तोलेमी फिलादेलफस मिस्र का मकदूनियायी शासक (३०९-२३६ ईo पूo)। तोलेमी नाम उसके वंश का था जो सिकंदर के एक सेनापति के नाम पर चला, जिसे उस विजेता ने मिस्र पर अपनी विजय (३३२ ईo पूo) के बाद अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया था। मिस्र की अत्यंत प्राचीन सभ्यता के अंत और उसके राजनीतिक पतन के युगों में फारस, मकदूनियाँ और रोम के विदेशी विजेताओं ने वहाँ अपने अपने राजवंश चलाए थे और तोलेमियों का वंश भी (३३२ ईo पूo स ३० ईo पूर्व तक) उन्हीं में एक था। तोलेमी द्वितीय फिलादेलफस् उस वंश का तीसरा शासक था और उसने मिस्र की दरबारी और राजनीतिक प्रतिष्ठा को चतुर्दिक् बढ़ाया। कुछ सफल युद्धों के परिणामस्वरूप पूर्वी भूमध्यसागर के प्राय: सभी प्रमुख बंदरगाहों पर उसका अधिकारक्षेत्र स्थापित हो गया और मिस्र उसके आसपास की सर्वप्रमुख नाविक शक्ति माना जाने लगा। किंतु सीरिया, मकदूनियाँ, साइरीन तथा मिस्र के यूनानी शासकों में सिकंदर की मृत्यु के बाद जो आपसी प्रतिद्वंद्विता चली और फलस्वरूप जो संघर्ष प्रारंभ हुआ, उनक क्रम बहुत दिनों तक चलता रहा। फिलादेलफस भी उनसे अछूता नहीं रह सका। मकदूनियाँ के राजा ऐंटीगोनस ने २५८-२५६ ईo पूo में उसके कॉस स्थित जहाजी बेड़े पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि इसका थोड़ा बहुत प्रभाव उसकी शक्ति पर अवश्य पड़ा किंतु एजियन समुद्र में बढ़ी हुई उसकी नाविक प्रभुता एकाएक समाप्त नहीं हो गई। परंतु सेल्यूकस के उत्तराधिकारी ऐंटीओकस द्वितीय (अशोक के धर्मलेखों के अंतियोक) से उसका जो युद्ध हुआ उसमें उसे एशिया माइनर के समुद्र को छूनेवाले प्रदेशों की कुछ भूमि छोड़नी पड़ी। यही नहीं, उसे अपनी पुत्री बेरेनिस का विवाह भी उससे करना पड़ा, जो दोनों में होनेवाली संधि की एक शर्त थी।
तोलेमी फिलादेलफस ने मिस्र में प्रचलित एक पुरानी प्रथा के अनुसार अपनी विधवा बहन अर्सिनोइ के साथ विवाह किया, यद्यपि स्वयं यूनानियों में इस प्रकार के विवाह हेय माने जाते थे। वास्तव में फिलादेलफस (देवी) के रूप में तोलेमी ने उसकी मृत्यु के बाद जो उसकी पूजा प्रारंभ की, उसी कारण उसकी स्वयं उपाधि हो गई फिलादेलफस। तोलेमी के राजदरबार की शानशौकत बहुत बड़ी थी। सिकंदर द्वारा मिस्र में स्थापित नगर सिकंदरिया (अलेक्ज़ंड्रिया) में उसके पूर्व के दो राजाओं ने अनेक ऐश्वर्य की वस्तुएँ इकaी कर रखी थीं। उनमें एक महान् पुस्तकालय भी था। तोलेमी ने विद्वान् कैलीमेकस को उसका पुस्तकाध्यक्ष नियुक्त किया। उसके दरबारी कवियों में थियोक्रीतिज़ प्रमुख था।
तोलेमी फिलोदलफस प्रथम दो मौर्य सम्राटों बिंदुसार और अशोक मौर्य, का समकालीन था और उसने दायोनीसियस नामक अपना एक राजदूत भी पाटलिपुत्र के मौर्य दरबार में भेजा था। अशोक अपने १३वें शिलालेख में तोलेमी (द्वितीय) फिलादेलफस की तुरुमय नाम से चर्चा करता है। उसके दूसरे शिलालेख में भी उसकी ओर संकेत है, यद्यपि उसके नाम का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। वहाँ यह यवन कहा गया है। अशोक के कथनानुसार उसके धर्मप्रचारक अन्य चार यवन राज्यों के साथ ही साथ तुरुमय के देश मिस्र में भी भेजे गए थे। अपने द्वितीय शिलालेख में वह कहता है कि यवनों के (पाँच) देशों में उसने मनुष्यों के लिये उपयोगी वे सभी औषधियाँ मँगवाई और लगवाई थीं जो वहाँ नहीं थीं और जो वहाँ थीं उनका विवर्धन कराया था। [विशुद्धानंद पाठक]