डाल्टन, जॉन (Dalton, John) पश्चिम में परमाणुवाद के प्रवर्तक इस रसायनज्ञ का जन्म ६ सितंबर, १७६६ ई० को कंबरलैंड के ईगल्सफील्ड स्थान पर कोकरमाउथ के निकट हुआ था। १७९३ ई० में ये मैंचेस्टर में न्यू कॉलेज में गणित और भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। १८०३ ई० में इन्होंने रॉयल इंस्टिट्यूशन में व्याख्यान देने प्रारंभ किए। १७९३ ई० में, इनके ऋतुविज्ञान संबंधी जो निरीक्षण प्रकाशित हुए थे, उनमें मेरुज्योति से संबंध रखनेवाले दृश्यों का उल्लेख था। १७९४ ई० में इन्होंने वर्णांधता का विवरण दिया। वह स्वयं भी कुछ रंगों कें प्रति वर्णांध थे। इस वर्णांधता को बहुत दिनों तक डाल्टनीयता (Daltonism) कहा गया। सन् १८०८-१० के पूर्वार्ध में इन्होंने न्यू सिस्टम ऑव केमिकल फिलॉसफ़ी (New System of Chemical Philosophy) नामक निबंध प्रकाशित किया। १८२७ ई० में इस निबंध का द्वितीय भाग भी छपा। भौतिकी के क्षेत्र में डाल्टन के मुख्य अनुसंधान, गैसों के मिश्रण में उनकी पृथक् पृथक् दाब, भाप का बल, वाष्प की प्रत्यास्थता तथा उष्मा द्वारा गैसों का प्रसार, हैं। रसायन के क्षेत्र में इनका मुख्य कार्य परमाणुवाद संबंधी है। विभिन्न तत्वों के परमाणुओं में क्या भेद है, यह इन्होंने बताया। इसके अतिरिक्त पानी में गैसों के शोषण, कार्बनिक अम्ल, हाइड्रोकार्बन आदि पर भी इन्होंने काम किया। डाल्टन अपने समय के महान् रसायनज्ञ एवं विचारक थे। पक्षाघात से आक्रांत रहने के कारण २७ जुलाई, १८४४ ई० को इनका देहांत हो गया। [सत्यप्रकाश]