ट्राजन (Trajan) रोमन सम्राट् ट्राजन का जन्म १८ सितंबर, सन् ५३ में स्पेन के इटालिका नामक स्थान पर हुआ। उसका परिवार इटालियन था। उसके पिता ने सेना की छोटी सी टुकड़ी में मामूली सिपाही के रूप में जीवन शुरू किया और अंत में अपनी बहादुरी के बल पर एशिया में गवर्नर बन गया था। अपने पिता की ही तरह ट्राजन भी जन्मजात सैनिक था और सैनिक के ही रूप में उसका पालन पोषण भी हुआ।

दस साल तक ट्राजन सैनिक न्यायाधीश के रूप में काम करता रहा। बाद में सीरिया और स्पेन में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर उसने कार्य किया। सन् ८९ तक उसने एक बहादुर सैनिक के रूप में अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली। उसी वर्ष विद्रोह को दबाने के लिए उसे राइन प्रदेश में भेजा गया। वह तूफान की तरह वहाँ पहुँचा। लेकिन उसके पहुँचने के पहले ही विद्रोह शांत हो गया था। सन् ९१ में वह कांसुल बना। उसके रोम वापस लौटने पर उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर तत्कालीन रोमन सम्राट् नेरवा ने उसे अपर जर्मनी का कानूनी सलाहकार नियुक्त कर दिया और लिसीनियम सूरा के परामर्श पर उसे गोद लेकर २७ अक्तूबर, ९७ का अपना उत्तराधिकारी चुन लिया। शीघ्र ही सीनेट ने भी उसके चुनाव पर अपनी मोहर लगाकर उसे वैधानिक उत्तराधिकारी मान लिया। नेरवा की मृत्यु के बाद ट्राजन सन् ९८ में राजगद्दी पर बैठा।

ट्राजन के शासनकाल में रोमन साम्राज्य का बहुत विस्तार हुआ सन्१०१ से १०६ तक के युद्ध में उसने डेसियनों को पराजित कर डैन्यूब घाटी का सारा प्रदेश अपने साम्राज्य में मिला लिया। सन् ११४-११६ के पार्थियन युद्ध से उसने रोमन साम्राज्य को फारस की खाड़ी तक फैलाया। इन सब विजयों के परिणामस्वरूप अरबिया नामक नया म्रत बनाकर उसने साम्राज्य में सम्मिलित किया और विजित आर्मीनियन प्रदेश को प्रांतीय स्तर प्रदान किया गया।

डेसियन राजकोष और डेसियन सोने की खानों के हाथ लगने के कारण रोमन साम्राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई। नई सड़कें और बंदरगाह बनवाए गए। उसके शासनकाल में साहित्य की कोई विशेष उन्नति नहीं हुई, लेकिन उसका शासन इसलिये प्रसिद्ध है कि वह व्यक्तिगत रूप से लोकप्रिय शासक था। सीनेट के साथ उसके अच्छे संबंध थे। उसके सफल एवं योग्य नेतृत्व में सेना सुखी और संतुष्ट थी। उसके शासन का दोषपूर्ण पहलू यह है कि सीनेट पर कार्यपालिका का प्रभुत्व स्थापित हो गया। और प्रांतों के गवर्नर निष्क्रय हो गए। उस समय प्रांतीय गवर्नरों द्वारा ट्राजन का लिखे गए पत्रों से यह प्रकट होता है कि वे सम्राट् के केंद्रीय शासन पर बिल्कुल निर्भर हो गए थे।

८ अगस्त, ११७ को सिलीसिया में ट्राजन की मृत्यु हो गई (सत्यदेव विद्यालंकार (स्वर्गीय) पत्रकार)