दाऊद किर्मानी शेख दाऊद जुहनीवाल फ़तहुल्लाह किर्मानी के पुत्र थे। ये अकबर के समकालीन क़ादिरिया, चिश्तिया एवं सुहरबर्दिया सिलसिले के सुप्रसिद्ध सूफ़ी संत थे। इनके पूर्वज अरब से आकर मुल्तान के पास सेंतपुर में बस गए थे, वहीं शेख के जन्म से चार महीने पूर्व उनके पिता और कुछ समय पश्चात् माता का स्वर्गवास हुआ। इनका पालन पोषण बड़े भाई शेख रहिमतुल्लाह ने किया। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त कर पहले सत्गृह, फिर लाहौर आए जहाँ मौलाना अब्दुर्रहमान 'जामी' (१४१४-१४९१) के शिष्य शेख इस्माईल (ऊछ) से विद्या प्राप्त की। गुरु को भी अपने इस होनहार शिष्य पर असीम गर्व था।
सामान्य शिक्षा के पश्चात् शेख को मनोभाव उत्पन्न हुआ तथा २० वर्ष तक दीवालपुर (शेरगढ़, पंजाब) के जंगलों में घूमते रहे। प्राय: पट्टन जाकर हजरत बाबा फरीद की मजार पर ध्यानमग्न हो बैठा करते थे। आखिर आपने शेख हामिद कादिरी (मृ. १५२२ ई.) सुपुत्र शेख अब्दुल्लकादिर सानी (मृ. १५३३ ई.) से श्रद्धा प्राप्त की तथा उनसे 'खिलाफत व इजाज़त' लेकर जुहनी नामक स्थान पर एकांतवास करने लगे। इसके पश्चात् शेख ने असलीम शाह अफगान सूरी के निमंत्रण पर केवल ग्वालियर यात्रा की थी।
वर्ष में एक या दो बार वे अपनी सारी संपत्ति दान कर देते थे, यहाँ तक कि जिस कुटिया में वे अपनी धर्मपत्नी सहित रहते थे उसमें एक पुराने बोरिए और एक मिट्टी के प्याले के अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु दिखाई न पड़ती थी। श्रद्धावानों का जनसमूह इतना होता था कि हर बर्ष हजरत शेखअब्दुलकादिर जीलानी (मृ. ११६६ ई.) के उर्स के अवसर पर एक लाख से अधिक यात्रियों को भोजन कराया जाता था।
शेख की मृत्यु ९८२ हिजरी (१५७४-५ ई.) में हुई। ''या शेख दाऊद बली'' शब्दों से तिथिसंख्या प्राप्त होती है। आपके भतीजे तथा सज्जादा नशीन (प्रतिनिधि) शेख रहमतुल्लाह के पुत्र शेख अबुल मआली ने शेख की उपदेशावली 'नगमाते दाऊदी' रची थी जिसका उल्लेख बदायूनी ने किया है।
सं.ग्रं.- बदायूनी : मुन्तखबुत्तवारीख; अब्दुलहक : अख़बारुल अख़यार; दारा शुकोह : सफीनतुल औलिया; मुहम्मद अशरफ : इख़बारुल अहबार; गुलाम सर्वर : ख़जीनतुल अस्फिया भाग १; गुलाम सर्वर : हदीक़तुल औलिया; अब्दुल हई : नुज़हतुल ख़बातिर, भाग ४। (नि.अ.फा.)