दक्षिणी अफ्रीका रिपब्लिक (Union of South Africa) स्थिति : २२�०' से ३५�०' दo अo तथा १७�०' से ३३�०' पूo देo। इस संघ की स्थापना सन् १९१० मे हुई। यह रिपब्लिक अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी तट से कांगो-जैमबीज़ी के जलविभाजक तक विस्तृत है, जिसके उत्तर में दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका, बेचुआनालैंड, दक्षिणी रोडीज़िया तथा पूर्व में मौजैंबीक के राज्य फैले हुए हैं। पूर्व की सीमा की ओर स्वाजीलैंड तथा मध्य में बासूटोलैंड के छोटे राज्य दक्षिणी अफ्रीका रिपब्लिक की सीमा बनाते हैं। दक्षिण की ओर ऐटलैंटिक तथा हिंद महासागर है।
यह रिपब्लिक दक्षिणी अफ्रीका का एक भाग है, जिसके अंतर्गत केप ऑव गुडहोप, ट्रैंसवाल, आरेंज फ्री स्टेट तथा नाटैल (Natal) प्रदेश संमिलित हैं। इस देश में संमिलित चार प्रदेशों का क्षेत्रफल इस प्रकार हैं : १. केप ऑव गुडहोप (केप प्राविंस) २७५,४८५ वर्ग मील, २. नाटैल (नेटाल) ३३,५७८ वर्ग मील, ३. ट्रैंसवाल १,१०,४५० वर्ग मील तथा ४. आरेंज फ्री स्टेट ४९,८६६ वर्ग मील।
इस प्रकार दक्षिणी अफ्रीका रिपब्लिक का कुल क्षेत्रफल लगभग ४,७२,३७९ वर्ग मील है। दक्षिणी अफ्रीका रिपल्बिक को धरातल की बनावट के अनुसार दो मुख्य भागों में विभक्त कर सकते हैं : (१) भीतरी पठारी भाग तथा (२) किनारे की पहाड़ी ढाल जो समुद्रतट तथा पठारी भाग के बीच स्थित है। पठारी भाग लिंपोपो की बेसिन से लगभग २,०००' की ऊँचाई से समुद्रतट की ओर क्रमश: ऊँचे होते जाते हैं। यद्यपि पश्चिम की ओर इनकी ऊँचाई समुद्रतट से केवल ४,००० फुट तक पाई जाती है तथापि पूर्व की ओर ड्राकेंजबर्ग की पहाड़ी ११,००० फुट तक ऊँची है। दक्षिण की ओर पठारी भाग नीउफेल्ट, स्वार्टवर्ग और लाजावर्ग के पूर्व-पश्चिम में फैली हुई श्रेणियों से मिलता है। दक्षिणी अफ्रीका का बहुत थोड़ा भाग ६०० फुट से नीचा है। समुद्रतट बड़ा पतला है।
इस रिपब्लिक का धरातल आद्यकल्प की चट्टानों से लेकर नवीनतम चट्टानों द्वारा निर्मित हुआ है। इस देश में प्रवाहित होनेवाली नदियों में आरेंज तथा उसकी सहायक नदी वॉल (Val) मुख्य हैं, जो ड्राकेंजवर्ग पहाड़ से निकलकर पश्चिम की ओर बहती हैं। उत्तरी-पूर्वी भाग में लिंपोपो नदी प्रवाहित होती है। पठारों की दक्षिणी तथा पूर्वी ढालों से निकलनेवाली नदियाँ प्राय: छोटी हैं। दक्षिणी अफ्रीका की नदियों की राह में बड़े-बड़े रेतीले भाग तथा झरने मिलते हैं, जिसके कारण ये नौगम्य नहीं है। यहाँ के जलवायु में भिन्नता मिलती है, परंतु जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ वर्षा के परिमाण में पूर्व से पश्चिम की ओर क्रमश: कमी होती जाती है। पश्चिमी भाग में वर्षा के अभाव के कारण अर्ध मरुस्थल मिलता है। अधिकतम वर्षा ड्राकेंजबर्ग के पहाड़ी भागों में (४५''-५०'') होती है, परंतु इसका पश्चिमी प्रदेश वृष्टि छाया प्रदेश में पड़ जाता है। अत: वहाँ वर्षा घटती जाती है। औसत वर्षा १७.५'' होती है। इस रिपब्लिक के अधिक भाग में वर्ष भर तेज धूप होती है तथा आकाश बादलों से रहित होता है। दक्षिणी भाग (केप प्रदेश) में भूमध्य सागरीय जलवायु मिलता है। यहाँ का ताप २१�सेंo तक रहता है, जो यूरोपीय लोगों के बसने के लिये उत्तम है।
इस देश में पाई जानेवाली वनस्पतियों को मुख्यतया निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभक्त किया गया है :
१. लंबी पंत्तियों वाले जंगल,
२. सवाना,
३. घास के मैदान,
४. दृढ़पर्णी प्रकार,
५. अर्धमरुस्थलीय एवं मरुस्थलीय वनस्पतियाँ।
पूर्वी क्षेत्र में लंबी पत्तियों वाले जंगल मिलते हैं। पश्चिम की ओर ये जंगल क्रमश: घास के मैदान के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। घास का मैदान, पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा में क्रमश: कमी के कारण शुष्क घास के मैदान के रूप में तथा सुदूर पश्चिम में कालाहारी की काँटेदार झाड़ियों के रूप में परिवर्तित हो जाता है। केप प्रदेश में भूमध्यसागरीय वनस्पतियाँ मिलती हैं। छोटी काँटेदार झाड़ियाँ तथा छोटी पत्तियों वाले पौधे अर्धमरुस्थलीय तथा मरुस्थलीय भागों में पाए जाते हैं।
दक्षिणी अफ्रीका रिपब्लिक में चार जातियों के लोग मिलते हैं : (१) यूरोपवासी, (२) आदिवासी, (३) एशियावासी तथा (४) मिश्रित जातियाँ, जो गोरी और काली जातियों के मिश्रण से बनी हैं।
दक्षिणी अफ्रीका की गणतंत्रीय सरकार का विश्वास है कि देश की विभिन्न जातियाँ अलग रहकर ही अपना सांस्कृतिक विकास कर सकती हैं। अत: उन्हें अलग अलग क्षेत्रों में रखने का संविधान रखा गया है। एकसमुदाय के लोग दूसरे समुदाय के क्षेत्र में बिना सरकारी आज्ञा के नहीं जा सकते। यहाँ की कुल जनसंख्या १,५९,८२,६६४ (१९६०) थी। यहाँ जनसंख्या का औसत घनत्व २६.७६ मनुष्य प्रति वर्ग मील है।
घास के मैदानों में जहाँ वर्षा २०'' से अधिक होती है, वहाँ पशुपालन महत्वपूर्ण उद्यम है। भेड़ों की अधिकता के कारण दक्षिणी अफ्रीका का स्थान संसार के ऊन उत्पादक देशों में चौथा है। भेड़ों की संख्या लगभग २,३०,००,००० है, जिनमें अधिकांश मरीना (merino) जाति की भेड़ हैं। इनके अलावा घोड़े, खच्चर, गधे आदि भी मिलते हैं।
इस रिपब्लिक में कृषि के मुख्य दो क्षेत्र मिलते हैं : (१) २०'' से अधिक गर्मी की वर्षा का क्षेत्र तथा (२) १०'' से अधिक जाड़े की वर्षा का क्षेत्र। गर्मी की वर्षा वाले क्षेत्र में मक्का मुख्य उपज है। कृषि उत्पादन में गेहूँ का द्वितीय स्थान है। इसके अलावा अंगूर, गन्ना, आलू, तंबाकू, कपास और सब्जी आदि की कृषि होती है। केप प्राविंस में भूमध्यसागरीय फलों के बाग अधिक लगाए जाते हैं, जिनमें नारंगी तथा अन्य रसदार और रूखे फल तथा अंगूर अधिक उत्पन्न होते हैं।
दक्षिणी अफ्रीका रिपब्लिक अपने कुछ खनिज पदार्थों के लिये विख्यात है। यहाँ सोने का खनन अधिक होता है। सोने की खानों में यूरेनियम भी मिलता है। हीरा और प्लैटिनम यहाँ प्राप्त होता है। ताँबा तथासीस भी यहाँ के उल्लेखनीय खनिज हैं। अन्य खनिज पदार्थों में मैंगनीज, एस्बेस्टॉस और लोहा मुख्य हैं।
यह अफ्रीका का महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र है और इस देश की आधी आय उद्योग धंधों, खानों तथा कपास से होती है। लौह उद्योग द्वितीय महायुद्धकाल में अधिक विकसित हुआ। देश में सूती मिलों तथा ऊनी कारखानों की संख्या भी काफी है।
जोहैनिसवर्ग (जनसंख्या ११ लाख) दक्षिणी अफ्रीका का सबसे बड़ा नगर है। इसका विकास सोने के उद्योग के कारण ही हुआ है। प्रीटोरिया देश की राजधानी है। किंबरलि हीरा निकालने का मुख्य केंद्र हैं। डरबन तथा केपटाउन मुख्य बंदरगाह हैं। ईस्ट लंदन और पोर्ट ऐलिजावेथ अन्य प्रसिद्ध बंदरगाह हैं।
यहाँ के कच्चा माल अधिक मात्रा में विदेशों को निर्यात होता है तथा तैयार माल अन्य देशों से आयात होता है। निर्यात होनेवाली वस्तुओं में सोना, ऊन, यूरेनियम, हीरा, सूखे फल, चमड़ा, ऐस्बेस्टॉस, मशीनें, ताँबा तथा मक्का है। आयात होनवाली वस्तुओं में मशीनें, मोटर गाड़ियाँ तथा अन्य सवारियाँ, धातुएँ तथा धातु से बनी वस्तुएँ, खाद्य सामग्री, कपड़े, वनसपति तेल, पेट्रोल, दवाइयाँ तथा अन्य रासायनिक वस्तुएँ तथा लकड़ी और लकड़ी से बनी वस्तुएँ मुख्य हैं। [उo सिंo]
इतिहास -- भूमि की खुदाई से प्राप्त मानव खोपड़ियों से यह अनुमान लगाया जाता है कि विकास के प्रथम चरणों में मानव यहाँ रहा होगा। लेकिन प्राचीन इतिहास का कोई प्रामाणिक ज्ञान उपलब्ध नहीं। पहले पहल जब यूरोपीय यहाँ आए तो यहाँ बुशमैन तथा होटैंटोट नामक दो जातियाँ निवास करती थीं। बुशमैन खानाबदोश और शिकारी जाति थी। होटैंटोट दक्षिणी तथा पूर्वी तटीय प्रदेशों में बसे हुए थे। बांतू भाषी जाति भी उसी समय उत्तर से आकर दक्षिण अफ्रीका की धरती पर धीरे धीरे फैल रही थी।
१४८८ में एक पुर्तगाली नाविक -- बार्थोलोम्यू डीयास-ने उत्तमाशा अंतरीप (cape of Good Hope) को और १४९७ में वास्कोडिगामा ने नाटेल (नैटाल) को खोज निकाला। १६५२ में डचों ने अपने पूर्वी स्थलों की यात्राओं के लिये अंतरीप पर एक विश्रामस्थल बनाया। पश्चिम अफ्रीका, मैडागास्कर और ईस्ट इंडिया आदि से डचों ने दास व्यापार भी आरंभ किया। १६८८ में फ्रांसीसी प्रौटेस्टेंट भी डच वासियों में संमिलित हो गए। धीरे धीरे यूरोपीयों की संख्या बढ़ती गई और बुशमैनों तथा असभ्य जाति के लोगों की आबादी कम होती गई। १८वीं शती के तृतीय दशक में बांतू भाषियों और यूरोपीयों का संपर्क हुआ किंतु १७७८ में उन लोगों ने अपनी सीमाएँ निश्चित कर लीं।
१७९५ में अंतरीप पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। १८१४ में नीदरलैंड्स ने सारा इलाका विएना संधि के अंतर्गत अंग्रेजों को सौंप दिया। १८२० में अंग्रेजी बस्तियाँ बसनी शुरू हुईं। अफ्रीकियों को, जो मिरित जाति के थे, गोरों के बराबर ही राजनीतिक दर्जा दिया गया। १८३४ में दास प्रथा की विधिवत् सामाप्ति हो गई। अंग्रेजों की नीतियाँ और कुछ प्राकृतिक कठिनाइयों के कारण डच अंतरीप छोड़कर (१८३६) आरेंज फ्री स्टेट और ट्रांसवाल में बस गए, अंग्रेजों ने बढ़ते बढ़ते नाटेल, नैटाल (१८४३) कफरारिया (१८४७) ग्रीकालैंड वेस्ट (Griqualand West १८४३) बेचुआनालैंड (१८८५) जुलूलैंड और तोंगालैंड (१८८७) को हस्तगत कर लिया। आरेंज फ्री स्टेट के १८४८ में उन्होंने अपने राज्य में मिलाया, किंतु छह वर्ष बाद उसे पुन: स्वतंत्र कर दिया। ट्रांसवाल पर अंग्रेजों ने १८७७ में अधिकार किया था। मजूबा पहाड़ी के निकट युद्ध में परास्त होने पर अंग्रेजों ने इसको १८८१ में स्वतंत्र कर दिया। १८८१ में ही स्वाजीलैंड भी स्वतंत्र घोषित हुआ। १८५२ में अंतरीप उपनिवेश की सरकार को प्रतिनिधि सरकार की मान्यता मिल चुकी थी। आगे चल कर अंतरीप को १८७२ में और नैटाल को १८९७ में स्वायत्तशासन की व्यवस्था अंग्रेजों ने प्रदान कर दी।
१८६८ में आरेंज और वाल नदियों के आस पास और १८७१ में किंबरलि (Kimberley) में हीरों की उपलब्धि ने अंतरीप और आरेंज फ्री स्टेट में संपन्नता में प्रचुर वृद्धि के साथ ही विदेशियों का भी ध्यान आकर्षित किया। १८८६ में विटवाटर्सरांउ (Witwatersrand) में सोने की खोज से विदेशियों ने अधिक मात्रा में इधर रुख मोड़ा। आगे चलकर बोअरों (डच किसानों) और अंग्रेजों के बीच युद्ध छिड़ा (१८९९-१९०२)। इस युद्ध में बोअरों की पराजय हुई और वे परतंत्र हो गए। किंतु थोड़े समय बाद अंग्रेजों ने पुन: उनके लिए स्वायत्त शासन की व्यवस्था कर दी। १९०९ में बोअरों ने संयुक्त दक्षिण अफ्रीका के संविधान की रूपरेखा तैयार की। ब्रिटिश संसद ने इस संविधान को पारित कर दिया और वह ३१ मई १९१० से लागू भी हो गया, जिसमें चार प्रांतों के एकीकरण का निश्चय था। १९२६ में दक्षिण अफ्रीका को राष्ट्रीय स्वायत्तता और ब्रिटेन के बराबर विधिसंमत समान दर्जा दिया गया।
प्रथम विश्वयुद्ध में दक्षिण अफ्रीका ने भाग लिया और वार्सेई (Versailles pact) संधि पर भी हस्ताक्षर किया। राष्ट्रसंघ (League of Nations) की भी सदस्यता स्वीकार कर ली। दोनों युद्धों के बीच खनिज उत्पादन और उद्योगीकरण में अच्छी प्रगति हुई। राष्ट्रीय आय के समुचित उपयोग से रहन सहन का स्तर भी ऊँचा उठ गया। द्वितीय विश्वयुद्ध में कुछ आंतरिक विरोध के बावजूद देश ने भाग लिया।
१९४८ से नेशनल अफ्रीकनर्स (National Afrikaners) का दल सत्तारूढ़ रहा है। ५ अक्टूबर, १९६० को दक्षिण अफ्रीका की जनता ने गणतंत्रवादी सरकार की माँग की। ३१ मई, १९६१ को गणतंत्र (Republican form of Government) घोषित हो गया। नए संविधान में वर्णभेद नीति इत्यादि पर प्रभाव नहीं पड़ा, केवल ब्रिटेन द्वारा मनोनीत सम्राट् के स्थान पर देश के अंदर ही राष्ट्रपति का निर्वाचन होने लगा। राष्ट्रमंडल के अश्वेत सदस्यों की आपत्ति के फलस्वरूप दक्षिण अफ्रीका ने १५ मार्च, १९६१ को राष्ट्र-मंडल की स्थायी सदस्यता का प्रार्थनापत्र वापस ले लिया। तब से यह केवल ब्रिटिश मुद्राक्षेत्र का सदस्य है।