तुलसी वृंदा अथवा माधवी की पुत्री तथा शंखचूड नामक असुर की पतिव्रता पत्नी जिससे उक्त असुर अजेय होकर देवताओं का पीड़क बन गया था। विष्णु ने छलपूर्वक तुलसी का पातिव्रत्य भंग किया जिससे शिव और काली द्वारा शंखचूड़ का वध हुआ। भेद खुलने पर उसके शाप से विष्णु शिलारूप शालग्राम बने। पद्मपुराण के अनुसार एक बार यह कामातुरा होकर गणेश के पास गई तो उन्होंने इसे वृक्ष बन जाने का शाप दिया। फलत: जब समुद्रमंथन से उत्पन्न अमृत की कुछ बूँदें धरती पर गिरीं तो उस स्थान पर पौधे के रूप में शापित तुलसी प्रकट हुई। दूसरी कथा के अनुसार जालंधर दैत्य के मरने पर उसकी पत्नी ने अग्निप्रवेश किया था। उसकी पतिभक्ति से विष्णु परम प्रसन्न हुए और उस स्थान पर लक्ष्मी के अंश से तुलसी का पेड़ बना दिया जो तुलसीवृंदा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। [श्याम तिवारी]