दलाल (अभिकर्ता) आर्थिक व्यवस्था की जटिलता के कारण अब सामान्यतया यह संभव नहीं कि उत्पादक अपने उत्पादन की खपत के लिए उपभोक्ता से सीधा संपर्क कुशलतापूर्वक स्थापित कर सकें। दोनों के मध्य अनेक प्रकार के मध्यस्थ अपनी सेवाएँ अर्पित कर उत्पादक से उपभोक्ता तक वस्तु पहुँचाने का कार्य करते हैं। ये मध्यस्थ दो प्रकार के होते हैं : प्रथम वे जो उपभोक्ता तक पहुँचानेवाले माल का स्वामित्व उसे क्रय करके प्राप्त कर लेते हैं, यथा थोक विक्रेता, फुटकर विक्रेता आदि और दूसरे वे जो अपनी इस सेवा के लिए कमीशन पाते हैं, यथा शेयर के तथा मकान के दलाल आदि। इन्हें ही दलाल या अभिकर्ता कहते हैं। सामान्यत: ये पाँच वर्गों में वर्गीकृत हैं। दोनों पक्षों के बीच में सौदा करानेवाला दलाल (Broker) संज्ञा से संबोधित किया जाता है। इनके पास वस्तुओं और संपत्ति का स्वामित्व नहीं रहता। ये केवल क्रेता और विक्रेता के बीच सौदा तय कराने का काम करते हैं। इसके लिय इन्हें दलाली मिलती है ऐसे अभिकर्ता या व्यापारी जिनको वस्तु और संपत्ति को बेचने उसके वास्तविक स्वामी से स्वामी की भाँति का ही अधिकार प्राप्त रहता है, आढ़तिया (Factor) कहलाते हैं। इनके पास विक्रय माल रहता है और अपने नाम से उसे ये बेचते हैं तथा वस्तु के कीमत संबधी विवाद में वाद प्रस्तुत करने के भी ये अधिकारी होते हैं। इस सेवा के लिए इन्हें दलाली मिलती है। आढ़तिया प्रेषिती (consigne) तथा दलाल (Commission agent) दोनों होता है। जिन्हें दलाली मिलती है। तीसरे प्रकार के दलाल नीलामकर्ता (Auctionee) होते हैं। स्वामी के माल या संपत्ति को सार्वजनिक या एकांत (Private) रूप से नीलाम द्वारा नगद दाम पर माल बेचने के लिए ये अधिकृत होते हैं। यह कार्य वे स्वयं या स्वमी से अधिकृत होने पर दूसरे से भी करा सकते हैं। इस कार्य के लिए उन्हें कमीशन या पुरस्कार (Reward) मिलता है। नीलामकर्ता माल को सबसे ऊँची बोली पर बेचता है किंतु यदि माल का न्यूनतम मूल्य संरक्षित नहीं है तो उससे कम की बोली पर सौदे का प्रश्न ही नहीं उठता। चौथे प्रकार के अभिकर्ता को आश्वासी अभिकर्ता (Del credere agent) कहते हैं। वह माल के स्वामी से प्रस्तावित क्रेता की शोधनता (Solvency) की प्रत्याभूति (guarantee) करता है। क्रेताओं द्वारा भुगतान न होने की स्थिति में यह भुगतान के लिए उस तक, जितना भुगतान नहीं हुआ रहता, उत्तरदायी होता है। उसका उत्तरदायित्व तभी होता है जब क्रेता या तो दिवालिया हो जाता है या आर्थिक बंधन (Stringency) लगाता है किंतु यदि क्रेता जानबूझकर भुगतान नहीं करता तो इस अभिकर्ता का भुगतान सबंधी उत्तरदायित्व बिलकुल ही नहीं होता। इसके कमीशन को वर्गों के दलालों से अपेक्षाकृत अधिक होती है क्योंकि यह जोखिम (Risk) भी उठाता है। इन दलालों के अतिरिक्त कमीशन अभिकर्ता ऐसा दलाल होता है जो अपने स्वामी के लिए क्रय और विक्रय का कार्य उसके निर्देशानुसार या स्वामी से परस्पर स्वीकृत शर्तों के अनुसार करता है और उसके लिए पूरे सौदे के योग पर निश्चित प्रतिशत कमीशन पाता है।

सरलतम सरकारी प्रतिभूतियों से लेकर अचल संपत्ति तक के क्षेत्र में दलाल अपनी सेवाएँ प्रस्तुत करता है। सामान्यत: ऐसा लगता है कि इनकी सेवाओं के व्ययभार के कारण वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है किन्तु आज के विश्वव्यापी जटिल बाजार में उनकी सेवाएँ सुविधा प्रदान कर सौदा करने में जो आसानी उत्पन्न करती है वह अपनी आवश्यकता स्वत: सिद्ध करती है और अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता के कारण स्वत: की व्यवस्था से इनका व्ययभार भी सामान्यत: कम आढ़त है। आज के आर्थिक जीवन में जहाँ विशेषज्ञता और वैज्ञानिक प्रबंधन का युग है, दलाल की सेवाएँ अपनी क्षमता के कारण अनिवार्य हैं। (सुधाकर पांडेय.)