डेबारी, हाइनरिख ऐंतॉन (De Bary, Heinrich Antion, सन् १८३१-१८८८) जर्मन वनस्पतिज्ञ थे। इनका जन्म फ्रांकफुर्ट आम माइन (Frankfurl am Main) में हुआ था। उन्होंने हाइडेलबर्ग, मारबर्गतथा बर्लिन में चिकित्सा की शिक्षा पाई।

सन् १८५५ में ये फ्राइबर्ग (Freiburg) में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर नियुक्त हुए। यहाँ से सन् १८६७ में हाले (Halle) तथा सन् १८७५ में स्टैसबर्ग (Strasboug) चले गए। उपर्युक्त स्थान के विश्वविद्यालय के ये सर्वप्रथम रेक्टर (Rector) हुए।

डेवारी आधुनिक कवक विज्ञान के संस्थापक थे। इन्होंने सन् १८६६ में एक पुस्तक लिखकर वनस्पति विज्ञान की इस शाखा में क्रांति उत्पन्न कर दी। सहजीवन (symbiosis) तथा शैवालों (lichens) की द्वैध प्रकृति के वास्तविक अर्थ का यथोचित मूल्यांकन, इनकी चमत्कारी सिद्धियों में से है। जीवों के विकास को यथार्थ बातों पर आधृत कर व्यापक रूप देने का इनका कार्य इनकी ख्याति के लिये अकेला ही यथेष्ट है, किंतु जिस अनुसंधान ने इन्हें १९वीं सदी के वनस्पतिज्ञों में सर्वप्रमुख बनाया वह कवकों के संबंध में था। उन्होंने इनके संबंध की ऐसी अनेक बातों का पता लगाया जाय जो किसी को स्वप्न में भी न सूझी थीं।

संक्रमण के वास्तविक अर्थ की खोज इनका सर्वाधिक लाभदायक आविष्कार था। परजीवी (parasite) और मृतोपजीवी (saprophyte) के प्रमुख भेदों को इन्होंने स्पष्ट कर दिया। इन खोजों के फलस्वरूप महमारी रोगों के कारणों पर प्रकाश पड़ा।

इन्होंने आलू के रोग, गेहूँ के रतुए, बीजाणुओं तथा शैवालों के संबंध में अनेक महत्व की खोजें की तथा असेचन जनन (parthenogenesis) और अपयुग्म जनन (apogamy) के अस्तित्व को सिद्ध किया।

सन् १८७७ में इनकी पुस्तक कंपैरेटिव ऐनॉटोमी ऑव फर्न्स ऐंड फेनेरोगैम्स तथा सन् १८८५ में लेक्चर्स ऑन वैक्टीरिया प्रकाशित हुई। [ भगवानदास वर्मा]