डिफो, डैनियल अंग्रेजी उपन्यासकार, पत्रकार, पैंफ्लेट लेखक। डैनियल डिफो का मूल कुलनाम फो था, जो बाद में उसने डिफो कर लिया। उसका जन्म क्रिपलगेट में शायद १६६० ई० में हुआ था। मेरी टफले से उसका विवाह १६८४ ई० में हुआ। डिफो की मृत्यु मूरगेट में २६ अप्रैल, १७३१ ई० को हुई। डिफो के माता पिता में परस्पर विशेष प्रेम नहीं था। उसकी शिक्षा दीक्षा बहुत कम हो पाई और बचपन से ही उसे जीवनसंघर्ष में जुट जाना पड़ा। उपन्यास आदि लिखना तो ६० वर्ष की उम्र में उसने शुरू किया। उससे पहले उसे पत्रकार के नाते बहुत कलमघिसाई करनी पड़ी। उसे राजनीति में बहुत रुचि थी। १७०१ ई० में उसने 'दि ट्रूबार्न इंग्लिशमैन' नामक एक कविता लिखी जो विलियम ऑव आरेंज के सिंहासन पर आने के संबंध में थी। इसमें उन लोगों पर व्यंग किया गया था जो राजा को विदेशी मानते थे। सन् १७०२ ई० में उसने 'दि शार्टेस्ट वे विथ डिस्सेंटर्स' में इंग्लैंड के चर्च पर शाब्दिक हमला किया। तब डिफो का खासा मजाक उड़ाया गया, उसे बंदी भी बनाया गया; परंतु वह सरकार का गुप्तचर बन गया। उसके बाद उसने कई लोगों के लिए छिपकर काम किए; और ऐसा भी कहा जाता है कि उसने दोनों पक्षों के लिए परस्पर विरोधी काम एक ही समय किए। १७०४ ई० से १७११ तक डिफो ने 'दि रिव्यू' नामक पत्र का संपादन किया जिसे बाद में ऐडिसन और स्टील ने चलाया। यद्यपि ६० वर्ष की आयु तक डिफो ने कई प्रकार का लेखन किया, तथापि उसकी मुख्य ख्याति उन प्रचार पुस्तिकाओं जैसे लेखन के कारण नहीं है।
१७१९ में डिफो का एक उपन्यास 'राबिन्सन क्रूसो' प्रकाशित हुआ। यह अलैक्जैंडर सेलकर्क नामक व्यक्ति के जुआन फेर्नांदेज द्वीप पर १७०४ से १७०९ तक निर्वासन ओर एकांतवास की सत्य कथा पर आधारित उपन्यास था। इसमें एक ऐसे व्यक्ति की जीवनी है जो जहाज टूटने से अकेला एक अनजान द्वीप पर जा पहुँचता है, कुछ औज़ारों के सहारे अपनी झोपड़ी खुद बनाता है। फ्राइडे नामक सेवक एकमात्र उसका मित्र है। वहाँ उसे कैसे अद्भुत अनुभव प्राप्त होते हैं, इसका सब प्रामाणिक, ब्यौरेवार वर्णन डिफो ने प्रस्तुत किया है। यह उपन्यास छपते ही खूब बिका और अब तो विश्वसाहित्य में वह एक है। पुस्तक की सारी घटनाएँ और विवरण ऐसे सजीव हैं और मनुष्यस्वभाव का ऐसा मार्मिक वर्णन सहज प्रवाहमयी भाषा में किया गया है कि उस समय के नए नए साक्षर पाठकों के विशाल समुदाय ने पूरी कहानी को सच मान लिया। डिफो एक के बाद एक ऐसे कई औपन्यासिक वृत्त लिखने लगा। १७२० में साहसपूर्ण समुद्री डकैती पर आधारित कहानी कैप्टन सिंगलटन छपी। दो साल बाद मौल फ्लैंडर्स नामक चंचला स्त्री की जीवनी छपी, जो क्रमश: धनी और दरिद्र होते होते बुढ़ापे में जाकर अपनी प्रणयलीलाओं पर पछताती है। १७२२ ई० में छपा 'महामारी के वर्ष की दैनिकी' (जर्नल ऑव दि प्लेग ईयर) १६६५ ई० में लंदन में जो भयानक महामारी फैली थी उसका जीता जागता, आँखों देखा वर्णन डिफो ने कल्पना की आँखों से प्रस्तुत किया। कई आलोचक इसे डिफो की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं। १७२४ ई० में 'रुखसाना अथवा भाग्यवान प्रमिका' पुस्तक में फिर मौल फ्लैंडर्स जैसी चंचला स्त्री की कहानी है जो अपने सौंदर्य का जाल बिछाकर खूब संपत्ति कमाती रहती है। इन सब कथाकृतियों में क्रूसो का स्थान सर्वोपरि है। उसकी महत्ता आज भी अक्षुण्ण है। बच्चों के साहित्य में इस साहसकथा का सानी दूसरा नहीं।
२५० कृतियाँ लिखकर भी डिफो की शैली प्रसन्न और स्वाभाविक प्रवाहमयी रही। डिफो भी सभी कथाओं का अंत नैतिक उपदेश के ढंग पर सत्य और न्याय की विजय और पाप की हार होता है। परंतु कहानी के दौरान में वह पापी वेश्याओं, गुंडों, अपराधियों, समुद्री डाकुओं, साहसी नाविकों का चित्रण ऐसी यथार्थता के साथ करता जाता है कि उस समय के मध्यवर्गीय अंग्रेज पाठकों को उसकी कृतियों से बहुत आनंद मिलता था। साहित्यगुणों में विशिष्ट या बहुत ऊँची न होने पर भी उसकी रचनाएँ अत्यधिक लोकप्रिय बनीं। इसका एक कारण यह था कि वह अपने पात्र और घटनाएँ प्रत्यक्ष जीवन की वास्तव पार्श्वभूमि से लेता था और उनमें आवश्यक मात्रा में कल्पना की मिलावट करता था।