डिजरेली, बेंजामिन (बीकांजफील्ड) ब्रिटिश प्रधान मंत्री जो यहूदी लेखक आइजक डिजरेली का पुत्र था। उसका जन्म सन् १८०४ में हुआ। १३ वर्ष की उम्र में इसे ईसाई धर्म का बपतिस्मा दिलाया गया। युवावस्था में प्रवेश करते करते इसने उपन्यासों का लिखना आरंभ कर दिया। 'विवियन ग्रे' नामक रचना सन् १८२६ में प्रकाशित हुई। इसके बाद क्रम क्रम से कुछ और उपन्यास तथा कुछ राजनीतिक पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुईं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण थी 'अंग्रेजी संविधान का प्रतिसमर्थन'। सन् १८३० में जब 'दि यंग ड्यूक' नामक ग्रंथ पर उसे ५०० पौंड पारिश्रमिक प्राप्त हुआ तो वह तुर्की, फिलस्तीन, मिस्त्र आदि की यात्रा पर निकल पड़ा। इस यात्रा से उसे जो अनुभव प्राप्त हुआ उससे उसे बाद में राजनीति के क्षेत्र में अग्रसर होने में अच्छी सहायता मिली और उसकी कितनी ही रचनाओं के लिए यथेष्ट मसाला भी मिला। 'कांटैरिनी फ्लेमिंग' नामक उपन्यास में उसने बहुत कुछ अपना ही चित्र उपस्थित किया है। इसका नायक स्कैंडिनेविया के एक कल्पित राज्य के प्रधान मंत्री का पुत्र है जिसकी महत्वाकांक्षाएँ लेखक की अपनी कामनाओं और विचारों का प्रतिबिंब मात्र प्रतीत होती हैं। डिजरेली के मन में इस समय यह अंतर्द्वंद्व चल रहा था कि वह साहित्यिक जीवन को ही अपनाए रहे या राजनीतिक क्षेत्र में अग्रसर होने का प्रयत्न करे। इस आंतरिक संघर्ष की भी झलक हमें 'कांटैरिनी' में देख पड़ती है।
निदान धीरे धीरे डिजरेली ने राजनीति की ओर कदम बढ़ाना शुरू किया और ब्रिटिश संसद के चुनाव में कई बार हार जाने के बाद अंत में सन् १८३७ में उसे सफलता मिल ही गई। दो वर्ष बाद उसने अपने एक संसदीय मित्र की विधवा पत्नी से, जो उम्र में उससे १२ वर्ष बड़ी थी, विवाह किया। इस संबंध ने उसके जीवन को अधिक सुखी बना दिया। जब प्रयत्न करने पर भी पील के मंत्रिमंडल में उसे स्थान न मिल सका, तब १८४१ से १८४६ के बीच उसने 'यंग इंग्लैंड' नामक दल बनाया जो पील के अनुदारदलीय शासन के दोषों और त्रुटियों पर कड़ी नजर रखने लगा। इस अवधि में प्रकाशित उसके तीन उपन्यासों में इस दल के विचारों तथा मान्यताओं का स्थूल रूप देखा जा सकता है। सन् १८४६ में जब पील ने 'कार्न ला' (अन्न के आयात) संबंधी कानूनों को रद्द करने का निश्चय किया तो डिजरेली ने व्यंग्य और हासपरिहासयुक्त भाषणों द्वारा इसका तीव्र विरोध किया। कुछ समय के बाद ही पील की सरकार को पदत्याग कर देना पड़ा और अब धीरे धीरे डिजरेली अनुदार दल का नेता माना जाने लगा।
लार्ड डर्वी के अनुदारदलीय तीन मंत्रिमंडलों में (१८५२,१८५८-५९ तथा १८६६-६८) डिजरेली को अर्थमंत्री का पद दिया गया। सन् १८५२ में उसने अर्जित तथा अनर्जित आमदनी पर लगनेवाले आयकर में अंतर करने का प्रस्ताव किया किंतु सफलता नहीं मिली। १८५८-५९ में यहूदियों को भी संसद का सदस्य बनने का अधिकार दिया गया और भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश राजसत्ता को हस्तांतरित कर दिया गया। १८६७ में 'सुधार कानून' द्वारा मताधिकार को अधिक व्यापक बनाने का प्रयत्न किया गया। लार्ड डर्बी के अवकाश ग्रहण कर लेने पर १८६८ में डिजरेली ब्रिटेन का प्रधान मंत्री बना किंतु कुछ ही महीनों बाद के सार्वजनिक चुनाव में उसकी पराजय हुई।
सन् १८७४ में वह पुन: प्रधान मंत्री बना और उसके शासनकाल में सुधार संबंधी कई अधिनियम पारित किए गए। साम्राज्य का प्रभाव बढ़ाने का उसने विशेष प्रयास किया। स्वेज नहर के हिस्से खरीदकर उस पर नियंत्रण प्राप्त किया गया तथा महारानी विक्टोरिया को 'भारत की सम्राज्ञी' की उपाधि दी गई और युवराज को भारत की प्रथम राजकीय यात्रा पर भेजने का निश्चय किया गया। १८७६ के बलगेरियन विद्रोह और उसके बाद शुरु होनेवाले रूस तुर्की युद्ध के कारण डिजरेली तथा ग्लैडस्टन के बीच जो राजनीतिक द्वंद्व आरंभ हुआ वह कई वर्षों तक चलता रहा। दो वर्ष बाद बर्लिन की कांग्रेस से युद्ध की समाप्ति हुई। डिजरेली, जो अब लार्ड बीकन्सफील्ड हो गया था, ब्रिटिश प्रतिनिधि के रूप में इसमें संमिलित हुआ था। वहाँ से वह ''संमानपूर्ण'' समझौते के साथ वापस लौटा। सन् १८८० में संसद में हार हो जाने के कारण उसकी सरकार को पदत्याग करना पड़ा। एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो गई। [मुकुंदीलाल श्रीवास्तव]