डल्हौजी, लॉर्ड ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और भारत का प्रशासक। जन्म डल्हौजी कासल, स्काटलैंड में २२ अप्रैल, १८१२, को हुआ और देहांत १९ दिसंबर, १८६० को। सन् १८४८ में लॉर्ड डल्हौजी ३५ वर्ष की कम अवस्था में भारत का गवर्नर जेनरल होकर कलकत्ता आया और १८५६ तक इस पद पर रहा। उसमें एक बड़ा गुण यह था कि वह जो काम हाथ में लेता था उसे पूरा करके छोड़ता था। उसकी एक कमी यह थी कि जब वह एक बार किसी संबंध में अपनी धारणा बना लेता था तो फिर स्लीमन तथा हेनरी लॉरेंस जैसे अनुभवी अफसरों की सलाह पर भी कोई ध्यान नहीं देता था। इसमें संदेह नहीं कि जिस साम्राज्य की नींव क्लाइव ने डाली थी उस नींव पर डलहौजी ने कंपनी के राज्य का महल पूरा खड़ा कर दिया। यद्यपि देशी राजाओं के प्रति उसकी नीति दोषपूर्ण थी तथापि कई अर्थों में उसने आधुनिक भारत की सृष्टि की।
डलहौजी के शासनकाल की मुख्य घटनाओं का संबंध पंजाब, बर्मा, तथा देशी राज्यों से था। मुल्तान के विद्रोह से डलहौजी का ध्यान पंजाब की ओर गया। उसने सिक्खों से युद्ध करने की ठान ली। वास्तव में सन् १८४८ में ही डलहौजी ने यह धारणा बना ली थी कि शांति स्थापित करने के लिए सिक्खों की शक्ति नष्ट करना तथा पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिलाना आवश्यक है। सन् १८४९ में दूसरा सिक्ख युद्ध प्रारंभ हो गया और दो महीनों में सिक्ख हार गए। एक घोषणा के द्वारा पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया।
बर्मा का दूसरा युद्ध डल्हौजी के समय की दूसरी महत्वपूर्ण घटना थी। सन् १८४० के बाद आवा दरबार में कोई रेजीडेंट नहीं रखा गया था। अब वहाँ से अंग्रेजों पर अत्याचार की सूचना आने लगी। एक बार बर्मी सरकार द्वारा जहाजों के दो अंग्रेज कप्तानों के दंडित होने पर डल्हौजी ने पूछताछ के लिए सेना के कुछ अफसरों को बर्मा भेजा। बर्मी सरकार समझौते के लिए तैयार थी, फिर भी झूठे बहाने लेकर अंग्रेजों ने बर्मा पर आक्रमण कर दिया और २०, दिसंबर १८५२ की एक घोषणा द्वारा पीगू अथवा दक्षिणी बर्मा अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया।
सबसे महत्वपूर्ण था 'लैप्स' अथवा दायावसान का सिद्धांत जिसके द्वारा डल्हौजी ने अनेक देशी राज्यों का अपहरण किया। वास्तव में डल्हौजी के भारत आने के पूर्व ही इंग्लैंड सरकार तथा प्रसिद्ध अंग्रेज राजनीतिज्ञों का यह निश्चित मत था कि अवसर मिलने पर देशी राज्यों को छीन लेना चाहिए। देशी राजाओं में पुत्र न होने पर सर्वोच्च सत्ता की आज्ञा से गोद लेने की प्रथा थी। यह आज्ञा साधारणत: दे दी जाती थी। पर अब यह नीति अपनाई गई कि गोद लेने की अनुमति देना या न देना ब्रिटिश सरकार की मंशा पर है। तदनुसार अब यह निश्चय किया गया कि जहाँ तक हो गोद लेने की अनुमति न दी जाया करे। इसी आधार पर दायावसान के सिद्धांत के अनुसार सन् १८४८ में सतारा, १८५० में जैतपुर तथा संबलपुर, १८५२ में उदयपुर, १८५३ में नागपुर तथा सन् १८५४ में झाँसी के राज्य जब्त करके अंग्रेजी राज्य में मिला लिए गए। अवध की स्थिति भिन्न थी। रेजीडेंट के अनुसार वहाँ शासन की दशा शोचनीय थी। संचालकों की राय पर १३ फरवरी, १८५६ को कुशासन के आधार पर अवध भी अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।
डल्हौजी ने बहुत से ऐसे सुधार किए जिनके लिए भारत उसका आभारी रहेगा। सन् १८५३ में बंबई के पास पहली रेल चली; सन् १८५२ में पहला तार लगाया गया तथा सैकड़ों डाकखाने भी खोले गए। रेल, तार और डाक से दूरी तथा समय की कठिनाई हल हो गई और भारत परोक्ष रूप से एकता के सूत्र में बँधने लगा। नहरें खुदवाने, सड़कें बनवाने तथा देशी भाषाओं के विकास के संबंध में भी डल्हौजी ने प्रशंसनीय कार्य किया। [मिथिलोचंद्र पांडिया]