तुरगो, आन राबर जाक का जन्म फ्रांस में सन् १७२७ में हुआ। उस समय के अर्थशास्त्रियों में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। तीव्रबुद्धि और परिश्रमी होने के कारण आप कम उम्र में ही अपनी विद्वत्ता के लिये प्रसिद्ध हो गए। आपको कई भाषाओं का ज्ञान था। आपने ग्रीक, लैटिन, हिब्रू, जर्मन, इतालवी एवं अंग्रेजी भाषाओं के अर्थशास्त्र संबंधी विचारों का फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया। आपने 'मानव समाज को ईसाई धर्म द्वारा पहुँचाए गए लाभ' विषय पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिया। बर्कले के दर्शन की आलोचना पर आपने एक प्रभावशाली लेख लिखा। सन् १७५६ में आपने अपने देश के विभिन्न भागों की यात्रा की और उस समय की सरकार द्वारा वस्तुओं के व्यापार पर जो बाधाएँ उपस्थित की गई थी और जो नियंत्रण लगाए गए थे उनके प्रभाव का अध्ययन किया। आप इस निर्णय पर पहुँचे कि उनसे गरीबों का सबसे अधिक अहित होता है। इस प्रकार वह सरकार द्वारा आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति के समर्थक हो गए। सन् १७६१ में आप फ्रांस के एक ऐसे जिले के अधिकारी नियुक्त हुए जिसके निवासी गरीब थे। तुरगो का प्रधान कार्य उस समय यही निश्चित करना था कि जिले के भिन्न भिन्न निवासियों को सरकारी खजाने में कितना धन जमा करना आवश्यक है। इस कार्य के लिये तुरगो को जिले के सभी भागों का सर्वेक्षण करना पड़ा। उन्होंने पुराने सर्वेक्षणों की रिपोर्टों को कई अंशों में बहुत गलत पाया। इन गलतियों को दूर करने के लिये उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ा। उन्होंने बिना सरकारी आय को कम किए कुछ हानिकारक करों को हटाने और न्यायसंगत करों को लगाने की सिफारिश की जिसके कारण उनकी लोकप्रियता जिले में बहुत बढ़ गई।

सन् १७७० में उनके जिले में अकाल पड़ने पर उन्होंने गरीब जनता की बहुत सेवा की। उन्होंने जिले की आर्थ्काि उन्नति में विशेष योग दिया। आर्थिक समस्याओं पर उन्होंने अपनी सरकार को जो रिपोर्ट लिखी उसमें अर्थशास्त्र के सिद्धांतों का बहुत अच्छी तरह प्रतिपादन किया गया है। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों पर उन्होनें १७६६ में एक लंबा लेख लिखा जो एक मासिक पत्रिका में लेखमाला के रूप में निकला।

सन् १७७४ में फ्रांस के नये राजा लुई सोलहवें ने तुरगों को जल सेना विभाग के मंत्री पद पर नियुक्त किया। इसके पाँच सप्ताह बाद ही आपको देश का वित्तमंत्री नियुक्त कर दिया गया। वित्तमंत्री का पद स्वीकार करते हुए आपने राजा को एक पत्र लिखा जिसमें आपने तीन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। (१) राज्य का खर्च आमदनी से कम होना चाहिए और राज्य का ऋण धीरे धीरे कम किया जाना चाहिए। (२) राजा को मितव्ययिता की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए और जनता के हित को प्राथमिकता देनी चाहिए। (३) जो लोग सरकारी पैसा खर्च करते हैं उन्हें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह पैसा गरीबों की गाढ़ी कमाई से प्राप्त किया जाता है और उसका उपयोग राजा को केवल अपने प्रिय आश्रितों के सहायतार्थ नहीं करना चाहिए।

जब तुरगों ने अपने विभाग का कार्य सँभाला उस समय सरकारी व्यय आपदनी से अधिक था। पेन्शनें तीन चार वर्षो से नहीं दी गई थी और प्रत्येक विभाग कर्ज से लदा हुआ था। तुरगो ने भ्रष्टाचार को दूर करने का प्रयत्न किया ओर सरकार की आमदनी में वृद्धि की। उन्होंने उन करों को हटा दिया जो गरीबों के लिये हानिकारक थे।

तुरगों प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री ओर मुक्त व्यापार के समर्थक थे। सन् १७७४ में उन्होंने देश के अनाज-व्यापार को मुक्त कर दिया। तुरगो ने देश की वित्त संबंधी दशा में काफी सुधार किया। उन्होंने जो सुधार कार्य किए उसके कारण राजा के कई दरबारी जिनको पुरानी व्यवस्था से अनुचित आर्थिक लाभ मिलता था उनके दुश्मन हो गए। अन्य मंत्रियों ने भी यह अनुभव किया कि तुरगो सुधार के मार्ग में आवश्यकता से अधिक तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं। सन् १७७६ के आरंभ में तुरगो ने राजा से जनता के हित के लिये कुछ माँगे पेश की किंतु मंत्रियों ने उनका घोर विरोध किया। यद्यपि राजा ने तुरगो का ही समर्यन किया किंतु देश की संसद् ने उनके प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया जिसके कारण अंत में उन्हें अपने पद से हट जाना पड़ा। अपने २० मास के मंत्रित्वकाल में तुरगो ने वित्त संबंधौ समस्याओं में काफी सुधार किया। उन्होंने राजकीय आमदनी को खर्च से काफी अधिक बढ़ा दिया। सन १७८१ में तुरगो का स्वर्गवास हो गया।

सन् १७६६ में ऐडम स्मिथ ने तुरगो से भेंट की थी और वे उनसे बहुत प्रभावित हुए थे। यद्यपि संसार में तुरगो से बढ़कर अर्थशास्त्री हुए है किंतु तुरगो जैसा विलक्षण व्यक्तित्व जिसमें एक साथ ही साहस, ईमानदारी, देशभक्ति एवं असीम बौद्धिक योग्यता थी, किसी का नहीं हुआ। तुरगो ने अर्थशास्त्र की प्रकृतिवादी विचारधारा को विकसित करने में विशेष योग दिया। प्रकृतिवाद के अनुसार सारा मानव समाज प्राकृतिक नियमों से ही शासित होता है। व्यक्त की स्वतंत्रता का इसमें समर्थन किया गया है। व्यक्ति की स्वतंत्रता में सरकार द्वारा हस्तक्षेप न होना चाहिए। सरकार का कार्य केवल इतना ही है कि वह मनुष्य जीवन, स्वतंत्रता एवं संपत्ति की रक्षा करे। तुरगो ने इस विचारधारा को विकसित किया एवं अपने जीवन में भी उसे आपनाया।

तुरगो की प्रधान पुस्तकें फ्रांसीसी भाषा में हैं। (दु. स्वर्गीय दयाशंकर दुबे.)