डेवी, सर हफ्रीं (सन् १७७८-१८२९) का जन्म १७७८ ई० में इंग्लैंड के पेजैंस नामक स्थान में हुआ। यहीं तथा ट्ररो में इन्हें शिक्षा मिली। पिता की मृत्यु के बाद ये दवा की दुकान में नौसिखिए की तरह काम करते रहे, जहाँ रसायन के प्रति इनकी रूचि जगी। उन्होंने लाव्वाज़्ये (Lavoisier) के ग्रंथ का अध्ययन करके उपलब्ध उपकरणों से ही प्रयोगात्मक कार्य प्रारंभ किया। डा० बेडोस ने इन्हें व्रस्टल में स्वस्थापित मेडिकल न्यूमैटिक इस्टिट्यूशन का निरीक्षक बनाया, जहाँ विभिन्न गेसों के शरीर क्रियात्मक (physiological) प्रभावों के अध्ययन के प्रयत्न में इन्होंने सन् १७९९ में नाइट्रस ऑक्साइड के अदॅभुत, विषाक्त गुणधम्र की महत्वपूर्ण खोज की। सन्१८०१ में काउंट रम्फोर्ड ने इन्हे रॉयल इंस्टिट्यूट ऑव लंदन में पहले अध्यापक, तत्पश्चात् प्रोफेसर के रूप में नियुकत किया। यहीं डेवी ने महत्वपूर्ण खोजें कीं। विद्यू द्वारा के द्वारा इन्होंने (सन् १८०७-१८०८) पोटासियम, सोडियम, बेरियम, स्ट्रांशियम, कैलसिमय तथा मैग्नीशियम तत्वों का पृथक्करण किया। सन् १८१० में शेले द्वारा प्राप्त यौगिक, म्यूरियैटिक अम्ल गैस, को क्लोरीन तत्व सिद्ध कर दिखाया। सन् १८१६ में कोयले की खानों में गैस के धड़ाकों से रक्षा के लिये डेवी लैंप का आष्विकार किया। सन् १८२७ में इन्हें प्रथम बार पक्षाघात हुआ। अंत में ५१ वर्ष की ही आयु में २९ मई१८२९, को जेनेवा में इनका देहांत हो गया।

ख्यातिप्राप्त रसायनज्ञ होते हुए भी, डेवी ने कृषि रसायन पर एक ही पुस्तक लिखी। यह पुस्तक सन् १८०२ से १८१२ तक की अवधिमें ब्रिटिश बोर्ड आँव ऐग्रिकल्चर के समक्ष दिए गए व्याख्यानों का संग्रह है, जो एलमेंट्स ऑव ऐग्रिकल्चर नाम से सन् १८१३ में लंदन से प्रकाशित हुई। [ शिवगोपाल मिश्र]