भारतीय प्रांत से ईरान को राजस्व के रूप में अमित सोना मिलता रहा। दारा के यूनानी सेनापति स्काईलक्स (Scylax) ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान के तटों का पता लगाया था। उसकी मुख्य राजधानियाँ सूसा, पर्सीपौलिस, इकबतना (हमदान) और बैबीलोन थीं। वह ज़रयुस्त्री धर्म का माननेवाला था।
दूरस्थ प्रांतों से संबंध बनाए रखने के लिए साम्राज्य भर में सुदंर विस्तृत सड़कें बनी हुई थीं। नील नदी से लेकर लाल समुद्र तक एक नहर भी बनी हुई थी। दारा के विरुद्ध एशिया माइनर के आयोनियन यूनानियों ने विद्रोह किय। लेकिन यह विद्रोह दबा दिया गया। विद्रोह के केंद्र माइलेतस (Miletus) नगर पर कब्जा करने के बाद वहाँ के समस्त पुरुषों को ईरानियों ने कत्ल कर दिया और स्त्रियों तथा बच्चों को बंदी बनाकर ले गए (४९९ से ४९४ ई.पू.)।
एशिया माइनर के यूनानियों को एथेंस के यूनानियों ने विद्रोह के लिय भड़काया था। अत: ई.पू. ४९० में, दारा ने एथेंस को ध्वस्त करने के लिए एक विशाल सेना लेकर यूनान पर चढ़ाई कर दी। लेकिन इस आक्रमण में दारा को सफलता नहीं मिली और माराथॉन के युद्ध में (ई.पू. ४९०) पराजित होकर ईरानियों को वापस लौट जाना पड़ा। दारा माराथॉन की हार को नहीं भूला; और बदला लेने के लिए वह फिर जोरदार तैयारी में लग गया। लेकिन तैयारी के बीच ही ई.पू. ४८५ में उसकी मृत्यु हो गई।
दारा द्वितीय (ई.पू. ४२४-४०४) ई.पू. ४२४ में पारसी सम्राट् जर्क्रसीस द्वितीय को उसके भाई सॉगडियानस (Sogdianus) ने मार डाला। लेकिन सौगडियानस भी अपने भाई ओकस (Ochus) द्वारा मार डाला गया। ओकस डेरियस द्वितीय या दारा द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा। उसे डेरियस नोथस भी कहते हैं। नोथस (Nothus) का अर्थ 'वर्णसंकर' है। उसकी माता रखेल थी। डेरियस द्वितीय अयोग्य और निकम्मा शासक हुआ। उसके समय से ईरान की सामरिक शक्ति क्षीण होने लगी और पारसीक दरबार का प्रभाव और शान घटती चली गई।
दारा तृतीय (ई.पू. ३३६-३३० ई.पू.) दारा तृतीय महान् हखामजी (Achaemenian) राजवंश का अंतिम प्रसिद्ध राजा हुआ। वह बहादुर और उदार प्रकृति का सुयोग्य व्यक्ति था। लेकिन उसे शांति से राज्य करने और अपनी शासकीय योग्यता दिखाने का अवसर न मिल सका। उसके दुर्भाग्य से मैसीडोनिया और यूनान की राजशक्ति, सिकंदर के नेतृत्व में बहुत प्रबल हो चली थी। फलत: दारा तृतीय पारसी साम्राज्य के समस्त साधनों और शक्तियों को बटोरकर भी सिकंदर को आक्रमणों से अपने साम्राज्य को बचाने में समर्थ न हो सका। पारसीकों को अद्भुत यूरोपीय विजेता अलेक्जंडर ने ई.पू. ३३४ में ग्रानिकस (Granicus) के युद्ध में पराजित किया। दूसरे वर्ष ई.पू. ३३३ में इस्सस (Issus) के युद्ध में उसने दारा को बुरी तरह हराकर भागने पर विवश किया। ईरानियों की राजधानी पर्सीपोलिस जला दी गई (३३० ई.पू.)। इस पराजय ने दारा की शक्ति का तोड़कर पारसीक साम्राज्य की जड़ों को पूरी तरह हिला दिया। दारा ने अपने साम्राज्य को बचाने के लिए सिकंदर से फिर एक विशाल सेना लेकर आरवेला के वास गॉगमेला में (ई.पू. ३३१) युद्ध किया। इस बार भी वह बुरी तरह पराजित हुआ और उसे भाग जाना पड़ा। भगोड़े दारा को अंत में बैक्ट्रिया के क्षत्रप बेसुस (Bessus) ने मरवा डाला। महान् पारसीक राजवंश के अंतिम महान् राजा का यह दु:खद अंत था। (भगवतीप्रसाद पांथरी)