थानेदार थानेदार पद का प्रारंभ प्रथम बार मुगल शासन में हुआ। उस समय नगर का पुलिस शासन कोतवाल के एवं ग्रामीण पुलिस (फौजदार) के अधिकार में होता था। इन दोनों अधिकारियों की सहायता के लिये शिक़दार एवं आमिल होते थे और आवश्यकता होने पर अधिकार क्षेत्र को छोटी छोटी इकाइयों में बाँटकर प्रत्येक इकाई थानेदार के अधिकार में दे दी जाती थी। (मीराते अहमदी)।

वर्तमान समय में भारतवर्ष में पुलिस थाने के अध्यक्ष को थानाध्यक्ष अथवा थानेदार कहते हैं। अपने अधिकार के क्षेत्र में शांतिव्यवस्था बनाये रखने एवं अपराधनिरोध का भार थानेदार पर होता है। उसके अधीनस्थ सहायक कर्मचारियों का एक छोटा समुदाय होता है। ओर उनके उपयोग के लिये आग्नेय आयुध एवं अन्य साजसज्जा थाने पर रहती है। उपर्युक्त दायित्वों एवं कर्त्तव्यों का यथा विधि पालन करने के निमित्त भारतीय दंडविधि संहिता एवं अन्य विशेष अधिनियमों के अंतर्गत उसे लोगों को बंदी करने, निवासस्थान अथवा शक्तियों की तलाशी लेने, आवश्यकता पड़ने पर शारीरिक बल अथवा शस्त्रादि प्रयोग करने के अनेक अधिकार प्रदान किए गए हैं। [भगवतस्वरूप चतुर्वेदी]