ट्रैंसकॉकेशा- सोवियत संघ के दक्षिण-पश्चिम में फैले हुए कॉकेशा क्षेत्र का वह भाग जो काले सागर से कैस्पियन सागर को संबंद्ध करनेवाले कॉकेशा पर्वत के दक्षिण में स्थित है और जिसमें अब तीन सोवियत गणराज्य-जार्जिआ, आर्मीनिया तथा अजरर्बिजान-सम्मिलित हैं। भौगोलिक दृष्टि से रूसी क्रांति (१९१७) के पहले कूवान तथा टेरेक के स्टेपीज राज्यों एवं स्ट्व्राारोपोल के स्टेप सरकार को छोड़कर रूसी कॉकेशा के संपूर्ण क्षेत्रों एवं सरकारों को ट्रैंसकॉकेशा के सामूहिक नाम से संबोधित करते थे। अत: इसके अंतर्गत बाकू, एलिसावेतपोल, एरिबान, कुटे (Kutais) तथा टिफ्लिस की ट्रैंसरकारें, बाटुम, दगेस्तान एवं कार्स के प्रांत और काला सागर (शेरनोमोर्स्क Chernomorsk) एवं जकातली (Zakataly) के फौजी क्षेत्र सम्मिलित थे। प्रथम महायुद्ध के अंत में उक्त क्षेत्र को केवल तीन गणराज्यों-जार्जिया, आर्मीनिया तथा आजरबिजान-में संघटित किया गया। १२ मार्च, १९२३ ई० को सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य समूह (Soviet Federated Socialist Republic of Russia) के रूप में इन राज्यों की सत्ता स्वीकार की गई। दिसंबर, १९३६ में, स्टालिन संविधान लागू होने पर पुन: सोवियत शासनतंत्र के अंतर्गत उन्हें अलग अलग गणराज्य के रूप में सत्ता प्रदान की गई।

ट्रैंसकॉकेशा के पश्चिमी क्षेत्र में जार्जिआ (क्षेत्रफल ६९,७०० वर्ग किमी. है) तथा पूर्व में आर्मीनया (क्षेत्रफल २९,८०० वर्ग किमी० है) और आजरबिजान (क्षेत्रफल ८६,६०० वर्ग किमी० तथा जनसंख्या ४१,१७,०००) फैले हैं। गेहूँ तथा अंगूर के अतिरिक्त उक्त क्षेत्र में उपोष्णकटिबंधीय पौधे कपास, धान, रसदार फल, सब्जियाँ, तंबाकू, चाय आदि उगाए जाते हैं। १९४१ ई० में उपोष्णकटिबंधीय पौधों की कृषिसंबंधी तथा १९४९ ई० में वनविज्ञान संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये आजरबिजान में अनुसंधान संस्थाएँ स्थापित की गईं। यह क्षेत्र खनिजों में भी बहुत धनी है और यहाँ तेल तथा मैंगनीज के अतिरिक्त यूरेनियम, लोहा, मोलिब्डिठनम, कोयला, ऐल्यूमिनियम, ताँबा, सीसा, जस्ता, गंधक, चूनापत्थर तथा कई बहुमूल्य धातुएँ प्राप्त होती हैं। सिंचाई तथा औद्योगिक विकास तीव्रता से हो रहा है।

(काशीनाथ सिंह)