त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का सामूहिक अभिधान। आज के पौराणिक धर्म में ये ही सर्वाधिक प्रधान देवता हैं। ये तीनां वैदिक युग से विकसित होकर वर्तमान युग में विलसित होते हैं। इनमें से ब्रह्मा हैं उत्पत्ति के देवता। इन्होंने विष्णु के नाभिकमल पर निवास करते हुए समग्र विश्व की रचना की। विष्णु हैं स्थिति तथा पालन के देवता तथा शिव हैं संहार और लय के देव। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकर है --

(क) ब्रह्मा -- वेद में इनका नाम 'प्रजापति' है। उत्पन्न होनेवाले समस्त जीवों के स्रष्टा तथा पति होने के कारण 'प्रजापति' नाम की सार्थकता है। ये 'हिरण्यगर्भ' के नाम से भी प्रख्यात हैं। वेदों में इनका व्यक्तित्व इतना परिपुष्ट तथा विकसित नहीं लक्षित होता। पुराणों में इनका माहात्म्य तथा वैशिष्ट्य स्फुट रूप से अंकित किया गया है। इनके चार मुख हैं और प्रत्येक मुख से एक एक वेद का उदय होने से चतुर्वेदों के स्रष्टा ब्रह्मा ही हैं। सरस्वती (सावित्री) इनकी पत्नी हैं जिनका वाहन 'हंस' है। गायत्री इनकी दूसरी पत्नी का नाम है। आजकल ब्रह्मा की पूजा तथा उपासना का प्रचार बहुत ही कम है। अजमेर का पुष्करक्षेत्र ही ब्रह्मा के दक्षिण ओर तथा गायत्री की मूर्ति बाईं ओर रहती है। मत्स्य पुराण (२६० अo) में सावित्री तथा सरस्वती में भिन्नता मानी गई है जिसमें सावित्री की स्थिति बाईं ओर और सरस्वती की स्थिति ब्रह्मा का एकमात्र प्रमुख तीर्थ है। मूर्ति विधान में सावित्री की मूर्ति ब्रह्मा के दहिनी ओर बतलाई गई है। पद्मपुराण (सृष्टिखंड, २ अo १३२-१५९) में ब्रह्मा के १०८ पूजास्थानों का निर्देश मिलता है।

(ख) विष्णु -- वेदों में ये सौर देवता हैं। सर्वत्र प्रसृत होनेवाली व्यापिनी शक्ति से संपन्न सूर्य को ही 'विष्णु' के नाम से वेदों में अभिहित किया जाता है। तीन डगों में समस्त विश्व को माप डालना विष्णु का विशिष्ट कार्य है जिसके कारण वे 'उरुक्रम', 'उरुगाय' तथा 'त्रिविक्रम' आदि अन्वर्थक उपाधियों से मंडित किए जाते हैं। पुराणों में पालन का कार्य विष्णु का विशिष्ट व्यापार है। इनकी पत्नी का नाम 'लक्ष्मी' है जो शोभा, समृद्धि तथा संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं। क्षीरसागर में शेषनाग के ऊपर शयन करने से विष्णु 'शेषशायी' के नाम से प्रख्यात हैं। जगत् में धार्मिक संतुलन के क्षुभित होने पर भक्तों के रक्षण तथा धार्मिक जनों के संकटनिवारण के लिये 'विष्णु' का अवतार होता है। ये अवतार २४ हैं जिनें से मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, दाशरथी राम, बलराम, बुद्ध तथा कल्कि ये दस मुख्य माने जाते हैं। 'कृष्ण' की भी अवतारों में कभी कभी गणना की जाती है, परंतु हिंदुओं में यह दृढ़ मान्यता तथा अटूट विश्वास है कि श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् ही थे, भगवान् के अंशधारी कोई अवतार नहीं। 'कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्' (भागवत)।

(ग) त्रिमूर्ति के अंतिम देवता हैं भगवान् शंकर। वेदों में रुद्र के नाम से ये ही अभिहित हैं। शुक्ल यजुर्वेद के षोडश अध्याय संहिताओं मे रुद्र की महिमा प्रकृष्टरूपेण प्रतिपादित की गई हैं। होठ उनके अत्यंत सुंदर है (सुशिप्र.)। उनके मस्तक पर बालों का एक जटाजूट है जिसके कारण वे 'कपर्दी' कहलाते हैं। कतिपय विद्वान् रुद्र-शिव को अनार्यों से गृहीत देवता मानते हैं, परंतु तथ्य इससे विपरीत है। रुद्र अग्नि के ही प्रतीक हैं। रुद्र का ही उपनिषदों में नाम 'शिव' है। अत: इनके वैदिकत्व तथा आर्य देवत्व में किसी प्रकार का संशय नहीं हैं। शिव के परिवार में उनकी भार्या पार्वती ('उमा हैमवती' नाम से केनोपनिषद् में प्रख्यात) तथा दो पुत्र -- स्कंद तथा गणपति अंतर्भुक्त हैं। शिव के नाम से प्रख्यात संप्रदाय 'शैवमत' के नाम से प्रसिद्ध है। भारतीय धर्म के इतिहास में शिव की प्राचीनता अनुण्ण है। मोहनजोदड़ों के ध्वंसावशेष में एक ध्यानी मूर्ति उपलब्ध होती है जो शिव का प्रतीक मानी जाती है। समग्र भारतवर्ष में ही शिव संप्रदायों का प्रसार नहीं है, प्रत्युत भारत से बाहर बृहत्तर भारत में भी शिव प्रधान देवता के रूप में उपासना के निमित्त गृहीत थे। प्रलय के देवता होने के कारण इनका संबंध श्मशान से है।

इन त्रिमूर्तियों की मूर्तियाँ पृथक् पृथक् मिलती हैं, परंतु त्रिमूर्ति की संवलित मूर्ति भी उपलब्ध होती है। [बलदेव उपाध्याय]