तोरु दत्त (कुमारी) तोरु दत्त को भारतवर्ष की अंग्रेंजी भाषा की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभान्वित कवयित्री होने का गौरव प्राप्त है। इनका जन्म बंगाल के एक हिंदू परिवार में ४ मार्च, १८५६ में हुआ था। इनके पिता श्री गोविदचंद्र दत्त इन्हें संस्कृत और प्राचीन भारतीय संस्कृति की शिक्षा दिलाने में बड़ी दिलचस्पी लेते थे। जब वे ६ वर्ष की ही थीं, उनके समस्त परिवार ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।

वे १८६८ में इंग्लैंड के एक विद्यालय में विद्योपार्जन के लिये भरती हुईं। तीन वर्ष बाद वे केंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुईं। वहाँ उन्होंने अंग्रेजी तथा फ्रेंच में विशेष योग्यता प्राप्त की। १८७३ में वे भारत वापस लौटीं।

जो कृतियाँ उन्होंने पीछे छोड़ी हैं, वे अपनी विद्वत्तापूर्ण मौलिकता तथा महान् कलात्मक मूल्य के कारण प्रसिद्ध हैं। यदि वे २१ वर्ष की अवस्था में ही दिवंगत न हो गई होतीं तो भारत की विविध पौराणिक कथाओं के विस्तृत विषयों की अच्छी जानकारी संसार को करा देतीं। उनका गौरव इसी बात में है कि उन्होंने इस दिशा में प्रयत्न किया और अपने देश तथा राष्ट्र का पौराणिक वैभव बढ़ाने का प्रयास किया।

उन्होंने साहित्य को अपने जीवन का सर्वप्रधान लक्ष्य बनाया और संस्कृत भाषा का अध्ययन करते हुए सीता, सावित्री, लक्ष्मण, ध्रुव, प्रह्लाद आदि विषयक पौराणिक कथाओं को अंग्रेजी काव्य में व्यक्त किया। उनकी छोटी कविताओं में 'दि ट्री ऑव लाइफ', 'फ्रांस १८७०', 'दि लोटस' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं। उनकी सर्वश्रेष्ठ कविता 'अवर कैसुएरीना ट्री' है।

उन्होंने प्रभु यीशु मसीह के बताए हुए सत्य मार्ग पर चलने की सदैव चेष्टा की। प्रभु की शिक्षाओं पर भी उन्होंने कविताएँ लिखीं। वे एक वास्तविक तथा सच्ची ईसाई नारी थीं जिन्होंने ईसाई समाज की सेवा भिन्न भिन्न प्रकार से की और मातृभूमि का भी मुख उज्वल किया। उनकी मृत्यु ५ जुलाई १८७७ को बंगाल में हुई। [मिल्टनचरण]