दंडपाणि दंडपाणि नामक एक चंद्रवंशी राजा की पुराणों में गिनती की गई है। (विष्णुo चतुर्थ, २१.१५; मत्स्य, ५०.८७)। गौतम बुद्ध के एक मामा का भी नाम दंडपाणि था, जिसकी बहिनें थीं माया और प्रजापति। वह देवदह निवासी शाक्यवंशी क्षत्रिय था (महावंश, द्वितीय, १९)। दंडपाणि यमराज की भी संज्ञा है। किंतु दंडपाणि शब्द मुख्य रूप से काशी में स्थित शिव के एक गणविशेष के लिये प्रयुक्त होता है। पद्मपुराण के काशीखंड (अध्याय ३२) में उसकी विशद चर्चा मिलती है। तदनुसार वह पूर्णभद्र नामक यक्ष का पुत्र और शिव का परम भक्त था। उसका मूल नाम हरिकेश था, किंतु आठ वर्ष की अवस्था से ही शिव की भक्ति में लीन हो जाने के कारण उसे उस देवता की कृपा प्राप्त हो गई और उसके द्वारा वह काशी का दंडनायक नियुक्त हुआ। दुष्टदमनार्थ हाथ में लिए हुए दंड के कारण वह दंडपाणि कहलाया, वाराणसी नगर में कालभैरव नाम से उसकी मूर्ति तथा मंदिर स्थापित हैं और हजारों व्यक्ति प्रत्येक दिनउसका दर्शन करते हैं। धार्मिक हिंदुओं का ऐसा विश्वास है कि उसकी कृपा के बिना काशी में रह सकना कठिन है। शंकर के गणों का शासक और साधक वह अत्यंत शक्तिशाली देवता माना जाता है। दुष्टों का शासन और भलों कापालन ही उसका काम है। वाराणसी में विश्वेश्वरगंज के पास स्थित उसके मंदिर की बगल की बस्ती को दंडपाणि नाम से पुकारते हैं। [विशुद्धानंद पाठक]