तालिराँ परीगोर, शार्लमोरिस द तालिराँ परीगोर (१७५४-१८३८) का जन्म १२ फरवरी १७५४ में पेरिस में हुआ। इसके पूर्वजों को फ्रांस के राजदरबार के सामंतो में विशेष स्थान प्राप्त था। कालांतर में तालिराँ क्रांतिकारी और नेपोलियन के समय के फ्रांस में एक बड़ा कूटनीतिज्ञ ओर देशप्रेमी बना। बचपन में गहरी चोट लग जाने से वह जीवन भर के लिये लॅगड़ा हो गया था। इस अयोग्यता के कारण उसे पढ़ने लिखने का बहुत समय मिला। उसने मांटेस्क्यू और वोल्टेयर के लेख पढ़े और वह क्रांतिकारी विचारों से बहुत प्रभावित हुआ। लँगड़ाने के कारण सह सेना में नहीं जा सकता था, इसलिये १७८९ में चर्च का बिशप बना। अपने विचारों के कारण चर्च का पक्ष न लेकर उसने उन सुधारकों का पक्ष लिया जो चर्च में परिवर्तन लाला चाहते थे। जब फ्रांस में क्रांति शुरू हई तो उसी के प्रस्ताव पर राष्ट्रकार्य के लिए जब्त कर ली। इस कारण २१ जनवरी १७९१ को उसे चर्च से संबंध विच्छेद करना पड़ा। अपना दुराचरण के लिये कुख्यात होने के कारण वह पेरिस की सभा में निर्वाचित होने से भी वंचित कर दिया गया परंतु क्रांतिमय पेरिस में वह शांति स्थापित करने का प्रयत्न करता रहा।
इस समय फ्रांस को पड़ोसी देशों से आक्रमण का बड़ा भय था, विशेषकर इंग्लैड से। इसीलिये जनवरी १७९२ में वह लंदन में राजदूत बाकर भेजा गया। लेकिन फ्रांस में राजा के पतन के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि उसे इंग्लैड से भागना पड़ा और वह अमेरीका चला गया।
वातावरण अनुकूल पाकर जुलाई, १७९३ में वह पेरिस लौटा ओर अगले वर्ष डायरेक्टरी की ओर से फ्रांस का विदेशमंत्री नियुक्त हुआ। वह जानता था कि डायरेक्टरी का शासन बहुत दिनों तक नहीं चलेगा और इसी बीच नेपोलियन बोनापार्ट से उसके संबंध भी अच्छे होते गए। नेपोलियन को फ्रांस के पुननिर्माण में जो शांति कायम रखनी थी उसमें तालिराँ का मुख्य उद्देश्य था। उसने इटली, स्विटजरलैंड और जर्मनी में नेपोलियन के प्रभाव की वृद्धि में भी सहायता की।
जब मई १८०४ में बोनापार्ट प्रथम कौंसल (First Consul) से सम्राट् तो तालिराँ साम्राज्य का विदेश मंत्री नियुक्त हुआ। २६ दिसंबर १८०५ में आस्ट्रिया और फ्रांस के बीच प्रेसवर्ग में संधि हुई। इससे परास्त आस्ट्रिया को बहुत हानि हुई। इस संधि को लागू करने में तालिराँ का बहुत बड़ा हाथ था। १८०९ में फ्रांस के विदेशमंत्री ने अपना प्रभाव डालकर आस्ट्रिया की राजकुमारी से नेपोलियन का विवाह करा दिया और इस प्रकार नेपोलियन का यूरोप के राजघरानों में पर्दार्पण करा दिया।
परंतु जैसे जैसे समय बीता, शांतिप्रिय तालिराँ के और युद्धप्रेमी नेपोलियन के विचारों में संघर्ष होने लगा। तालिराँ को नेपोलियन की स्पेन के प्रति नीति पसंद नहीं थी आर्थ जब १८१२-१३ में नेपोलियन ने इसपर आक्रमण किया तो तालिराँ ने इसका विरोध किया, परंतु उसका त्यागपत्र नेपोलियन ने स्वीकार नहीं किया।
नेपोलियन के पतन के बाद पेरिस के बाद पेरिस की सीनेट ने १८१४ में तालिरां की अध्यक्षता में एक सरकार स्थापित की। अब तालिरां ने इस बात का पूरा प्रयत्न किया कि किसी तरह फ्रांस को विभाजित होने से बचाया जाए और यह उसके प्रयत्नो का फल था कि नेपोलियन के पतन के बाद भी फ्रांस की सीमाएँ लगभग १७९२ की सीमाओं के सुदृड़ रहीं। वियना के के संम्मेलन में तालिराँ १८ व८ वें लुई की ओर से फ्रांस का प्रतिनिधि बनकर गया। इसने इंग्लैंड ओर आस्ट्रिया को अपनी ओर मिलाकर रूस को पोलैंड हड़पने से रोका, फ्रांस में फिर से बूर्बन राजवंश को स्थपित करने में मदद की और पड़ोसी देशों को फ्रांस के साथ उदारता का व्यवहार करने को तैयार किया। १८३० में वह फ्रांस का राजदूत बनकर फिर इंग्लैड गया।
तालिराँ की देशभक्ति, उसकी चतुरता और उसकी कूटनीति ने उसे फ्रांस में सर्वप्रिय बना दिय। इसलिये जब १७ मई १८३८ में उसकी मृत्यु हुई तो देशभर में इसपर शेक मनाया गया।
(किशोसीसरन लाल )