डैलिया (Dahlia) सूर्यमुखी कुल, द्विदली वर्ग का पौघा है इसका वितरणकेंद्र मेक्सिको तथा मध्य अमरीका में है। डाह्ल नामक स्वीडिश वृक्षविशेषज्ञ की स्मृति में लिनीयस ने इस पौधे का नाम डैलिया या डाहलिया रखा। इसके पौधे २-२ १/२ मीटर तक ऊँचे होते हैं, परंतु एक बौनी जाति केवल १/२ मीटर ऊँची होती है। डैलिया के पौधों की जड़ों में खाद्य पदार्थ एकत्र होकर उन्हें मोटी बना देते हैं। इनके फूल सूर्यमुखी के सदृश होते हैं। इनकी नई किस्मों में गेंद के समान गोल तथा रंग बिरेंगे फूल जगते हैं।

डैलिया की नई किस्में बीज से पैदा की जाती हैं। डैलिया की जड़ें, जिनमें छोटी छोटी कलियाँ होती है, पौधों का रूप लेने की क्षमता रखती हैं। ये जड़ें छोटे छोटे टुकड़ों में इस प्रकार काटी जाती हैं कि हर टुकड़े में एक कली हो। इन टुकड़ों को जमीन में बोने पर, कलियों से नए पौधे निकलते हैं। कभी कभी इसके तने की कलम भी काटकर लगाई जाती है और उससे भी नए पौधे पैदा किए जाते हैं। डैलिया के पौधे अधिकतर खुली जगह तथा खादयुक्त, बलुई मिट्टी में भली भूंति विकसित होते हैं। अधिक शीत पड़ने पर इसके फुल मर जाते है। ऐसी दशा में इसकी जड़ें साफ करके दूसरे मौसम में बोने के लिये रख ली जाती है इसके पौधों पर कीड़े भी लगते हैं, जो संखिया के छिड़काव से मारे जाते हैं।

महत्व- रंगबिरंगे फूलों के कारण डैलिया के पौधे बागों की शेभा बढ़ाने के लिये लगाए जाते हैं। इसकी १२ जातियाँ (species) पाई जाती हैं। [ कैलाश चंद्र मिश्र]