तेवफ़ीक फ़िक्रेत तेवफ़ीक फ़िक्रेत तुर्की की निशातुल् सानिया का कर्ता तथा पश्चिमी ढंग के विद्यालय का बहुत बड़ा पोषक था। (तुर्क इसको त्युफ़ीक फ़ीकरेत लिखते हैं और रोमन लिपि में तेवफ़ीक फ़ीक्रेत लिखा जाता है) इसका वास्तविक नाम मुहम्मद तेवेफ़ीक था और इसका जन्म २५ दिसंबर, सन् १८६७ ईo को इस्तांबोल (कुस्तुन्तुनिया) में हुआ था। बचपन में यह बड़ा स्वच्छंद तथा हठी था पर बाद में इसने अपने ऊपर पूरा अधिकार प्राप्त कर लिया। शिक्षा समाप्त करने के अनंतर इसने तुर्की शासन (उस्मावी) के एक कार्यालय में सेवा स्वीकार कर ली थी पर शासकीय नियमों के कारण इसने शीघ्र ही यह नौकरी छोड़ दी और अध्ययन एवं अध्यापन का व्यवसाय ग्रहण कर लिया।

तेवफ़ीक फ़िक्रेत की पत्रकारिता में विशेष रुचि थी। इसने सन् १८९१ ईo में कुछ साहित्य प्रेमी मित्रों के सहयोग से तुर्की अखबार 'मआलूमात' की नींव डाली पर शासन ने २४ संख्याओं के बाद इसे बंद कर दिया। सन् १८९३ ईo में इसने तुर्की के प्रसिद्ध रिसाले 'सरूते फुनून' का संपादकीय भार सँभाल लिया। इसी के द्वारा इसने सुलतान अब्दुल् हमीद खाँ के अत्याचारों तथा उत्पीड़नों पर अच्छी चोटें कीं और युवक तुर्कों के शासन की दृढ़ता के लिये इतना उत्साहपूर्ण समर्थन किया कि नवयुवकों के हृदय पर पूरा अधिकार जमा लिया। सन् १९०५ ईo के विप्लव के अनंतर जब तुर्की में नवयुवक तुर्कों का शासन स्थापित हुआ तो तेवफ़ीक फ़िक्रेत को शिक्षा मंत्री का पद देने का निश्चय हुआ पर इसने मंत्री बनना स्वीकार नहीं किया और केवल गलत:सराय हाई स्कूल की डाइरेक्टरी स्वीकार की। बाद में यह तुर्की के प्रसिद्ध रॉबर्ट कालेज का प्राध्यापक नियत हुआ, जिससे यह मृत्यु के समय (१८ अगस्त, सन् १९१५ ईo) तक सबंधित रहा।

तेवफ़ीक फ़िक्रेत को कविता से बहुत अधिक लगाव था और इसने १४ वर्ष की अवस्था से ही कविताएँ तथा गजलें लिखने आरंभ कर दिया था। इसका पहला संग्रह सन् १८९६ ईo में 'रिबाबे शिकस्तह' के नाम से प्रकाशित हुआ। इसे अच्छी जनप्रियता प्राप्त हुई। इसके अनंतर सन् १९११ ईo में एक संग्रह 'हलौकुन दफ्तरी' के नाम से छपा और सन् १९१२ ईo में 'रिबाविन जवाबी' तथा सन् १९१४ ईo में बच्चों के गीतों का संग्रह 'शरमें' निकला, जो इसकी अंतिम कृति है।

तेवफ़ीक फ्रक्रेत की रचनाओं की संख्या अधिक नहीं है तथापि तुर्की साहित्य में इनका महत्व अनुपम है। यद्यपि इसने अपनी शैली तथा भाषा में नई कल्पनाएँ एवं नए विचार रखे हैं परंतु गठनसौंदर्य का कभी हाथ से नहीं जाने दिया है। इसने अपनी कविता में शुद्ध तुर्की भाषा के साथ ही साथ फारसी भाषा की गेयता का भी उपयोग किया है और विषयों के अनुकूल बहरों (छंदों) को चुना है। यही कारण है कि तेवेफ़ीक फ़िक्रेत की गणना तुर्की भाषा के श्रेष्ठ कवियों में होती है।

संo ग्रंo -- १. अकमल अयूबी : तुर्की (दिल्ली, सन् १९६३); २. केनन अकयूज़ : तेवफ़ीक फ़िक्रेत (अंकोरा, १९४७ ईo); ३. अफसार नबी : तेबफ़ीक फ़िक्रेत (इस्तांबूल, १९४९); ४. मेहमेत कप्लन : तेवफ़ीक फ्रक्रेत (इस्तांबूल, १९४५ ईo); ५. एंसाइक्लोपीडिया ऑव इस्लाम, लाइडेन। [अमजद अली]