तारामंडल कुछ चमकीले तारों के समूह हैं, जो आकाश
को विभिन्न भागों में बाँट देते हैं। तारामंडलों में से कुछ के
नाम किसी जीव की आकृति से साम्य होने के आधार पर रखे गऐ
हैं। यद्यपि ऐसे कुछ तारों में साधारणत: स्पष्ट साम्य नहीं प्रतीत
होता, तथापि उनमें थेड़ी भी कल्पना का योग करने से है उनके
नाम के जीवों की आकृति सपष्ट हो जाती है। अधिकांश
तारामंडलों का वर्णन मिलता है, तथापि उनके अंतरराष्ट्रीय नाम
यूनानी ज्येतिषी, टॉलिमी की पुस्तक ऐल्माजेस्ट (Almagest) के आधार पर है। इन्होने नामों की उस
सूची को अपने पूर्ववर्ती ज्योतिषी हिपार्कस (Hipparchus) से प्राप्त किया था, किंतु इसका यह अभिप्राय नहीं कि
तारामंडलों के नाम यूनान मूलक है। प्राचीन संग्रहालयों में
सूरक्षित मिट्टी की पट्टियों के अध्ययन से पता चला है कि यफ्रूेटियन
लोगों (Euphratean) में पहले से ही
तारामंडलों के अध्ययन की प्रथा थी। बैबिलोनिया के निवासियों
को ३६ तारामंडल (१२ उत्तरी गोलार्ध के, १२ राशिचक्रों तथा १२
दक्षिणी गोलार्ध के) ज्ञात थे। परंपरा से यह प्रथा संदर्भ मिलते
हैं। अराटस (Aratus) नामक यूनानी (ई०
पू० तृतीय शतक) ने अपने ग्रंथ फिनॉमिना (Phenomina)
में सर्वप्रथम ४४ तारामंडलों का उल्लेख किया है, जिनमें १९ उत्तरी
गोलार्ध के, १३ राशिचक्र के तथा १२ दक्षिणी गोलार्ध के हैं।
हिपार्कस के पूर्व कृत्तिका नक्षत्र (Pleiades) को एक
स्वतंत्र तारामंडल माना जाता था, पर इन्होंने इसका अंतर्भाव
वृष पुस्तक में ४८ तारामंडलों के नाम हैं। टॉलिमी के बाद
तारामंडलों की ओर विशेष ध्यान ईसा की १७वीं शताब्दी में
दिया गया, जब बाअर (Bayer), हिवीलियस (Hevelius) प्रभृति ज्योतिषियों ने दक्षिणी गोलार्ध के
बहुत से उपेक्षित तारामंडलों का अध्ययन करके उनका नामकरण
किया तथा प्राचीन ज्योतिषियों द्वारा अधूरे ढंग से वर्णित
तारामंडलों को सुव्यवस्थित किया। १८वीं शताब्दी के मध्य में ला
कैली नामक ज्योतिषी ने दक्षिणी गोलार्ध में १४ तारामंडलों के
नामों की वृद्धि की तथा नौका (Argo Navis) नामक
तारामंडल को नौतल (Carina), मालस (वर्तमान
नौदिक सूचक, Pysus), नौपथ (Puppis) तथा नौवस्त्र (Vela) में बाँट दिया। तब से
किसी नए तारामंडल को मान्यता नहीं मिली है।
तारामंडलों के तारों के नाम -
अंतराष्ट्रीय प्रणाली में, अवरोहक्रम से चमकीले तारों के नाम
तारामंडल के पहले यूनानी अक्षरों को अकारादि क्रम से रखकर
व्यक्त किए जाते हैं, जैसे ऐल्फा एरीज (Aris) का अर्थ
है, मेष तारामंडल का सबसे चमकीला तारा। जब युनानी अक्षर
समाप्त हो जाते हैं तो रोमन वर्णमाला के लघु अक्षरों का
प्रयोग किया जाता है। चल तारों को व्यक्त करने के लिये
तारामंडलों के नाम के पूर्व रोमन वर्णमाला के बड़े अक्षरों आर
(R), एस (S) टी (T) आदि का प्रयोग किया जाता है। कम चमकीले तारों को
व्यक्त करने के लिये अंकों का प्रयोग किया जाता है। पलैमस्टीड
की १७२५ ई० में प्रकाशित तारासूची के अंकों को व्यवहारत:
मान्यता प्राप्त हो गई है। जो तारे उस सूची में नहीं हैं उनके
लिये ही अन्य तारासूचियों की संख्याओं को मान्यता मिली
है।
तारामंडलों की सीमाएँ - सन् १८०१ में
बोडे (Bode) ने तारामंडलों की सीमाएँ निर्धारित कीं।
किंतु यह सीमानिर्धारण प्रामाणिक नहीं था, क्योंकि इसके
अनुसार विभिन्न सूचियों में उपलब्ध सीमावर्ती तारे पृथक्
पृर्थक्तारामंडलों में पड़ जाते थे। इस कठिनाई को दूर
करने के लिये सनऋ १९३० में अतंरष्ट्रीय ज्येतिष संघ ने इन
सीमाओं का प्रामणिक निर्धारण किया।
तारामंडलों का वितरण - तारामंडल तीन क्षेत्रों में विभाजित
हैं: (अ) राशिचक्र के तारामंडल, (ब) राशिचक्र तथा उत्तरी ध्रुव के
मध्यवर्ती तारामंडल। इनके विवरण में तारों के बाद कोष्ठ में
दिया जानेवाला अंक उनकी दृश्य कांति का सूचक है। तारामंडल के
नाम के तुरंत बाद की लिखी तिथि उनके उत्तर याम्योत्तरगमन को
सूचित करती है।
अ राशिचक्र के तारामंडल
(Zodiaca
constellations) - इनकी १२ संख्या
प्रसिद्ध है। राशिचक्र की यह प्रथम प्रकार राशिचक्र के तारामंडलों
की संख्या १३ हो जायेगी। यदि हम वामावर्त से (anticlockwise) लें तो राशिचक्र के तारामंडल इस प्रकार
है:
(१) मेष (Aries) -
३० अक्तूबर; यह त्रिकोण, तिर्मिगल तथा मीन के मध्य में स्थित है
राशिचक्र की यह प्रथम राशि है।
(२) वृष (Taurus) - ३०
नवंबर; यह मेष, परशु, मृग तथा प्रजापति के पध्य में है।
अलस्योन (१) इसके मुख्य तारे हैं।
(३) मिथुन (Gemini) - ५
जनवरी; यह प्रजापति, मृग तथा ध्घुश्वान के भीतर स्थित है।
इसके मुख्य बारे केस्टर (१) तथा पॉलक्स (१) हैं।
(४) कर्क (Cancer) - ३०
जनवरी; यह पॉलक्स तथा मघ के मध्य में स्थित है। इसमें
चमकीले तारे नहीं हैं।
(५) सिंह (Leo) - १
मार्च; इसके तारे चमकीले हैं। मघा (१) क्रांतिवृत्त पर स्थित
हैं।
(६) कन्या (Virgo) - ११
अप्रैल; यह काक, वासुकि, सर्प तथा भूतेश के मध्य में स्थित है।
इसका मुख्य तारा चित्रा (१) है।
(७) तुला (Libra) - ९
मई; यह कत्या, वृक (Lupus) तथा वृश्चिक के मध्य
स्थित है। पतंग की आकृति का है।
(८) वृश्चिक (Scorpio) - ३०
जून; यह सर्पधर तथा सर्प के दक्षिण में स्थित वृश्चिक के आकार
का है। इसका ज्येष्ठा तारा (१) विशाल है
(९) धनु (Sagittarius) - ७
जुलाई; यह वृश्चिक तथा गरुड़ (Aquila) के मध्य में
सिथत है। हमारी आकाशगंगा के केंद्र की दिशा भी इसी
तारामंडल में है!
(१०) मकर (Scorpio) - ८
अगस्त; यह तारामंडल गरुड़, धनु, दक्षिणी मीन तथा मीन के मध्य
में स्थित है।
(११) कुंभ (Aquarius)
- २५ अगस्त; यह विशाल तारामंडल खगाश्व (Pegasus)
के दक्षिण में स्थित हैं।
(१२) मीन (Pisces) - २७
सितंबर; यह तारामंडल खगाश्व से नीचे कुंभ से लेकर मेष तक
फैला हुआ तारों की रेखा सा है।
(१३) सर्पधर (Ophiuchus)
- ११ जून; यह विषुवद् वृत्त को काटते हुए वृश्चिक तथा धनु के
मध्य से जाता है।
(ब) राशिचक्र तथा उत्तरी ध्रुव के मध्यवर्ती तारामंडल - इनकी
संख्या २८ है, जिनका विवरण निम्नलिखित है:
- लघु सिंह (Leo Minor) - २३ फरवरी; सिंह के हँसुए से ठीक ऊपर धुँधले
तारों की एक लघु रेखा सा दिखाई देता है।
- सप्तर्षि (Ursa Major) -
११ मार्च; इसके सात तारे सप्तर्षियों के प्रतीक माने जाते हैं।
ऋतु (१) तथा पुलह (२) तारे दिक्सूचक हैं।
- लघु सप्तर्षि (Ursa Minor) - १३ मई; यह खगोलीय ध्रुव के अति समीप होने के
कारण उत्तर दिशा का सूचक है। ध्रुवतारा (२) इसकी पूँछ का
अंतिम तारा है। ध्रुवतारा तथा दूसरा चमकीला तारा कोकाव (२)
की दिशा में भूतेश (Bootes) तारामंडल
है।
- विडाल (Lynx) - १९
जून; मिथुन तथा सप्तर्षि के बीच धुँधले तारों की लंबी पंक्ति
सा है
- प्रजापति (Auriga) - २१
दिसंबर; वृष तथा मिथुन के मध्य, उनसे उत्तर की ओर स्थित है।
आकाशगंगा (galaxy) इसमें से होकर
जाती है। चमकीला तारा ब्रह्महृदय (Capella) मृग तथा
ध्रुव के मध्य में है।
- चित्रोष्ट (Camelopardalis)
- २३ सितंबर; ध्रुव (Polaris) तथा ब्रह्महृदय
(Capella), के मध्यवर्ती धुँधले तारों का
तारामंडल है।
- परशु (Perseus) - ७
नवंबर; आकाशगंगा की पेटी में स्थित यह तारामंडल वृष,
प्रजापति तथा काश्यपी (Cassiopeia) से घिरा है।
इसका मुख्य मिर्फक (१) है तथा अलगूल (Algol)
(२) प्रसिद्ध चल तारा (ग्रहणकारी युग्मतारा) है।
- त्रिकोण (Triangulum) -
२३ अक्टूबर; यह त्रिभुजाकार तारामंडल मेंष, परशु तथा
देवयानी (Andromeda) के मध्य में स्थित
है।
- देवयानी (Andromeda) - ९ अक्तूबर; यह काश्यपी के ठीक नीचे खगाश्व (Pegasus), मीन तथा त्रिकोण से घिरा है। इसका
प्रथम तारा अल्फराज (Alpheratz) (२), खगाश्व के वर्ग
के उत्तर-पूर्व कोण का शीर्ष बिंदु है। इसकी चक्षुदृश्य
नीहारिका सर्पिल आकार की आकाशगंगा (spiral galaxy)
है।
- काश्यपी (Cassiopeia) -
देवयानी से ठीक ऊपर तथा ध्रुवतारा के नीचे, आकाशगंगा
में निमग्न, यह तारामंडल रोमन लिपि के डब्ल्यू (W) अक्षर के आकार का है।
- खगाश्व (Pegasus) - १
सितंबर; देवयानी के नीचे स्थित है। इसके वर्गाकार तारे
ध्यानाकर्षक हैं।
- सरट (Lacerta) - २८
अगस्त; खगाश्व के ऊपर स्थित धुँधला तारामंडल है।
- कपिश (Capheus) - २९
सितंबर; यह काश्यपी, हंस तथा ध्रुवतारा के मध्य स्थित है।
आकाशगंगा इसमें होकर जाती है। इसका चतुर्थ तारा
सिफीड चल तारों का प्रतिनिधि है।
- हंस (Cygnus) - ३०
जुलाई; यह हंस के नीचे आकाशगंगा के विरल भाग में स्थित
है। आकाशगंगा इससे होकर जाती है। इसका प्रथम तारा
देनेब (Deneb), (१) है।
- लोमश (Vulpecula) - २५
जुलाई; यह हंस के नीचे आकाशगंगा के विरल भाग में स्थित
है।
- बाण (Sagitta) - १६
जुलाई; यह लोमश तथा गरुड़ के अल्तायर (Altair)
तारे के मध्य में स्थित है।
- गरुड़ (Aquila) - यह
बाण के नीचे स्थित है। आकाशगंगा इससे होकर जाती है।
इसका प्रथम तारा अल्तायर (Altair) (१), हंस का
देनेब तथा वीणा (Lyra) का अभिजित (Vega), ये तीनों चमकीले तारे एक त्रिभुज बनाते हैं।
- समुद्रमीन (Delphinus) ३१ जुलाई; यह गरुड़ के पूर्व में आकाशगंगा के नीचे
पाँच तारों के गुच्छ के समान दिखाई देता है।
- अश्व (Equuleus) - ८ अगस्त;
यह खगाश्व तथा समुद्रमीन के मध्य्व्राती, अत्यंत समीपवर्ती तारों
के त्रिभुज के आकार का है।
- सर्प (Serpens) - ६
जून; इसे सर्पधर पृथक पुच्छ और सिर, दो भागों में
पूर्णतया बाँटता है। इसके सिर के उत्तर में उत्तर किरीट
(Coroa
Borealis) तथा पूर्व में भीम
(Hercu'es) सर्पधर हैं। इसकी पूँछ सर्पधर हैं।
इसकी पूँछ सर्पधर तथा गरुड़ के मध्य में है। इसके दोनों
भाग विषुवदवृत (Celestial Equator) से होकर
जाते हैं।
- ढाल (Sectum) - १
जुलाई; यह सर्प गरुड़ तथा धनु के बीच में स्थित
है।
- वीणा (Lyra) - ४
जुलाई; यह हंस तथा भीम के मध्य स्थित है। इसका अति
चमकीला तारा अभिजित (१) है। इसका आर-आर-लाइरा तारा
अपने वर्ग के अल्पकालिक (short period) तारों का
प्रतिनिधि है।
- भीम (Hercules) - १३
जून; यह वीणा, सर्पधर तथा उत्तर किरीट के मध्य में स्थित है।
इसके चार चमकीले तारों से एक चतुर्भुज बनता है
- उत्तर किरीट (Corona Borealis) - १९ मई; यह भूतेश तथा भीम के मध्य तारों से वृत्ताद्ध
की आकृति बनाता है।
- कालिय (Draco) - २४
मई; यह उत्तर किरीट, भीम तथा भूतेश से उत्तर तथा लघु
सप्तर्षि के नीचे स्थित, आकर्षक तथा विस्तृत तारामंडल
है।
- भूतेश (Bootes) - २
मई; कन्या (Virg) उत्तर किरीट तथा सप्तर्षि
(Ursa Major) से घिरे हुए इस तारामंडल का प्रथम
स्वाति (Arcturus) (१) उत्तरी गोलार्थ के
अत्यंत चमकीले तारों में तृतीय स्थान रखता है।
- मृगया-श्वान (Canes Venatici) - ७ अप्रैल, यह मृगयाश्वान तथा कन्या के मध्य में स्थित
है।
- केश (Coma Berenices)
- २ अप्रैल, यह मृगयाश्वान तथा कन्या के मध्य में स्थित
है।
स. राशिचक्र तथा दक्षिणी ध्रुव के मध्यवर्ती तारामंडल-इनकी
संख्या ४७ है। ये निम्नलिखित हैं।
- मृग (Orion) - १३ दिसंबर;
यह सब तारामंडलों से अधिक चमकीला है। इसके चार चमकीले
तारे राइजेल (Rigel) (१), तथा सैफ
(Saiph) (२) हैं। चतुर्भुजाकार
चमकीले तारों के बीचों बीच तीन चमकीले तारों की एक रेखा
सी है, जो पौराणिक कल्पनानुसार व्याध का शर है।
- शश (Lepus) १४ दिसंबर;
यह मृग से के नीचे, मृग (Orion) तथा कपोत (Columba) के मध्य में स्थित है।
- टंक (Caelum) - १ दिसंबर;
यह शश के दक्षिण, कपोत तथा असिमीन के मध्य, प्रथम तथा चतुर्थ
तारे से लघु सरल रेखाकार दिखाई देता है।
- असिमीन (Dorado) - १७
दिसंबर; यह मृग से अति दक्षिण शश की दिशा में स्थित है।
- जाल (Reticulum) -
१९ नवंबर; यह असिमीन तथा जलसर्पिणी के मध्य में स्थित है।
- जलसर्पिणी (Hydrus)
- २६ अक्तूबर; यह जाल के दक्षिण शश की दिशा में स्थित है।
- होरामापी (Horologium) - १० नवंबर; यह वैतरणी, शश तथा जलसर्पिणी के मध्य
में स्थित है।
- वैतरणी (Eridanus) - १०
नवंबर; यह मृग के राइजेल तारे से प्रारंभ होकर जोलर
तिर्मिगल (Cursa) तक फैली हुई तारों
की धुमावदार विशाल नदी सी है। इसके मुख्य तारे हैं: आखरनार
(Achernar) (१) तथा कर्सा (Cursa) (३)।
- भ्राष्ट (Fornax) - २ नवंबर;
यह वैतरणी, तिर्मिगल तथा गृध्र (Phoenix)
के मध्य स्थित है।
- तिर्मिगल (Cetus) - १ अक्तूबर;
यह वैतरणी, भ्राष्ट, शिल्पी तथा मीन (Pisces) के मध्य स्थित है। इसके मुख्य तारे मेंकर
(Menkar) तथा डिफडा (Difda) (२) हैं। इसका तारा मीरा (Mira) दीर्धकालिक चल तारा है।
- शिल्पी (Sculptor) - २६
सितंबर; यह तिर्मिगल, गृध्र तथा दक्षिण मीन (Piscis Australis) से घिरा है।
- गृध (Phoenix) - ४
अक्तूबर; वैतरणी (Eridanus), चक्रवाक (Tucana) तथा बक (Grus)के मध्य स्थित
है। इसका मुख्य तारा नैर अल ज़ाउरक (Nair al Zaurak) हैं।
- चक्रवाक (Tucana) - १७
सितंबर; यह जलसर्पिणी, बक तथा गृध्रं के बीच स्थित है।
- अष्टांशक (Octans) - इसमें
दक्षिण ध्रुव (South Pole) है। अत: यह दक्षिणी
गोलार्ध का सदोदित तारामंडल है।
- बक (Grus) - २८ अगस्त;
यह दक्षिण मीन तथा चक्रवाक के मध्य में स्थित है। इसका मुख्य
तारा अल नैयर (Al
Nair) (२) है।
- दक्षिण मीन (Piscis Austrialis) - २५ अगस्त; मकर (Capricornus) के दक्षिण में इसका प्रथम तारा फामलहाट (Fomalhaut) (१) खगाश्व के वर्ग के दाहिनी भुजा के
तारों की दिशा में है।
- सूक्ष्मदर्शी (Microscopium) - ४ अगस्त; यह धनु (Sagittarius), मकर तथा
दक्षिण मीन के मध्य में स्थित धँुधला तारामंडल है।
- सिंधु (Indus) - १२ अगस्त;
यह मकर के दक्षिण में बृक (Lupns) तथा
धनु से घिरा है।
- मयूर (Pavo) - १५ जुलाई;
यह धनु के दक्षिण में है, जिसका मुख्य तारा मयूर (Peacock) (२) है।
- दूरदर्शी (Telescopium)
- १० जूलाई; यह धनु के दक्षिण तथा मयूर से ऊपर धुँधला
तारामंडल है।
- दक्षिण किरीट (Corona Australis) - ३० जून; यह धनु तथा दूरदर्शी के मध्य धुँधले तारों
के वृत्तार्ध के आकार का है।
- वेदी (Ara) - १० जून
यह वृश्चिक (Scorpio) की पूँछ के नीचे आकर्षक
तारामंडल है। इसका कूछ भाग आकाशगंगा में है।
- गुनिया (Norma) - १९ मई;
वृश्चिक के दक्षिण में धँुधले तारों के गुनिए जैसा दिखाई
पड़ता है।
- दक्षिण त्रिकोण (Triangulum Australis) - २३ मई; यह वृश्चिक के अति दक्षिण चमकीले
तारों के त्रिभुज के आकार का है।
- खग (Apus) - २१ मई;
यह दक्षिण त्रिभुज कोण के दक्षिण में अष्टांशक (Octans) तथा मयूर (Pavo) से घिरा
है।
- बृक (Lupus) - ९ मई;
यह तुला के नीचे चमकीले तारों का तारामंडल है।
- परकार (Circinus) - ३०
अप्रैल; यह बृक से दक्षिण, दक्षिण त्रिकोण तथा किन्नर के मध्य
स्थित धुँधले तारों की लघु रेखा सा है।
- किन्नर (Centaurus) -
३० मार्च; यह कन्या के दक्षिण चमकीला तारामंडल है। इसका
प्रथम तारा रीजल केंटारस (Rigil Kentaurus) (१) अति चमकीला
है तथा पृथ्वी के निकटतम तारों में है।
- स्वस्तिक (Crux) - २८ मार्च;
यह किन्नर के प्रथम तथा द्वितीय तारों के निकट पश्चिम में, चमकीले
तारों के क्रास (+) के आकार का है। इसके
समीप आकाशगंगा के प्रदेश में तारों का अभाव है।
- मक्षिका (Musca) - ३० मार्च;
यह स्वस्तिक के ठीक दक्षिण में स्थित है।
- काक (Corvus) - 28 मार्च; यह कन्या
के नीचे, समभुज चतुर्भुज के आकार का है।
- चषक (Crater)--१२
मार्च; यह सिंह के त्रिभुज के नीचे, काक के दाहिनी ओर स्थित है।
- वासुकि (Hydra)--१५
मार्च; यह कर्क (Cancer)
के नीचे चार समीपवर्ती तारों के समूह से ाुरू होकर, चित्रा (Spica)
तक फैला है। इसका प्रथम तारा अलफर्द (Alphard)
[२]
मधा (Regulus)
के नीचे है।
- षष्ठाांक (Sextans)--२२
फरवरी; यह सिंह के हँसुए के नीचे वासुकि तथा चषक के मध्य
में स्थित है।
- ऐंटलिया (Antlia)--२४
फरवरी; यह वासुकि के दक्षिण, वासुकि तथा नौवस्त्र के मध्य में
है।
- नौवस्त्र (Vela)--१३
फरवरी; यह ऐंटलिया के दक्षिण, आकर्षक तारामंडल है। इसका कुछ
भाग आकाागंगा में है।
- नौपथ (Puppis)--८
जनवरी; यह वृहत्वान (Canis Major)
के दक्षिण में है। इसका कुछ भाग आकाागंगा में है।
- नौतल (Carina)--३१
जनवरी; यह नौपथ के दक्षिण में है। इसका प्रथम तारा अगस्त्य (Canopus)
चमक के विचार से दूसरे स्थान पर है।
- कृकलास (Chamaeleon)--१
मार्च; यह नौवस्त्र के अति दक्षिण में, मक्षिका तथा खग से घिरा
है।
- वोलैंज (Volans)--१८
जनवरी; यह कृकलास तथा नौपथ के मध्य में स्थित है।
- चित्रक (Pictor)--१६
दिसंबर; यह नौतल तथा असिमीन के मध्य में स्थित है।
- नौदिकसूचक (Pyxis)--४
फरवरी; यह वासुकि नौपथ तथा नौतल के मध्य में है।
- लघुवान (Canis
Minor )--१४ जनवरी; यह मिथुन
के नीचे स्थित है। इसका प्रथम तारा प्रोस्थोन (Procyon)
[1] लुब्धक
(Sirius)
तथा आर्द्रा से एक वृहत्समभुज त्रिभुज बनाता है।
- एकशृंग (Monoceros)--५
जनवरी; यह लघुवान तथा वृहत्वान के आकाागंगा को काटते हुए
जाता है।
- वृहत्वान (Canis
Major )--१४ जनवरी; यह मृग
के दक्षिण में आकर्षक तारामंडल है। इसका लुब्धक तारा सर्वाधिक
चमकीला है।
- कपोत (Columba)--१८
दिसंबर; यह मृग वृहत्वान तथा नौपथ से घिरा है।
- पठार (Mensa)-१४
दिसंबर; यह ववोलैंज़, आंसमीन तथा जलसर्पिणी से घिरा, अति
दक्षिण में स्थित तारामंडल है। (मुरारिलाल
शर्मा)