दत्त कवि इस नाम के कई कवि हुए हैं। एक प्राचीन माढ़ि (कानपुर) वाले 'दत्त', दूसरे मऊरानीपुर के निवासी जनगोपाल 'दत्त', तीसरे गुलज़ार ग्रामवासी दत्तलाल 'दत्त' और चौथे हैं, 'लालित्यलता' के रचयिता कवि दत्त। ये सभी कवि अपनी रचनाओं में 'दत्त' या कभी कभी 'दत्तकवि' (छंदपूर्ति के लिये कविनाम) का प्रयोग करते हैं जिसके कारण यह निश्चय कर पाना कठिन होता है कि कौन रचना किस दत्त कवि की है। 'कविदत्त' और 'दत्तकवि' नाम से 'दिग्विजयभूषण' में दो, 'शिवसिंहरोज' में तीन और 'मिश्रबंधु विनोद' में दो कवियों का स्पष्ट एवं पृथक्-पृथक् उल्लेख हुआ है। किंतु इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध हैं 'लालित्यलता' संज्ञक उत्कृष्ट रीतिग्रंथ के प्रणेता कवि दत्त।
ये अंतर्वेद में गंगातट पर स्थित जाजमऊ के निवासी थे। शिवसिंह सेंगर ने इनका उपस्थितिकाल संo १८३६ विo माना है जबकि जार्ज ग्रियर्सन इसे कवि का जन्मकाल मानते हैं१ लेकिन इतना होने पर भी दोनों यह स्वीकार करते हैं कि ये चरखारी के राजा खुमान सिंह के आश्रित थे। खुमान सिंह का शासनकाल संo १८१८-१८३९ विo तक ही था, इस नाते इस कवि का समय खुमानसिंह के शासनकाल के मध्य ही मानना चाहिए। 'लालित्यलता' का निर्माण काल संo १७९१ विo है इस कारण कविदत्त का जन्मकाल अनुमान से १८वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में ही माना जा सकता है। ये कुछ समय टिहरी (बिहार) के राजकुमार फतेसिंह के यहाँ भी रहे थे। इनकी कुल पाँच रचनाएँ कही जाती हैं--(१) लालित्यलता (संo १७९१), (२) सज्जनविलास (संo १८०४), (३) वीरविलास, (४) ब्रजराजपंचाशिका (संo १८०८) और स्वरोदय। 'लालित्यलता' उत्कृष्ट अलंकारग्रंथ है जो कवि की कीर्ति का आधार है। भाव बड़े सरस, मधुर, और मार्मिक उद्गारों से पूर्ण हैं। भागगत और भाषागत दोनों प्रकार की विशिष्टताओं से कवि की कविता ओतप्रोत है। इन्हीं विशेषताओं के कारण मिश्रबंधुओं ने इन्हें दास की कोटि का कवि माना है। [रामफेर त्रिपाठी]