डायज़ो यौगिक (Diazo compounds) विशेष रूप से ऐरोमेटिक श्रेणी में पाए जाते हैं। ऐलिफैटिक श्रेणी में बहुत थोड़े डायज़ो यौगिक ज्ञात हैं। ऐसे यौगिकों में - ना = ना - (-N = N-) समूह रहता है, जिसे डायज़ो समूह कहते हैं। डायज़ो समूह का एक नाइट्रोजन हाइड्रोकार्बन मूलक से और दूसरा किसी अन्य मूलक से संबद्ध रहता है। इनका सामान्य सूत्र (ऐरो - ना = ना -)+ य या (Ar - N = N -)+ X है, जिसमें ऐरो (Ar) कोई ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन मूलक और (X) कोई ऋणात्मक मूलक, जैसे क्रो, ब्रो आदि है। ऐज़ो यौगिकों में भी - ना = ना - समूह रहते हैं, पर इनके दोनों नाइट्रोजन हाइड्रोकार्बन मूलकों से संबद्ध होते हैं। ऐलिफैटिक डायज़ो यौगिक ऐरोमैटिक डायज़ो यौगिकों से संघटन और अभिक्रियाओं में भिन्न होते हैं।

जर्मन रसायनज्ञ पीटर ग्रीस (Peter Griess) ने १८५८ ई० में सर्वप्रथम ऐरोमैटिक डायज़ो यौगिकों का पता लगाया था। वे ऐरोमैटिक प्राथमिक ऐमिनो यौगिकों पर नाइट्रस अमल (हानाऔ, HNo2) का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने देखा कि अभिक्रिया का ताप यदि ० सें० या इसके आसपास रखा जाय तो प्राथमिक ऐमिनो नाइट्रस अम्ल की सामान्य क्रिया न होकर एक नया यौगिक बनता है, जो ऐलिफैटिक ऐमिनो यौगिकों से नहीं बनता। इस नए यौगिक को उन्होंने 'डायज़ो' संज्ञा दी और इस क्रिया को उन्होंने डायज़ोटीकरण (Diazotization) नाम दिया। इस क्रिया से बने यौगिकों को डायज़ोनियम (Diazonium) यौगिक कहा। ये यौगिक कुछ गुणों में ऐमोनियम यौगिकों से समानता रखते हैं।

प्राथमिक ऐरोमैटिक ऐमिन को किसी खनिज अम्ल के आधिक्य में घुलाकर उसका ताप ० से ५ सें० कर उसमें सोडियम नाइट्राइट का विलयन डालने से डायज़ो यौगिक बनता है, जो जल में विलेय होता है। पानी के स्थान में यदि एथिल ऐल्कोहल का उपयोग हो तो डायज़ो यौगिक का ठोस अवक्षेप प्राप्त हो सकता है। जलीय विलयन से ईथर द्वारा भी ठोस यौगिक का अवक्षेप प्राप्त हो सकता है। इसकी अभिक्रियाओं के अध्ययन के लिए जलीय विलयन पर्याप्त है।

गुण -- डायज़ो यौगिक रंगहीन ठोस मणिभ के रूप में बनते हैं। ये जल में बहुत विलेय, पर ईथर और ऐल्कोहल में अल्प विलेय होते हैं। ये बड़े अस्थायी होते हैं। गरम करने या आघात से बड़े जोर से विस्फोटित होते हैं। ऐमोनियम लवणों के समान ही ये अम्लों से लवण बनाते और धातुओं (प्लैटिनम, स्वर्ण और पारद) के क्लोराइडों से द्वि-लवण बनाते हैं।

अभिक्रियाएँ -- डायज़ो यौगिक रसायनत: बड़े सक्रिय होते हैं। इनकी अभिक्रियाओं से अनेक प्रकार के यौगिक तैयार किए जा सकते हैं। इनमें सबसे अधिक महत्व के पदार्थ कृत्रिम रंजक हैं, जिनका निर्माण आज बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है। इनकी अभिक्रियाओं को प्रदर्शित करने के लिए नीचे, उदाहरणस्वरूप, बेंज़ीन डायज़ोनियम क्लोराइड (काहा - ना = न - क्लो; C6H5 - N = N-Cl) ले रहे हैं :

१. शुद्ध ऐल्कोहल के साथ इसे उबालने से डायज़ो समूह का स्थान हाइड्रोजन ले लेता है :

काहानाक्लो+काहाऔहा® काहा+ना+काहाकाहाऔ

C6H5N2Cl+C2H5OH ® C6H6+N2+CH3 CHO

२. क्यूप्रस क्लोराइड के हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में विलयन के साथ गरम करने से क्लोरोबैंज़ीन (काहाक्लो, C6H5Cl) प्राप्त होता है। इसी प्रकार क्यूप्रस ब्रोमाइड और क्यूप्रस सायनाइड के साथ उपचार से क्रमश: ब्रोमोबैंज़ीन (काहाब्रो, C6H5Br) और बेंज़ीन सायनाइड, (काहाका ना, C6H5CN) प्राप्त होते हैं। इसे 'सैंडमायर अभिक्रिया' (Sandmeyer's reaction) कहते हैं। ताँबे के चूर्ण के साथ उपचार से भी बेंज़ीन क्लोराइड, ब्रोमाइड और सायनाइड प्राप्त होते हैं। इसे 'गाटरमान अभिक्रिया (Gattermann's reaction) कहते हैं।

३. पानी के साथ गरम करने से डायज़ो समूह का स्थान हाइड्रॉक्सिल समूह (- ओहा, OH) ले लेता है। इस प्रकार इस अभिक्रिया के द्वारा फीनोल तैयार हो सकते हैं।

काहानाक्लो+हाऔहा ® काहाऔहा+ना+हाक्लो

C6H5N2Cl+HOH ® C6H5OH+N2+HCl

४. अजल ऐल्यूमिनियम क्लोराइड की उपस्थिति में बेंज़ीन के साथ अभिक्रिया से डायज़ो समूह का स्थान फेनील समूह ले लेता है।

काहानाक्लो+काहा ® काहा.काहा+ना+हाक्लो

C6H5N2Cl+C6H6 ® C6H5.C6H5+N2+HCl

५. स्टैनस क्लोराइड और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के उपचार से डायज़ो समूह का अवकरण होकर हाइड्राज़िन यौगिक बनते हैं।

काहानाक्लो+४हा ® काहाना हा ना हा+हाक्लो

C6H5N2Cl+4H ® C6H5NH NH2+HCl

६. डायज़ोनियम लवणों का क्षारीय अवस्था में फीनोल, या तृतीयक ऐमिन, द्वारा उपचार करने से अम्लीय या समाक्षारीय पीले, लाल या भूरे रंग के रंजक बनते हैं।

काहानाक्लो+काहाऔहा ® काहानाकाहाऔहा+हाक्लो

C6H5N2Cl+C6H5OH ® C6H5N2.C6H4.OH+HCl

अम्लीय रंजक

काहानाक्लो+काहाना(काहा)® काहानाकाहाना(काहा)+हाक्लो

C6H5N2Cl+C6H5N(CH)® C6H5N2C6H4N(CH)+HCl

समाक्षारीय रंजक

उपर्युक्त अभिक्रियाओं को युग्मन अभिक्रिया (coupling reaction)कहते हैं। ऐरोमैटिक श्रेणी के प्राय: सभी प्राथमिक ऐमिनो यौगिकों से डायज़ोटीकरण अभिक्रियाएँ होती हैं।

ऐरोमैटिक डायज़ो यौगिकों के संघटन के संबंध में ब्लॉमस्ट्रैंड (Blomstrand) ने जो सूत्र प्रस्तावित किया था, वह आज भी सर्वमान्य है। बेंज़ीन डायज़ोक्लोराइड का सूत्र, जिसमें एक नाइट्रोजन परमाणु त्रिसंयोजक और दूसरा परमाणु पंचसंयोजक है, इस प्रकार का है:

ऐलिफैटिक श्रेणी के बहुत थोड़े डायज़ो यौगिक ही ज्ञात हैं और विशेष विधियों से ही वे तेयार होते हैं। ऐसे यौगिको में डायज़ोमेथेन तथा डायज़ो ऐसीटिक एस्टर अधिक महत्व के हैं।पहला पीले रंग की गंधहीन, विषैली गैस और दूसरा तेल के सदृश गाढ़ा, पीला द्रव (क्कयनांक १४० सें०) है। ये दोनों अस्थायी होते हैं और अनेक अभिकर्मकों से अभिक्रिया कर बड़ी सरलता से अनेक पदार्थों का सृजन करते हैं।

[संतप्रसाद टंडन]