डाकटिकट संग्रह डाकटिकट संग्रह का शौक सौ वषों से भी अधिक पुराना है। सबसे पहले डाकटिकट संग्रह करनेवाले का उल्लेख १८६० में 'डाक लेबेलों' के संग्रहकर्ता के रूप में मिलता है। उन दिनों डाकटिकट इसी नाम से ज्ञात थे। आज यह आकर्षक शौक संसार भर में 'फिलेटली' नाम से विख्यात है। सारे संसार में छोटी बड़ी उम्र के इसके लाखों शौकीन हैं और डाकटिकटों का व्यापार यूरोप और अमरीका में करोड़ों डालर का हो गया है। विगत १०० वर्षों से लंदन डाकटिकटों के बाजार का केंद्र रहा है और अब भी सब तरह के महत्वपूर्ण डाकटिकट संग्रहों के लेनदेन का केंद्रीय भंडार है। आज लंदन की डाकटिकटों को नीलाम करनेवाली दो प्रमुख ब्रिटिश फर्में आपस में प्रति वर्ष १,५०,००,००० रुपयों से ऊपर मूल्य के टिकट बेचती हैं। डाकटिकटों का व्यापार करनेवाली लगभग एक दर्जन प्रमुख ब्रिटिश फर्में ५,००,००,००० से ८,००,००,००० रुपयों के डाकटिकटों की बिक्री आपस में कर लेती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पश्चिमी राष्ट्रों के जीवन में डाकटिकट संग्रह के शौक का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यह बात भी आश्चर्यजनक नहीं है कि विभिन्न शौकों की जनप्रियता की पिछले तीस वर्षों की वार्षिक मतगणना में डाकटिकट संग्रह का शौक अन्य सब शौकों से ऊपर रहा है।

इस शौक ने इतनी जनप्रियता क्यों प्राप्त की और संसार भर में डाकटिकट संग्रह करनेवालों की संख्या प्रतिवर्ष क्यों बढ़ रही है? इसके कारण सामान्य हैं। डाकटिकट संग्रह बूढ़े, बच्चे दोनों के लिए घर के भीतर रहकर तल्लीनता का और शिक्षात्मक शौक है। डाकटिकटों के द्वारा उनका संग्रह करनेवाला विश्वइतिहास का ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होता है। वह संसार के भौगोलिक वृत्तों के जानने या विश्व की मुद्राओं के ज्ञान में भी समान रूप से निपुण हो जाता है, क्योंकि डाकटिकटों पर उनके मूल्य के रूप में संसार की विभिन्न मुद्राएँ छपी रहती हैं। डाकटिकटों से उसके संग्रहकर्ता को सफाई और सुव्यवस्थित रहने की प्रेरणा मिलती है, क्योंकि प्रत्येक संग्रहकर्त्ता अपने टिकटों को अल्बम के पन्नों पर सफाई से और आकर्षक ढंग से चिपकाने और सजाने में विशेष सावधानी बरतता है। वास्तव में प्रत्येक टिकट संग्रह करनेवाले का लक्ष्य है कि उसके पास ऐसा संग्रह हो जो किसी भी साधारण देखनेवाले को प्रभावित कर सके। पश्चिम में टिकटों को चिपकाना और उनका वर्णन लिखना एक कला मानी जाती है, और बहुत से प्रसिद्ध संग्रहकर्त्ता अपने संग्रहों को पेशेवर कलाकारों से चिपकवाते और उनका वर्णन लिखाते हैं। कभी-कभी इन पेशेवर लोगों से सुसज्जित रूप से लिखवाने के लिए वे अल्बम के एक-एक पृष्ठ के लिए ५० से १०० रु० तक देते हैं, भले ही अल्बम के पृष्ठ पर के टिकटों का मूल्य एक रुपया ही हो।

टिकटों का संग्रह संसार भर में चालू टिकटों के जमा करने से आरंभ हुआ। आज यह निम्नलिखित विभिन्न वर्गों में विभाजित है :

    1. सामान्य संग्रहकर्ता
    2. विशेष संग्रहकर्ता
    3. डाक के इतिहास का संग्रहकर्ता
    4. हवाई डाक का संग्रहकर्ता
    5. विषयगत संग्रहकर्ता

१. सामान्य संग्रहकर्ता के साथ यह शौक एक शताब्दी पहले अपने आरंभकाल से है और यह डाकटिकट संग्रहकर्ताओं के परिवार के सम्मानित सदस्य के रूप में उसके साथ तब तक रहेगा जब तक डाकटिकट संग्रह चलता रहेगा, यद्यपि अब बहुत बड़े आर्थिक साधन-संपन्न व्यक्ति के लिए भी सारे संसार के टिकटों को जमा करना अधिकाधिक असंभव होता जा रहा है। आज इन टिकटों की संख्या १,५०,००० है। संसार भर में केवल आधे दर्जन संग्रह ऐसे हैं जिनके स्वामियों के पास १,००,००० विभिन्न टिकटों से अधिक हैं।

संसार में पहला डाकटिकट ग्रेट ब्रिटेन में डाक सुधार के प्रचलन के रूप में छठी मई, १८४० को जारी किया गया था। बाद के २० वर्षों में अनेक देशों ने अपने डाकटिकट चलाकर इसका अनुसरण किया और आज संसार में २०० से अधिक टिकट जारी करनेवाले देश हैं जो प्रति वर्ष लगभग ५०००० नए टिकट जारी करते हैं। इस प्रकार १८६० में सामान्य संग्रहकर्ता को संसार के टिकटों का अपना संग्रह पूर्ण करना बहुत आसान था। उस वर्ष इन टिकटों की संख्या २००० थी। आज जबकि अनुमानत: १,५०,००० प्रकार के टिकट प्रचलित हैं, और प्रतिवर्ष ५००० और बढ़ रहे हैं, किसी भी व्यक्ति के लिए, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति कुछ भी क्यों न हो, सारे संसार के टिकटों का संग्रह तैयार करना और उसे पूर्ण रखना नितांत असंभव है। इस असंभव बात ने अब पक्के तौर पर डाकटिकट संग्रह के क्षेत्र में 'विशिष्ट' संग्रहकर्ता को जन्म दिया है।

२. 'विशिष्ट' संग्रहकर्ता वह होता है जिसने अपने संग्रह कार्य को एक देश या देशों के वर्ग तक सीमित कर दिया है या जो अपने संग्रह को किसी काल तक सीमित किए हो।

(अ) एक देश का विशेषज्ञ अपनी सारी शक्ति और अर्थ अपने प्रिय देश का संग्रह तैयार करने में लगाता है, अधिकतर वह अपना ही देश होता है। इस प्रकार भारत में ही भारतीयों द्वारा किए भारतीय टिकटों के कई बहुमूल्य संग्रह हैं जिनकी नकद कीमत १,००,००० से ऊपर है। ऐसा संग्रहकर्ता अपने प्रिय देश द्वारा जारी किए टिकटों से आरंभ करता है और अपने संग्रह में सारे नए टिकट, जैसे-जैसे वे जारी होते हैं, वैसे-वैसे जोड़ता रहता है और इस बीच उन त्रुटियों और विविधताओं को निकालने का प्रयत्न करता है जो पहले के जारी किए टिकटों में हों और विशेष संग्रह में अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करता है।

(आ) वर्गीय संग्रह भी अनेक संग्रहकर्ताओं का बहुत प्रिय विषय है, विशेष रूप से विशेष टिकटों के संग्रहकर्ताओं में इस प्रकार के ऐसे संग्रहकर्ता हैं जिनकी अभिरुचि ब्रिटिश कामनवेल्थ के डाकटिकटों में है ; दूसरे लोगों की रुचि महादेशों के टिकटों में है, जैसे उन टिकटों में जो अफ्रीका, एशिया, यूरोप, आदि में जारी किए जाते हैं। कुछ और हैं जिनकी रुचि ऐसे देशों के समूह में है जिनका प्रधान कोई यूरोपीय देश है और जिनके कई उपनिवेश हैं। इस अंतिम समूह में ऐसे संग्रहकर्ता हैं जो ग्रेट ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों में रुचि रखते हैं, बेल्जियम और उसके उपनिवेशों में अभिरुचि है, फ्रांस, हालैंड और उनके उपनिवेश तथा संयुक्त राज्य अमरीका तक में है जिसके अतीत में कुछ उपनिवेश थे और आज जो अपने अधिकार में जापान के क्षेत्र किए हैं।

(इ) कुछ थोड़े से विशेषज्ञ अपने कार्य को नियतकालिक समूहों में सीमित किए हैं, जैसे कुछ लोग महारानी विक्टोरिया के शासन के टिकटों का संग्रह करते हैं, दूसरे लोग दिवंगत राजा जार्ज छठे अथवा वर्तमान रानी एलिजाबेथ द्वितीय के शासनकाल के डाकटिकटों के संग्रह में प्रसन्नता प्राप्त करते हैं। कुछ और लोग हैं जो पिछली शताब्दी के टिकटसंग्रह करके संतुष्ट हैं और कुछ ऐसे हैं जो वर्तमान शताब्दी तक ही अपने को सीमित रखते हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो प्रथम महायुद्ध में जारी किए गए टिकट संग्रह करते हैं -- इस रोचक समूह में लगभग ५००० विभिन्न टिकट हैं। कुछ और लोग हैं जो दूसरे विश्वयुद्ध के टिकटों के प्रति आकर्षित हैं। इस तरह से बहुत अधिक विशिष्ट भाग में भी डाकटिकट संग्रह का विषय संग्रहकर्ता को व्यक्तिगत विशिष्टता की पूरी छूट देता है।

३. 'डाक के इतिहास' के संग्रहकर्ता का आविर्भाव विशिष्ट संग्रह की शाखा के रूप में केवल २० वर्ष पहले हुआ है। अपने विशिष्ट संग्रहों में टिकटों से संतुष्ट न रहकर कुछ संग्रहकर्ताओं ने अपने एकदेशीय संग्रह में 'डाक का इतिहास' सम्मिलित करना आरंभ कर दिया। जैसे डाकटिकटों के जारी होने के पहले के डाक के लिफाफे, किसी देश में डाक विभाग से संबंधित चीजें, देश में डाकटिकट जारी होने के पहले और बाद में डाक मोहरों और डाक चिह्नों का अध्ययन, देश के बाहर काम में लाए जानेवाले टिकट, अर्थात् किसी देश के वे टिकट जो दूसरे देशों में उपयोग किए जाते हों जैसा प्रारंभिक दिनों में हुआ था। हमारे अपने भारतीय टिकटों का आधिकारिक रूप से अफ्रीका, फारस की खाड़ी के बंदरगाहों, फारस और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में व्यवहार होता था, क्योंकि इनमें से बहुतेरे देशों में उनके डाकघरों का संचालन और उनकी व्यवस्था भारतीय डाक विभाग के कर्मचारियों द्वारा होती थी।

आज 'डाक का इतिहास' के संग्रहकर्ताओं की विशाल संख्या हो गई है और सब देशों में यह बढ़ती जा रही है। वास्तव में आजकल सामान्य या विशिष्ट संग्रह करनेवाले भी अपने संग्रह में प्रस्तावना रूप में 'डाक का इतिहास' ठीक उसी तरह सम्मिलित कर लेते हैं जिस तरह बहुतेरे संग्रह करनेवाले अपने संग्रह में एक अंश 'असली लिफाफों का टिकट' का जोड़ देते हैं।

४. 'हवाई डाक' टिकट या 'पहली उड़ान के लिफाफे' संग्रह करना बहुत हाल का विषय है, क्योंकि १९२५ से पहले साधारणत: विशेष हवाई डाक के टिकट जारी नहीं किए गए थे। आज बहुत से देश केवल अपने व्यवहार के लिए अपने यहाँ हवाई डाक पत्रों के टिकट जारी करते हैं। इस प्रकार बहुत बड़ी संख्या में हवाई अभिरुचिवाले टिकट संग्रह करनेवाले हैं, जो अपनी शक्ति एकमात्र हवाई डाक के टिकटों के संग्रह में लगाते हैं। इन संग्रहों में २०,००० से ऊपर के विभिन्न टिकट हैं। इनमें से कुछ बहुत ही दुर्लभ हैं और उनका मूल्य प्रति टिकट ५०,००० रु० तक होता है।

५. इस समूह में बहुत से ऐसे संग्रह करनेवाले हैं जो हवाई डाक के टिकटों का संग्रह नहीं करते किंतु संसार के किसी भाग में किसी नई उड़ान के उद्घाटन के अवसर पर जारी किए गए पहली उड़ान के लिफाफों के संग्रह पर ही अपना ध्यान देते हैं। बहुत लोगों के लिए ऐसा संग्रह बहुत दुष्कर कार्य हो जाता है, क्योंकि इन लिफाफों में से बहुत से प्रेम या धन अथवा दोनों ही द्वारा प्राप्त नहीं किए जा सकते। कुछ १०,००० से २०,००० रु० प्रति लिफाफा की सीमा में हैं और औसत संग्रह करनेवालों में बहुत ही कम लोग एक लिफाफे पर इतनी बड़ी रकम खर्च करने की सामर्थ्य रखते हैं।

प्रसंगवश, यह उल्लेखनीय है कि बैलगाड़ियों के देश के रूप में प्रख्यात भारत को इलाहाबाद में १८ फरवरी, १९११ को संसार में पहली सरकारी हवाई डाक ले जानेवाला प्रथम देश होने का सम्मान प्राप्त है। डाक विभाग ने इस महान् घटना की स्वर्ण जयंती १८ फरवरी, १९६१ को तीन स्मारक डाकटिकट निकालकर मनाई थी। विचित्र लगने पर भी यह कथन सत्य है कि भारतीय प्रथम उड़ान के लिफाफों का संग्रह १००० विभिन्न लिफाफों का है जिनका मूल्य १,००,००० रुपए की सीमा में है। और इस संख्या में वे लिफाफे नहीं आते जो हमारे देश में राकेट द्वारा ले जाए गए। यह राकेट के प्रयोग भारत में एफ देशी ईसाई, कलकत्ते के डॉ० स्टीफन स्मिथ द्वारा किए गए थे और उन लिफाफों की संख्या लगभग १०० विभिन्न प्रकार के लिफाफों की होगी जो उतने ही राकेटों द्वारा ले जाए गए थे और जिनका प्रयोग इन महोदय ने कई बार आधिकारिक संरक्षण में किया था। इस क्षेत्र में भी भारत को डॉ० स्मिथ द्वारा छोड़े एक राकेट में जीवित पशु को उसके जीवन को क्षति पहुँचाए बिना भेजने का अद्वितीय सम्मान प्राप्त है। यह घटना भी राकेट के प्रयोगों में संसार में प्रथम है और इस सफल प्रयोग के लिए पुन: भारत को ही सम्मान प्राप्त है।

५. विषयगत संग्रह अथवा विषय के अनुसार संग्रह करने में संसार भर में हजारों बूढ़े और जवान लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है। यद्यपि इस प्रकार के संग्रह का आरंभ दस वर्ष पहले ही हुआ है, पर आज इसके दसियों लाख शौकीन हैं। इस रीति का संग्रह बहुत सरल है, अर्थात् आपको उन टिकटों का ही संग्रह करना है जो टिकटों के नमूने में आपका प्रिय विषय देते हों। इस प्रकार कोई व्यक्ति, पशु, पक्षी, पुत्र, भवन, बच्चे, फल, उद्योग धंधे, ओषधि, पर्वत, संगीत, चित्रकला, रेडक्रास, धर्म, दृश्य, जहाज, खेलकूद आदि प्रदर्शित करनेवाले टिकटों के संग्रह बना सकता है। कोई भी संग्रहकर्ता अपने प्रिय विषय को चुन सकता है। इस तरह स्थापत्यशिल्पी अपने विषय के संग्रह के लिए पुल अथवा भवन प्रदर्शित करनेवाले टिकट चुन सकता है। एक डाक्टर अपने चुनाव के लिए ओषधि या रेडक्रास के नमूने दिखानेवाले टिकट ले सकता है। कोई भी व्यक्ति, जो खुली हवा के क्रियाकलापों में रुचि रखता हो, पर्वत अथवा दृश्योंवाले टिकट के संग्रह का निर्माण कर सकता है, जबकि कलाप्रिय व्यक्ति कलाचित्र और कलाकारों अथवा संगीत और संगीतज्ञों का सुंदर संग्रह बना सकता है।

संसार भर में आजकल १०० से ऊपर विभिन्न विषयों का अवलंबन किया जा रहा है। संयुक्त राज्य में, जहाँ यह 'विषय का संग्रह' (वैषयिक संग्रह) कहा जाता है, अमरीकन टापिकल असोसिएशन नामक एक विशेष संस्था है जिसके संसार के सब भागों में १०,००० से ऊपर सदस्य हैं। इस संस्था ने संग्रहकर्ताओं की सहायता के लिए बहुत से जनप्रिय विषयों पर लगभग तीन दर्जन विशिष्ट पुस्तकें प्रकाशित की हैं और वह प्रति वर्ष अपने सदस्यों की एक वार्षिक प्रतिद्वंद्विता चलाती है।

'विषयगत' संग्रह भारत में भी बहुत जनप्रिय है और इसका कारण भी सीधा-सादा है। दूसरी तरह के संग्रहों की तुलना में 'विषयगत' संग्रह में बहुत थोड़ी रकम लगती है। यह संग्रहकर्ता को अपना संग्रह बनाने में तिथिक्रम अथवा पूरे सेटों के बंधन में नहीं बाँधता, जैसा दूसरी तरह के संग्रहों में रहता है। 'विषयगत' संग्रह में चुने हुए विषय को जैसे चाहे वैसे ढंग से जितने चाहे कमोबेश टिकटों में रखा जा सकता है। इसमें संपूर्णता की कोई बात नहीं होती, जैसा दूसरे संग्रहकर्ताओं के अन्य प्रकार के टिकटों में उद्देश्य रहता है।

टिकट संग्रह के शौक की शिक्षात्मक दृष्टि को विषयगत संग्रह बलपूर्वक स्पष्ट कर देते हैं, क्योंकि छोटे बच्चों की शिक्षा में यह विषय शिक्षा देने की माध्यम का काम देता है। इस प्रकार टिकटों पर पशुओं या पक्षियों का संग्रह विभिन्न पशुपक्षियों को चिड़ियाघर जाकर देखे बिना ही पहचानने में सहायक हो सकता है। 'टिकटों पर रेलवे' के संग्रह को देखकर किसी भी व्यक्ति को उस विशाल प्रगति का तुरंत पता लग जाएगा जो सभ्यता ने पिछली शताब्दी में संसार के विभिन्न भागों में रेलवे से यात्रा के ढंगों में की है। रेलवे के विभिन्न पक्षों को दिखानेवाले संसार भर में जारी किए गए लगभग ५०० अलग-अलग टिकट हैं।

इस प्रकार यह सच ही कहा जा सकता है कि कोई भी और शौक बूढ़े बच्चों को इतनी शिक्षात्मक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता जितना डाकटिकट संग्रह। शिक्षात्मक और उपदेशात्मक होने के अतिरिक्त ही एक ऐसा शौक है जो उसके करनेवालों को बहुत अधिक प्रतिशत नाशवान् संपत्ति को बचाने का मूल्य रखता है, क्योंकि डाकटिकट संग्रह में जब किसी की रुचि न रहे तो वह संग्रह सरलता से बेचा जा सकता है। और चाहिए भी क्या। कोई व्यक्ति किसी भी आयु और किसी भी देश में जब भी इसमें फिर रुचि लेने लगे तो नए सिरे से डाकटिकट संग्रह आरंभ कर सकता है। इसीलिए कहा गया है : 'टिकटों का संग्रह करनेवाला सदैव ही संग्रहकर्ता है।' [जाल कपूर]