थेर, आलब्रेख्ट (सन् १७५२-१८२८), जर्मनी के सुविख्यात कृषिवेत्ता, आचार्य एवं लेखक का जन्म सेले नामक स्थान में हुआ। १८ वर्ष की अवस्था में इन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई के लिये गॉटिंजन विश्र्वविद्यालय में प्रवेश किया और परीक्षा के बाद सेले में ही रहने लगे। सन् १७७८ में सेले स्थित रॉयल ऐग्रिकल्चरल सोसायटी के सदस्य चुने गए तथा अपने अवकाश के क्षणों को कृषि संबंधी अनुसंधानों में लगाने लगे। सन् १८०२ में इन्होंने अपनी समस्त संपत्ति कृषि विद्यालय में लगा दी। यह अपनी कोटि का प्रथम विद्यालय था, जिसमें थेर कृषि पर व्याख्यान भी देते थे। सन् १८०४ में ये प्रिवी काउंसिलर, बर्लिन ऐकैडेमी ऑव सायंसेज़ के सदस्य तथा मोगलिन स्थित, नवीन स्टेट ऐग्रिकल्चरल इंस्टिट्यूट के प्रधान के पद पर नियुक्त हुए।

इन्होंने कृषि रसायन पर जर्मन भाषा में एक पुस्तक 'खेती के सिद्धांत' लिखी। यह चार भागों में है। इनमें से द्वितीय भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें फसलों के भोज्य पदार्थों से संबंधित सिद्धांतों का सविस्तार वर्णन है और यही थेर की ख्याति का मुख्य कारण है।

थेर ने फसलों के हेर फेर द्वारा फसलों में आशातीत वृद्धि प्राप्त की और ऊन की प्राप्ति के लिये मरीना (merino) भेड़ों की नस्ल में सुधार किए। आचार्य एवं लेखक के रूप में भी थेर का नाम अमर रहेगा। ये नवनिर्मित बर्लिन विश्वविद्यालय के भी प्रोफेसर नियुक्त हुए और मोगलिन स्थित इनका कृषि विद्यालय रॉयल ऐकैडेमी बना दिया गया। एक ओर जहाँ इनकी शिक्षाओं से लाभ हुआ वहीं इनकी शिक्षाओं से एक हानि भी हुई। इनके द्वारा परंपरागत कतिपय रूढ़ियों को प्रधानता मिली, जिससे कृषिरसायन की उन्नति में बाधा पहुँची।

संo ग्रंo -- सीoo ब्राउन द्वारा संपादित सोर्स बुक ऑव ऐग्रिकल्चरल केमिस्ट्री। [श्िावगोपाल मिश्र]