डाइनोसॉरिया (Dinosauria) नाम जीवाश्मवैज्ञानिक सर रिचर्ड ओवेन का दिया हुआ है। इसका अर्थ है 'भीम गोधिका।' ये मध्यजीव कल्प (अर्थात २० १/२ करोड़ वर्ष पूर्व से लेकर १३ ।/२ करोड़ वर्ष पूर्व तक) के विलुप्त सरीसृप (reptiles) हैं, जो उस कल्प में सारी धरती पर छाए हुए थे। अतएव उस कल्प को डाइनोसॉरों का कल्प कहते हैं। इन जीवों के संबंध में हमारा ज्ञान तत्कालीन ऐतिहासिक जीवाश्म प्रमाणों के अध्ययन पर पूर्णत: आधारित है। आज के लगभग २० १/२ करोड़ वर्ष पहले, लुप्त ऐटलांटिस द्वीप में उत्पन्न होकर डाइनोसॉर सारी पृथ्वी पर प्र्व्राजन द्वारा फैल गए थे।

ये विविध डीलडौल के होते थे। सबसे छोटा बिल्ली के आकार का था, जिसका नाम कॉम्पसॉग्नैथस (Compsognathus) था और सबसे बड़ा जाइगैंटोसॉरस (Gigantosaurus) था, जिसकी लंबाई १२० फुट तक और भार ४० टन तक था।

जीवाश्म प्रमाणों से ज्ञात होता है कि इनकी त्वचा शल्कमय होती थी, ये अंडे देते थे और शीतल रक्तवाले होते थे। आजकल के सरीसृपों के भी ये ही लक्षण हैं, अत: डाइनोसॉर वास्तविक सरीसृप थे।

डाइनोसॉरिया में शाकभक्षी और मांसभक्षी दोनों प्रकार के जीव सम्मिलित हैं। टिरैनोसॉरस (Tyrannosaurus) में मांसभक्षी प्रवृत्ति अपने चरम बिंदु पर पहुँच

चित्र १. टिरैनोसॉरस

गई थी। यह जीव लगभग ४७ फुट डीलडौल का था और आजकल के बड़े से बड़े हाथी से भी भारी भरकम होता था। इसके पिछले पैर मजबूत और अगले पैर छोटे होते थे, अत: द्विपादों की तरह यह पिछले पैरों पर ही चलता था। इसका सिर बड़ा, गर्दन छोटी, दाँत तीन चार फुट लंबे होते थे। दाँतों की धारें आरे जैसी होती थी और इनसे वह शाकाहारी डाइनोसॉरों का मांस काटकर खाता था।

शाकभक्षी (वनस्पतिभक्षी) डाइनोसॉरों में द्विपादों और चतुष्पाद दोनों ही सम्मिलित हैं। इनके सिर छोटे और दाँत चम्मचनुमा होते थे। इनके किनारे चिकने होते थे, जिससे मुलायम वनस्पतियों को चबाने में सहूलियत होती थी। भारत के टिटैनोसॉरस (Titanosaurus) जैसे कुछ चतुष्पाद शाकभक्षी इतने भारी-भरकम होते थे कि विश्वास नहीं होता कि कैसे इनका भार इनके पैरों पर टिक पाता था। हमें यह

चित्र २. स्टेगोसॉरस

विश्वास करना पड़ता है कि ये भारी-भरकम जीव पूर्णत: नहीं तो अंशत: जलनिवासी थे और पानी की उत्प्लाविता इनके शरीर के भार को कम करती थी, जिससे वे अपने को वहन करने में समर्थ होते थे। शाकाहारी वर्ग के डाइनोसॉरों में कुछ अद्भुत दीख पड़नेवाले जीव भी थे, जैसे कवचित और सींगदार डाइनोसॉर। उत्तरी अमरीका और यूरोप में पाए जानेवाले डाइनोसॉर, स्टेगोसॉरस (Stegosaurus), की खोपड़ी के पिछले भाग से पूँछ के सिरे तक त्रिकोणात्मक फलक की, दोहरी पंक्ति के रूप में, ढाल होती थी और पूँछ के सिरे पर दो दृढ़ लंबे काँटे होते थे। अमरीका और मंगोलिया का ट्राइसेराटॉप्स (Triceratops) नामक डाइनोसॉर सींगदार होता था।

चित्र ३. ट्राइसेराटॉप्स

यह पशु २० से २५ फुट तक लंबा होता था।

इसकी खोपड़ी पर दो बड़े तथा नाक पर गैंडे की सींग के सदृश एक अस्थिमय सींग होता था, जिससे परभक्षी शत्रु से वह आत्मरक्षा करता था।

मध्यजीव कल्प (Mesozoic era) के अंतिम दिनों में इन दैत्यजीवों का बहुत बड़े पैमाने पर विनाश हुआ। इसके अनेक कारणों की कल्पना की गई है, जैसे भूगर्भीय घटनाएँ, आपसी कलह, तत्कालीन स्तनियों द्वारा डाइनोसॉरों के अंडों का भक्षण और इनकी शीतल रक्तमयता, जिसके कारण मध्यजीव कल्प के बाद ताप के अत्यधिक ्ह्रास को ये सह न सके। डाइनोसॉर युग के पतन का जो भी कारण रहा हो, यह आदिकालीन महासाम्राज्य के क्रमश: उत्थान, मंद प्रोन्नयन और अंत में नाटकीय ढंग से पतन होने के समान रहा है। [अरुणांकर नारायण]