दानपत्र दानपत्र एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को किए गए संपत्ति के निर्मूल्य हस्तांतरण का लेख है। जो व्यक्ति संपत्ति का हस्तांतरण करता है उसे उपहार देनेवाला (दाता) और जो हस्तगत करता है उसे उपहार प्राप्त करनेवाला (आदाता) कहते हैं। एक व्यक्ति अपनी संपत्ति का दूसरे को अपने जीवनकाल में विधिसम्मत रूप से दान कर सकता है और यह व्यवस्था जीवित दशा में किया गया दान कहलाती है। किंतु यदि कोई दानपत्र दाता की मृत्यु के बाद प्रवर्तनीय (लागू होने योग्य) हो तो उसे 'मृत्युहेतुक' (्थ्रदृद्धद्यत्द्म ड़aद्वद्मa) दानपत्र कहते हैं। इस अवरोक्त का सामान्य उदाहरण मृत्यु-पत्र-लेख (्ध्रत्थ्थ्) या रिक्थ (थ्ड्ढढ़aड़न्र्) है, जिसमें संपत्ति या उत्तराधिकार की विधिविहित व्यवस्था की जाती है। वस्तुत: संपत्ति के जीवनकालिक हस्तांतरण को ही कानून की संपति में दान और तत्संबंधी लेख को दानपत्र कहा जाता है एवं मृत्यूपरांत प्राप्त होनेवाला दान या उपहार उत्तराधिकार का ही एक प्रकार समझा जाता है।

हस्तांतरित की जा सकनेवाली वर्तमान संपत्ति का ही दान किया जा सकता है। अत: उस संपत्ति का दानपत्र नहीं हो सकता जो भविष्य में मिलनेवाली हो। हस्तांतरित की जा सकनेवाली कोई भी संपत्ति, चाहे वह चल हो अथवा अचल, मूर्त या अमूर्त, वास्तविक या वैयक्तिक, भौतिक या अभौतिक न्यायसंगत दानपत्र का विषय हो सकती है। हिंदू विधि के अंतर्गत स्वार्जित पृथक् संपत्ति का सदैव दानपत्र हो सकता है। दायभाग विधि के अंतर्गत पैतृक संपत्ति भी दानपत्र के द्वारा हस्तांतरित की जा सकती है। मिताक्षरा विधि के अंतर्गत सम्मिलित कुटुंब की संपत्ति का तभी दानपत्र हो सकता है जब दान करनेवाला व्यक्ति कुटुंब का एकमात्र पश्चाज्जीवी रहता है। हिंदू स्त्री द्वारा स्त्रीधन का भी दानपत्र किया जा सकता है। अविभाज्य संपत्ति, भावी उत्तराधिकार विषयक हित, मुकदमे द्वारा मिलनेवाला स्वत्व, न्यायत: बंधक की संपत्ति की मुक्ति का अधिकार, जीवन-बीमा-पत्र भी ऐसी संपत्तियाँ हैं जो विधि के अंतर्गत दानपत्र के विषय हो सकती हैं।

मुस्लिम विधि के अंतर्गत वे विभिन्न संपत्तियाँ जिनपर स्वत्व प्रकट हो सके, दानपत्र के विषय हो सकती हैं। परंतु यहाँ संपत्ति के दानपत्र (ढ़त्ढद्य दृढ थ्दृद्धद्रद्वद्म) तथा संपत्ति के लाभांश के दानपत्र के बीच सूक्ष्म अंतर (भेद) स्थापित हो सकता है। मुस्लिम वैयक्तिक विधि के अंतर्गत संपत्ति के सभी प्रकार के तात्कालिक एवं शर्तरहित ऐच्छिक हस्तांतरण दानपत्र हैं। संपत्ति का बिना मूल्य लिए हस्तांतरण एक तरह का अनुज्ञापत्र प्रदान करना मात्र है।

मुस्लिम विधि के अंतर्गत किसी वस्तु के, जिसका विभाजन हो सकता हे, एक भाग का हस्तांतरण न्यायसंगत नहीं है जब तक वह भाग अर्पण करनेवाले व्यक्ति की संपत्ति से पृथक् तथा विभाजित न हो जाए। पर अविभाज्य वस्तु का दान न्यायसंगत है, यदि उसके किसी एक भाग का दानपत्र हो, उदाहरणार्थ एक भवन के दो भागों की उभयसामान्य सीढ़ी, यदि उस भवन के एक भाग का ही दानपत्र हुआ है। दानपत्र हस्तांतरण तो है पर बिना मूल्य का। यह उस ठेके के अनुबंधपत्र से भिन्न है जिसमें पारितोषिक, व्यापारप्रबंध का मुख्य अंश होता है।

विक्रय के प्रतिज्ञापत्र में विक्रेता क्रेता के पक्ष में रुपया प्राप्त करने के उद्देश्य से, जिसे मूल्य कहते हैं, विक्रयवस्तु का हस्तांतरण करता है या हस्तांतरण करना स्वीकार करता है। जब मूल्य के स्थान पर कोई और वस्तु इसके परिवर्तन में प्रदान की जाती है तो इस कार्यसंपादन (व्यापारप्रबंध) को समान वस्तु के मूल्य की वस्तु का विनिमय कहते है जिसमें एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु दी जाती है। लेकिन दानपत्र में न तो दी हुई वस्तु का मूल्य लिया जाता है और न उसके परिवर्तन में कोई दूसरी वस्तु प्रदान की जाती है जिसका वही मूल्य हो जो उपहार पानेवाले व्यक्ति को दी गई वस्तु का है। उपहार देनेवाले व्यक्ति को उस वस्तु की कीमत, जिसका उसने दानपत्र किया है, दिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अनुबंध संबंधी कानून की भाषा में लेनदेन का यह कार्य उभय पक्ष के मध्य, जो एक दूसरे के सन्निकट होते हैं, विद्यमान स्वाभाविक प्रेम और स्नेह के कारण संपन्न होता है।

शुद्ध न्यायिक अर्थ में दानपत्र एकपक्षीय न्यायिक कार्य है जिसमें केवल एक पक्ष की अर्थात् दान करनेवाले व्यक्ति की इच्छा संपादित होती है। इसके विपरीत अनुबंध उभयपक्षीय कार्य है जो दो या अधिक व्यक्तियों के बीच हुए समझौते का परिणाम होता है। इस प्रकार दानपत्र में दो मस्तिष्कों के विचारसाम्य की कोई आवश्यकता नहीं। जो भी हो, यह धारणा उन विधियों से मेल नहीं खाती जो विभिन्न देशों में यथार्थत: प्रचलित हैं। विधि के अनुसार दाता द्वारा दान की घोषणा ही अपेक्षित नहीं है, बल्कि इसके ऊपर यह भी आवश्यक है कि इस संबंध में गृहीता भी अपनी स्वीकृति प्रदान करें।

आंग्ल विधि के अंतर्गत दान की स्वीकृति भी आवश्यक है। लेकिन वहाँ यह बात पहले से ही मान ली जाती है कि दान पानेवाले व्यक्ति को दान लेना स्वीकार है जब तक कि उसकी अस्वीकृति स्पष्ट रूप से इंगित न कर दी जाए। यह अनुमान इस सिद्धांत पर बना है कि एक व्यक्ति की स्वीकृति उस विषय पर प्रत्येक दशा में मानी जा सकती है जिसमें ऐसा करने का यदि अवसर दिया जाता तो उसकी स्वीकृति प्राप्त होती। इस अनुमान का खंडन किया जा सकता है और दानपत्र की जानकारी प्राप्त होने पर उपहार पानेवाले व्यक्ति को इसे अस्वीकार करने का अधिकार है। भारतीय विधि के अंतर्गत विधान कुछ भिन्न है। यहाँ वास्तविक स्वीकृति होनी चाहिए यद्यपि यह आवश्यक नहीं है कि यह व्यक्त ही हो। हिंदू विधि के अनुसार दान, बिना मूल्य लिए अपनी संपत्ति पर से अपने अधिकारों का परित्यग तथा गृहीता के अधिकारों की स्थापना है। जब उपहार पानेवाला व्यक्ति दान की शर्तें स्वीकार कर लेता है तो यह कार्रवाई पूरी हो जाती है। उसी प्रकार मुस्लिम विधि में दानपत्र के लिए तीन बातों का होना आवश्यक बतलाया है-

  1. (अजब) या उपहार देनेवाले व्यक्ति के अर्पण की घोषणा।
  2. (कबूल) या उपहार पानेवाले व्यक्ति की दानपत्र की स्वीकृति।
  3. (कब्जा) या अर्पण करनेवाले व्यक्ति द्वारा दान पानेवाले व्यक्ति को दान में दी गई वस्तु या संपत्ति पर स्वामित्व प्रदान किया जाना।

इसलिए उपहार पानेवाले व्यक्ति की स्वीकृति, चाहे व्यक्त हो या अव्यक्त, व्यक्ति संबंधी मुस्लिम विधि के अंतर्गत दानपत्र की आवश्यक शर्त है। इसलिए प्राथमिक तौर पर दानपत्र के लिए न्याय व्यवस्था सबंधी धारणा यह है कि यह एकपक्षीय न्यायिक कार्य है तथापि व्यवहार में यह उभयपक्षीय व्यापार से कम नहीं है जिसके लिए आवश्यक है कि उपहार देनेवाले व्यक्ति की ओर से अर्पण करने की अभिलाषा व्यक्त की जाए और उसके बदले में उपहार पानेवाले व्यक्ति द्वारा दाता के प्रति सहमति प्रकट की जाए।

प्रत्येक व्यक्ति, जो विधिसम्मत अधिकारी है, अपनी ऐसी संपत्ति का दानपत्र के द्वारा हस्तातंरण कर सकता है जिसपर उसका पूर्ण स्वामित्व हो। वह व्यक्ति, जो अनुबंध करने का अधिकारी है, अपनी संपत्ति का किसी भी प्रकार हस्तांतरण कर सकता है जिसमें बिना मूल्य लिए ही अर्पित कर देना शामिल है। अवयस्क या पागल व्यक्ति अनुबंध का अधिकारी नहीं है। फलत: वह दानपत्र करने का भी अधिकारी नहीं है। विदेशी, दानपत्र उसी प्रकार कर सकता है जैसे कोई नागरिक कर सकता है। संस्था यद्यपि विधि के अनुसार एक व्यक्ति है तथापि प्रविधान से इसकी उत्पत्ति होती है तथा उसी से वह शक्ति ग्रहण करती है। यह दानपत्र नहीं कर सकती जबतक कि वह उक्त प्रविधान के अनुरूप न हो। वे व्यक्ति जो संरक्षक की स्थिति में हों, जैसे न्यासी (ट्रस्टी, न्यासरक्षक), जब तक उन्हें ऐसा करने का अधिकार न दिया गया हो, उस संपत्ति का दानपत्र नहीं कर सकते जिसका निक्षेप दूसरों की ओर से उन्हें किया गया हो। जहाँ दानपत्र किसी वृद्ध, जीर्ण या पर्दे में रहनेवाली महिला के द्वारा किया जाता है, वह यहाँ प्रमाणित करने का भार, कि उसमें लिखी गई बातों की पूर्ण जानकारी उक्त महिला को है और उसने स्वेच्छापूर्वक, बिना किसी दबाव या अनुचित प्रभाव के, दानपत्र लिखा है, उपहार पानेवाले व्यक्ति पर पड़ता है।

सभी व्यक्ति, चाहे विधिसम्मत अधिकारी हों या नहीं, उपहार पाने के अधिकारी हैं। यदि दानपत्र के समय वह व्यक्ति जो विधिसम्मत अधिकारी (सूईजूरिस) नहीं है विधान के अनुसार बाद में इसके उपयुक्त हो जाए तो दानपत्र का परिहार कर सकता है। वह व्यक्ति जो वैधानिक रूप में हस्तांतरण के अयोग्य है, दानपत्र स्वीकार नहीं कर सकता। दानपत्र के समय जिसके पक्ष में दानपत्र किया जाए उसका जीवित रहना नितांत आवश्यक है। मृतक व्यक्ति के प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी दानपत्र के समय मृतक व्यक्ति की ओर से दानपत्र नहीं स्वीकार कर सकते। जो व्यक्ति पैदा नहीं हुआ है, उसके पक्ष में दानपत्र किया जाना अवैध है। संस्थाओं के हक में भी दानपत्र किया जा सकता है जैसे अनाथालय, स्कूल या मंदिर। अवयस्क या पागल को दानपत्र स्वीकार करने पर काई रुकावट नहीं है लेकिन वैधानिक संरक्षक के द्वारा ही वह ऐसा कर सकता है। जहाँ दानपत्र ऐसे समूह के लिय किया जाता है जिसमें से कुछ व्यक्ति दानपत्र के समय अस्तित्व में न हों तो उनमें से जो लोग इसे स्वीकार करने के उपयुक्त हों उनके लाभ के लिए वह प्रयुक्त होता है। प्रत्येक दशा में ''निश्चित'' व्यक्ति ही उपहार या दानपत्र पा सकते हैं। 'जनता' या 'हिंदुओं' के लिए दानपत्र अवैध है, क्योंकि उसमें अनिश्चय का भाव विद्यमान है।

भारत में अचल संपत्ति का दानपत्र निबंधित अधिकारपत्र द्वारा ही अर्पण करनेवाले व्यक्ति के हस्ताक्षर या उसकी ओर से कम से कम दो साक्षियों के प्रमाणित करने पर ही संपादित हो सकता है। लेकिन चल संपत्ति का दानपत्र, चाहे उसका जितना भी मूल्य हो, निबंधन के बिना भी हो सकता है। यहाँ तक कि यह अलिखित भी हो सकता है। (लक्ष्मीनारायण माथुर)