दंडाणु (बैसिलस, Bacillus) शलाका या बेलन के आकार के जीवाणु हैं। इनका जनन विभाजन द्वारा होता है। प्राय: बीच से खंडित होने के पूर्व कोशिका की दीर्घ वृद्धि होती है और उससे दो कोशिकाएँ बन जाती हैं। कभी कभी पूर्ण वियोजन न होकर पुनरावृत्त विभाजन से एक लंबी शृंखला बन जाती है। दंडाणु गतिहीन होते हैं, किंतु कुछ कशाभ चर भी होते हैं। अधिकतर ये ग्रामधनी होते हैं, परंतु कुछ ग्रामऋणी भी होते हैं।
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दंडाणु (आवर्धित)
१. माइक्रोबैक्टीरियम ट्युबर्क्युलोसिस (Mycrobacterium tuberculosis) तपेदिक के रोगी के थूक में रहता है; २. कोरिनेबैक्टीरियम डिपथोरिई (Corynebacterium diphtheriae) डिपथिरिया रोगकारक है; ३. बैसिलस ऐंथ्रासिस (Bacillus anthracis) ऐंथ्राक्स रोगोत्पादक है; ४. तथा ५. आंत्रक्षेत्र का दंडाणु, टाइफॉइड (typhoid) बैसिलस, टाइफॉइड ज्वर का कारक है; ५. बारह घंटे तक ऐगार में संवर्धन से प्राप्त कशाभ सहित दंडाणु प्रदर्शित हैं तथा ६. माइक्रोबैक्टीरियम लेप्री (Leprae) कुष्ठ रोगी अधस्त्वक् गुटिका में रहता है।
दंडाणुओं में बीजाणु (spore) बनते हैं, जिन्हें अंत:जीवाणु कहते हैं। ये वर्धी कोशिका द्वारा उत्पन्न होते हैं, परंतु उनकी अपेक्षा हानिकारक अभिकर्ताओं से अधिक प्रतिरोधी होते हैं। ये कई वर्षों तक प्रसुप्त अवस्था में रह सकते हैं। प्रत्येक कोशिका से एक बीजाणु बनता है और उद्भेदन होने पर प्रत्येक बीजाणु एक ही कोशिका को उत्पन्न करता है।
दंडाणु अधिकतर मृतोपजीवी होते हैं और प्राय: मिट्टी, हवा, पानी एवं भोज्य पदार्थों में मिलते हैं। परंतु कुछ परजीवी भी होते हैं और पशुओं एवं मनुष्यों में रोग उत्पनन करते हैं। गिल्टी रोग (ऐंथ्राक्स), तपेदिक, कुष्ठरोग तथा डिपथीरिया दंडाणुओं द्वारा होते हैं। कुछ दंडाणु प्रतिजीवाणु पदार्थों का भी उत्पादन करते हैं।
कुछ लोग दंडाणु को जीवाणु का पर्यायवाची समझते हैं, पर यह ठीक नहीं है। जीवाणु अधिक व्यापक शब्द है, जिसके अंतर्गत दंडाणु आता है। [कामेश्वरसहाय भार्गव]