टोड़ा या बाहुधरन (Cantilever) किसी इमातर या रचना का वह अंग है, जिसका एक सिरा पूर्णतया आबद्ध हो और शेष बाहर निकला हुआ आलंबरहित भाग का भार सँभाले हो। ईटं या पत्थर की चिनाई में जो ईटें या पत्थर दीवार के आर पार, या सामने से बहुत दूर अंदर तक जाते हैं और जिनकी चौड़ाई की ओर वाली सतह सामने दिखाई देती है, वे भी टोड़ा (या सेरू) कहलाते हैं। किंतु बाहुधरन के अर्थ में टोड़ा शब्द का प्रयोग व्यापक है।
निर्माणविज्ञान में टोड़ा बहुत महत्वपूर्ण अंग माना जाता है और अति प्राचीन काल से वास्तुकार इसके अलंकरण पर विशेष बल देते रहे हैं। हिंदू और बौद्ध स्थापत्य में तथा मुगल कालीन
इस प्रकार का टोड़ा किसी कारखाने के यार्ड (yard) के ऊपर बने हुए भाग को सम्हालने के लिये प्रयुक्त होता है।
इमारतों में कलात्मक टोड़ों और टुड़ियों के छोटे बड़े हजारों नमूने देखने में आते हैं। उनकी नकल आधुनिक इमारतों में भी सजावट क साधन बनी है।
घरों में दीपक आदि रखने के लिये किसी ईटं या पत्थर का टुकड़ा दीवार से कुछ बाहर निकाल कर टुड़िया बनाई जाती है। कच्चे घरों में यह बहुधा मिट्टी से ही बना ली जाती है। कच्ची दीवारों को वर्षा से बचाने के लिये उनपर फूस की छानी रखते हैं। छानी का अगला भाग लकड़ी के टोड़ों पर, जो दीवार से दो तीन फुट बाहर निकले रहते हैं, रखा रहता है।
आजकल प्रबलित कंक्रीट क प्रचलन बढ़ जाने से छज्जों के नीचे टुड़िए बहुत कम लगाए जाते हैं। इनके बजाय छज्जों का अभिकल्प ही बाहुधरन के सिद्धान्त पर होता है। बाहुधरन, चाहे धरन हो या स्लैब, भार के कारण मुक्त सिरे की ओर नीचे झुकने की प्रवृत्ति दर्शाती है, अर्थात।
चित्र २. क्रेन में टोड़ा
क. हथौड़ानुमा क्रेन तथा ख. दीर्घ विस्तारवाला दोहरे टोड़े का क्रेन।
साधारण धरन के नमन का उल्टा नमन इसमें होता है। इसे ऋणात्मक नमन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप ऊपर के तल में तनाव और नीचे के तल में दबाव हुआ करता है।
टोड़ा का महत्वपूर्ण उपयोग क्रेनों में होता है। क्रेनों की लंबी लंबी भुजाएँ लोहे के कारखानों और रेल, जहाज आदि के मालगोदामों में दूर दूर तक का सामान हटाने और धरने उठाने के लिये अनिवार्य होती हैं। दूसरा महत्वपूर्ण उपयोग बड़े पुलों के लिये होता है। स्कॉटेलैड की फोर्थ नदी।
चित्र ३. पुल की रचना में टोड़ा
के बाहुधरन पुल का पाट लगभग एक तिहाई मील है। कलकत्ता (हावड़ा) में हुगली नदी का पुल भी संसार के बड़े पुलों में है। इसका पाट १,५०० फुट है, जिसमें दोनों और अंत्याधारों से ४६८ फुट लंबी बाहुधरनें निकली हुई हैं और बीच का ५६४ फुट का भाग, उन बाहुधरणों के सिरों पर रखे हुए कैंचीदार गर्डरों से पटा है। बाहुधरनों को साधने के लिये अंत्याधारों से पीछे की ओर ३२५ फुट लंबी लंगर बाहुएँ हैं, जिनके सिरों पर लटकते हुए भारी लंगर संतुलन बनाए रखते हैं। इस प्रकार पुल की कुल लंबाई २,१५० फुट है। (विश्वंभरप्रसाद गुप्त)