तुगलुक वंश तुर्को की कोरौना शाखा का एक परिवार जो १३२० से १३९९ ई० तक दिल्ली साम्राज्य का सुलतान रहा। इस राजवंश का संस्थापक दीपालपुर का मुकता गाजी तुगलुक था जो अपने भाई रजब और अबूवक्र के साथ अत्यंत दरिद्रावस्था में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में भारत आया था। खिलजी वंश के विनाशक खुसरों के सिंह सनारोहण से असंतुष्ट तुर्क सरदारों को नेतृत्व प्रदान कर वह गयासुद्दीन तुगलुक के नाम से तख्त पर बैठा। साढ़े चार वर्ष शासन कर बंगाल से लौटते समय दिल्ली के समीप अफगानपुर में नवनिर्मित प्रासाद के गिर जाने से उसी के नीचे दब कर मरा। इस दुर्घटना के मूल में उसके पुत्र जेनाखाँ का भी हाथ बताया जाता है जो मुहम्मद तुगलुक के नाम से सुलतान हुआ। निजामुद्दीन औलिया की इस उक्ति के आधार पर कि 'हनोज दिल्ली दूरस्त', हिंदी की प्रसिद्ध कहावत कि 'दिल्ली अभी दूर है' इसी समय बनी।
मुल्ला तंत्र के प्रभाव से सर्वथा स्वतंत्र मुहम्मद तुगलुक भारत का प्रथम तुर्क सुलतान था जो अपने स्वभाव के विरोधी तत्वों के साथ ही अपनी प्रचंड विद्वत्ता, हिंसक करता और उदार दानशीलता के लिए विख्यात है। राजधानी का स्थानांतरण ताँबे के सिक्कों का प्रचलन, कूर्माचल पर चढ़ाई और विफल कृषिसुधार इसके शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ हैं। दिल्ली साम्राज्य का विघटन भी इसी के समय प्रारंभ हुआ। सिंध के थaा प्रदेश पर अभियान के समय सन् १३५१ में इसकी मृत्यु हुई और इसके चाचा सिपहसालार रजब का पुत्र फीरोज सुलतान बनाया गया। इब्नबतूना नामक प्रसिद्ध पर्यटक सुलतान मुहम्मद के समय ही भारत आया था। फीरोज की माता भट्ठी राजपूतनरेश रानामल की पुत्री राजकुमारी नवला ऊर्फ बीवी कदबानू थी। कट्टर मुसलमान होने के कारण इसने शासन में मुल्ला तंत्र को पुन: प्रोत्साहन दिया और शासनकार्य अधिकाधिक शरीअत के अनुसार चलाने का प्रयत्न किया। इस्लामी दृष्टि से यह आदर्श नरेश था जिसने पहली बार ब्राह्मणों पर भी जजिया लगाया, हिंदू मंदिरों और तीर्थों के विनाश में गहरी रुचि ली और सैनिक तथा राजनीतिक दोनो ही दृष्टियों से अपने को अयोग्य परंतु दयालु सिद्ध किया। यह मस्जिदों, मदरसों और नहरों के निर्माण के लिये प्रसिद्ध है। फीरोजाबाद और जौनपुर नगरों का निर्माण इसी ने किया था। इसके ३७ वर्षीय शासनकाल की सफलता का सारा श्रेय इसके वजीर मकबूल को है जो मूलत: कुन्नू नामक तिलंगी ब्राह्मण था। फिरोज के क्रीत दासों की संख्या १८०००० थी और इन्हीं के कारण आगे चलकर तुगलुक साम्राज्य का विघटन हुआ जिसके लक्षण फीरोज के अंतिम दिनों में ही प्रकट होने लगे। फीरोज के बाद तुगलक द्वितीय, अबूबक्र, मुहम्मद तृतीय, सिंकंदर प्रथम, महमूद और नुसरतशाह नामक छह तुगलुक सुल्तान तख्त पर बैठे जिनका समय आपसी झगड़े में ही बीता।
इस अवधि में एक ही समय दो-दो सुल्तान तख्तनशीन हुए थे। महमूद के शासनकाल में तैमूर का प्रसिद्ध आक्रमण सन् १३६८ में हुआ जिसने तुगलुकों की रही सही शक्ति भी समाप्त कर दी। अंत में दौलतखाँ नामक एक सरदार को शासन सँभालना पड़ा जिसके बाद सैयदों का शासन आरंभ हुआ।(शिवप्रसाद मिश्र)