डायोफैंटीय समीकरण (Diophantine Equations) डायोफैंटस नामक यूनानी गणितज्ञ ने, जो संभवत: ईसा के पश्चात् तीसरी शताब्दी में रहा, बहुत से अनिर्धारित समीकरणों (Undetermined Equations) का अध्ययन किया तथा पूर्णांकों में उनके हलों को ज्ञात किया। इनमें चरों के गुणांक पूर्णांक थे। इसलिए उन सभी समीकरणों का नाम डायोफैंटीय समीकरण पड़ गया, जिनमें चरों के गुणांक पूर्णांक होते हैं।

यदि क (a1), क (a2),........... क (an) पूर्णांक हैं, तो

++..........+ = }

(a1 x1+ a2 x2+...........+an xn = b) }.............(1)

एक डायफैंटीय समीकरण है।

क य+ ख य र + ग र =

a x+ b x y + c y= m }.......................(2)

+ न -१ न -१+...........+ =}

an xn + an-1 xn-1y+.................+ a yn = b }....(3)

+ =}

xn + yn = zn }.............................................(4)

आदि डायफैंटीय समीकरण हैं, यदि इनके चरों के गुणांक पूर्णांक हैं।

डायफैंटीय समीकरणों का हल और इनके हलों की संख्या ज्ञात करने के साथ साथ गणितज्ञों का मुख्य उद्देश्य उन सभी अनुबंधों को ज्ञात करना होता है, जो पूर्णांकों में इनके हल के लिए आवश्यक और पर्याप्त होते हैं, जैसे :

समीकरण (१) में यदि क (a1), क (a2),...........क (an) का महत्तम समापवर्तक ग (c) है, न >(n > 1) और क (a1), क (a2),...........क (an) में सभी शून्य नहीं हैं, तो इस समीकरण के हल होने के लिए यह आवश्यक तथा पर्याप्त है कि ग (c) द्वारा ख (b) विभाजित होता हो। डायफैंटस ने

+ =}

(x + y) = z }.............................................(5)

को पूर्णांकों में हल किया था। उसके हल के अनुसार य = २ स क ख (x = 2k a b), र = स (क - ख) [y = k (a2 - b2)] और ल = स (क +) [z = k (a2 + b2)], जहाँ क (a) और ख (b) पूर्णांक हैं और ग (k) कोई स्वेच्छ धनात्मक पूर्णांक (arbitrary positive integer) है। समीकरण (५) का व्यापक रूप समीकरण (४) है, जब न >(n > 2)

फर्मा (fermat) के कथनानुसार यदि न >(n > 2) तो समीकरण (४) का पूर्णाकों में हल असंभव है। फर्मा के इस कथन को फर्मा का अंतिम प्रमेय कहते हैं। इस प्रमेय को सिद्ध करने के लिए अनेक गणितज्ञों ने प्रयत्न किया है, पंरतु अब तक यह प्रमेय पूर्णारूपेण सिद्ध नहीं हो सका है।

एक दूसरे डायफैंटीय समीकरण के संबंध में यूलर (Euler) की एक ऐसी ही कल्पना है। उसकी कल्पना के अनुसार

+ +...........य= }

x1n + x2n + .......... xkn = yn }.....................(6)

का शून्येतर पूर्णाकों (non-zero integer) में हल असंभव है, जब १< < (1<k< n)

समीकरण (६) का अध्ययन एक विशेष स्थिति में, जब न = (n = 4), अधिक किया गया है। स = (k = 2) की अवस्था में इस समीकरण का इस प्रकार का कोई हल नहीं है। स = (k = 4) की अवस्था में इस प्रकार के कुछ हल प्राप्त हुए हैं, पंरतु स = (k = 3) की अवस्था में यह ज्ञात नहीं हो सका है कि इस समीकरण का इस प्रकार का कोई हल है अथवा नहीं। १९४५ ई० में वार्ड (ward) ने यह सिद्ध किया कि जब न = (n = 4), = (k = 3) और र<100,00 (y<100,00), तब समीकरण (६) का शून्येतर पूर्णांक में कोई हल नहीं है। परंतु यदि स == (k = n = 2) तब (६) का हल वही है जो (५) का है।

यदि स == (k = n = 3), तब (६) का हल निम्नलिखित है :

= - न प, य= न फ - म

(x = m - np) (x = nq - m)

= - म फ तथा र = - म प,

(x = n - mq) and (y = n - mp),

जहाँ म =+ ३ज (m = f + 3g),

= छ' + ३ज'(n = f ' + 3g'),

= छ छ'+३ ज ज'+३ छ ज' -- ३ छ' ज

(p = f f '+3 g g'+3 f g' - 3 f ' g)

और फ = छ छ'+३ ज ज' -- ३ छ' ज

(q = f f ' +3 g g' - 3 f ' g)

अब यदि न =(n =1), प = (p = q), छ'= (f ' = 1), ज'=(g'= 0) और छ - ३ज = (f - 3g = 0), तब म =१२ ज (m = 12 g), फ=६ज (q = 6g), तथा समीकरण य++ =(x+x+x=1) ...........(7) का हल य=१२ , = ६ज - १२ तथा य=१-७२ ज(x=122 g), (x = 6g - 122 g) and (x = 1- 72 g) होगा। यह हल के. माहलर (K. Mahler) की देन है। मारडेल (Mordell) ने यह प्रश्न उठाया कि क्या डायफैंटीय समीकरण (७) का कोई हल है ? इसके उत्तर में माहलर ने उपर्युक्त हल ज्ञात किया।

जब स = = (k = n = 5), तब समीकरण (६) का हल काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, सुब्रह्मण्यम् शास्त्री, ने १९३९ ई० में ज्ञात किया, जो निम्नलिखित है :

=७५ ट - १, य= +२५ट, य= १ - २५ट

(x= 75 t5 - 1), (x= 1+25t5), (x= 1 - 25t5)

= १० ट, = ५० ट, = +७५ ट

(x= 10 t2), (x= 50 t4), (y= 1+75 t5)

समीकरण (२) को पूर्णांकों में हल करने के लिए डिक्सन (Dickson) ने निम्नलिखित समीकरणों पर विचार किया :

कय2+ खयर + गर2 = ...............व }

ax2 + bxy + cy2 = w w ...........wn }.......................(8)

जहाँ व, व, ...............,व [w, w, ..........., wn] और क, ख, ग (a, b, c) पूर्णांक हैं। उन्होंने इसको पूर्ण रूप से हल किया।

समीकरण (८) के व्यापक रूप अर्थात्

कय2+ खयर + गर2 = }

(ax2 + bxy + cy2 = zn) }....................(9)

के हल वाहलिन (Wahlin) द्वारा १९२४ ई० और स्कोलेन (Skolen) द्वारा १९३८ ई० में दिए गए।

लैंग्राज़ (Langranze) ने १७६९ ई० में और यूलर (Euller) ने १८७० ई० में

2 - मर2 = (x2 - my2 = zn)

के अनंत हल ज्ञात किए।

समीकरण (३) के हलों की संख्या सीमित है, यदि न (n 3) और यदि इसका बायाँ पक्ष ऐसे समघात उत्पादकों (homogeneous factors) में न तोड़ा जा सके जिनके गुणांक पूर्णांक हों।

डायफैंटीय समीकरण के अध्ययन ने अब विश्लेषण (analysis) का रूप ले लिया है। इससे संबंधित सामग्री संख्यासिद्धांत (Theory of Numbers) के विभिन्न विषयों -- वारिंग प्रमेय (Waring's Theorem) समशेषता सिद्धांत (Theory of Congruences), द्विवर्णी वर्ग के रूप (Binary Forms), पूर्णाकों के घातों के रूप में पूर्णांकों के निरूपण (Representation of numbers as sums of powers) आदि के साथ पर्याप्त मात्रा में मिलती है।

सं. ग्रं. -- एल. ई. डिक्सन : हिस्ट्री ऑव दि थ्योरी ऑव नंबर्स, खंड २, (सन् १९००) [तिलेश्वर राय]