डफरिन, लार्ड (डफरिन ऐंड आवा का मार्क्किस, फ्रेडरिक टेंपल-हैमिल्टन टेंपल-ब्लैकवुड) अंग्रेज राजनीतिज्ञ। फ्लोरेंस (इटली) में २१ जून, १८२६ को इनका जन्म हुआ। इनका ब्लैकवुड परिवार आयरलैंड से संबंधित था। ईटन और ऑक्सफर्ड में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। पिता की मृत्यु के पश्चात् इनकी माँ ने इनको पाला पोसा। इनके ऊपर इनकी माँ के चरित्र का बहुत प्रभाव पड़ा। १८४६-४८ में आयरलैंड के अकाल में डफरिन ने पीड़ितों की सहायता बड़ी सहानुभूति से की। १८५५ में लार्ड जान रसेल के साथ इन्होंने वियना संमेलन में भाग लिया। लेबनान में ईसाई अल्पसंख्यकों के सर्वसंहार के कारण फ्रांसीसी अधिकार की संभावना उत्पन्न हो गई थी। सन् १८६० में वहाँ की 'स्थिति निरीक्षण-समिति' में इन्हें नियुक्त किया गया। १८६४ से १८६६ तक इन्होंने भारत के अवसर सचिव का कार्यभार सँभाला। १८७१ में इन्हें डफरिन का 'अर्ल' बनाया गया।
१८७२ में ये कनाडा के गवर्नरजनरल नियुक्त किए गए। अपनी कूटनीतिक कुशलता से इन्होंने कनाडा के संयुक्त राज्यों का शासन किया। १८७९ में ये रूस में राजदूत बनाकर भेजे गए। १८८१ में अरब लोगों के विद्रोह से बिगड़ी हुई मिस्त्र की स्थिति पर विचार विमर्श करने के लिए इन्हें कांस्टैटिनोपिल जाना पड़ा। इनकी राजनीतिक बुद्धिमत्ता से मिस्त्र पर अंग्रेजों को एकाधिकार मिल गया। अक्टूबर, १८८२ से मई, १८८३ तक इन्होंने उच्चायुक्त का पद ग्रहण कर मिस्त्र के पुनर्गठन का निरीक्षण किया। १८८४ में लार्ड रिपन के पश्चात् ये भारत के वाइसराय नियुक्त किए गए। रिपन की नीति को मुख्य रूप से मानकर इन्होंने आंग्ल भारतीय समुदायों का विश्वास प्राप्त किया और अफगानिस्तान तथा रूस के साथ सुंदर संबंध स्थापित किए। बर्मा को ब्रिटिश राज्य में संमिलित कर लेना इनकी बहुत बड़ी राजनीतिक उपलब्धि थी, जिससे इन्हें विशेष सम्मान मिला। १८८८ और १८९२ में ये क्रमश: रोम और पैरिस में राजदूत रहे। १८९६ में इन्होंने अवकाश प्राप्त किया। १२ फरवरी, १९०२ को इनका देहांत हो गया।