त्रिशंकु (१) त्रय्यारुण, अरुण अथवा निबंधन का पुत्र, अयोध्या का सूर्यवंशी राजा सत्य्व्रात जो वशिष्ठ के शाप से त्रिशंकु नाम से प्रसिद्ध हुआ। पद्य हरि वंश, ब्रह्म, भागवत आदि पुराणों में त्रिशंकु के आख्यान विविध रूप में प्राप्त होते हैं। इसने सशरीर स्वर्ग जाने की कामना एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से व्यक्त की। उन्होंने इसकी प्रार्थना अनुचित मानकर अस्वीकार कर दी। तब इसने रुष्ट होकर विश्वमित्र से अपनी कामनापूर्ति के लिये प्रार्थना की। उन्होंने यज्ञ करके इसे सशरीर स्वर्ग भेज दिया। किंतु इंद्र ने उसे स्वर्ग से नीचे ढकेल दिया। यह देख विश्वामित्र उसे आकाश में ही रोक कर तपोबल से एक नया स्वर्ग बनाने लगे। अंत में देवताओं ने बीच-बिचाव कर इंद्र और विश्वामित्र में संधि करा दी। लेकिन त्रिशंकु तभी से सिर नीचे किए अधर में लटका हुआ है।

(२) तैत्तरीय उपनिषद् का कोई आत्मतत्वज्ञ ब्रह्मवादी। [भोलानाथ तिवारी]