टैंगैनिका (Tanganyika) स्थिति १ से ११ ४५ द.० अ. तथा २९ २१ से ४० २५ पू. दे.। यह पूर्वी अफ्रीका में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है जो अप्रैल, सन् १९६४ में स्वतंत्र हुआ है। स्वतंत्र देश का नाम टैंगैनिका एवं जंजीबार संयुक्त गणतंत्र है। इसके पूर्व में हिंद महासागर दक्षिण में मोजैंबीक, दक्षिण-पश्चिम में रोडीजिया और मलाबी गणराज्य, पश्चिम में कांगो, उत्तर-पश्चिम में रुआंडा, ऊरुंडी और यूगैंडा तथा उत्तर-पूर्व एवं उत्तर में केनया है। इसमें माफिया द्वीप सम्मिलित है। इसके ३,६२,६८८ वर्ग मील क्षेत्र में से १९,९८२ वर्ग मील धरातलीय भाग जल से घिरा हुआ है। देश का अधिकांश भाग कैंब्रियन पूर्व प्रणाली की प्राचीन रवेदार चट्टानों का बना हुआ है। इसके मध्य में उत्तर से दक्षिण महत् विभ्रंश घाटी पड़ती है। टैंगैनिका का अधिकांश भाग पठारी है, जिसकी ऊँचाई ३,५०० फुट से ४,५०० फुट है। उत्तर में किलिमैंजारो पर्वत की सर्वोच्च हिमाच्छादित चोटी कीबो १९,५६५ फुट ऊँची है। यह भूमध्य रेखा के केवल ३ दक्षिण में हैं। दूसरी चोटी मेरु है, जिसकी उँचाई १४,९८० फुट है। किलिमैंजारो के दक्षिण-पश्चिम में टैंगा के बंदरगाह की ओर पारे और उसंबरा श्रेणियाँ हैं। दक्षिण-पश्चिम में निऐसा झील के उत्तरी सिरे पर लिविंगस्टोन, किपेंजर तथा पोरोटा पर्वत हैं।

इस देश का समुद्रतट ५०० मील लंबा है। कुछ ही नदियाँ सदावाहिनी हैं। पूर्व की मुख्य नदियाँ पांगानी, वांमी तथा एमकोंडोआ हैं। दक्षिण में रूफीजी और कागेरा मुख्य नदियाँ हैं, जिनमें क्रमश: ६० तथा ९० मील तक नौका चल सकती है। किसी महत्वपूर्ण नदी के न रहते हुए भी टैंगैनिका अफ्रीका महाद्वीप की तीन सर्वप्रमुख नदियों, कांगो, नील और जैबेजी, जो यहाँ से निकलकर क्रमश: अतलांतक, भूमध्य एवं हिंद महासागरों में गिरती हैं, के बीच जलविभाजक का काम करता है।

विक्टोरिया झील (२६,२०० वर्ग मील) ३,७१७ फुट की ऊँचाई पर है तथा इसका लगभग आधा भाग ही टैंगैनिका में है। इसके अतिरिक्त टैंगैनिका झील (४२० मील लंबी तथा औसतन ३० मील चौड़ी २,५३४ फुट की ऊँचाई पर है) तथा रुक्वा, मैनयारा नैट्रान और निऐसा अन्य झीलें हैं।

यहाँ का ताप लगभग एक सा रहता है। जाड़े का औसत ताप १७ सें. तथा गर्मी का २८ सें. है। दार-एस्-सालाम की वार्षिक वर्षा ४०'' हैं। सर्वाधिक वर्षा (१००'') रंगवे में होती है। दैनिक तापांतर ११ सें. से १० सें. तक होता है, लेकिन टैबोरा में यह कभी कभी २ सें. तक पहुँच जाता है, जिससे फसलों को बहुत हानि पहुँचती है।

तटीय भागों में नारियल, ताड़, आंशुकफल (Mangrove) और कैजुआरीना (Casuarina) मिलते हैं। शेष भागों में जंगल हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के देवदारु के वृक्ष पाए जाते हैं। इन

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जंगलों में गोरिल्ला, हाथी, जिराफ, गैंडा, दरियाई घोड़ा (हिप्पेपोटैमस) के अतिरिक्त, चीता, शेर, तेंदुआ, बारहसिंगा आदि पर्याप्त संख्या में पाए जाते हैं। चिंपैंजी तथा सिटुटुंगा (Situtunga) नामक बारहसिंगा तो असाधारण ही हैं। इस देश का दो तिहाई भाग कालमक्षिका (Tsetsefly) नामक मक्खियों से ग्रस्त है।

अधिकांश पठारी लोग पशुपालन एवं शिकार करते हैं। तटीय मैदानों में, झीलों के समीप एवं कुछ ऊंचे भागों में कृषि होती है। फसलों में मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन तथा धान मुख्य हैं। कहवा, चाय, तंबाकू, गन्ना तथा कपास व्यावसायिक फसलें हैं। सीसल (Sisal) नामक रेशे के उत्पादन में तो टैंगैनिका सर्वप्रमुख ही है। कुछ खनिज भी पाए जाते हैं, जिनमें सोना, टिन, हीरा, कोयला, ताँबा और अभ्रक मुख्य हैं। इनमें से केवल सोना और हीरे का खनन ही महत्वपूर्ण है।

यहाँ पशुधन उद्योग उन्नति पर है अत: मांस तथा मक्खन का निर्यात पर्याप्त मात्रा में होता है। खनन उद्योग भी विकसित है। यहाँ से हीरा, सोना, टिन, कोयला, अभ्रक, ताँबा, मैगनेसाइट, केओलिन तथा नमक का निर्यात होता है। सूती वस्त्र, कृषियंत्र, भोज्य एवं पेय फ्दार्थ, रसायनक तथा बने हुए माल का आयात मुख्यतया इंग्लैंड, भारत, दक्षिणी अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमरीका, केनया, जर्मनी, फ्रांस एवं बेल्जियम से होत है।

आवागमन के विकसित साधनों का अभाव है। केवल कुछ प्रसिद्ध नगर ही रेलों तथा सड़कों से जुड़े हुए हैं। जलसेवा मुख्य साधन है। विक्टोरिया एवं टैंगैनिका झीलों के बंदरगाहों पर नियमित स्टीमर सेवाएँ हैं। विदेशी वायुयान सेवा भी है। हवाई अड्डों तथा पट्टियों की बहुत ही कमी है। टैंगैनिका सरकार अपने वायुयानों का उपयोग सर्वेक्षण तथा अन्य राजकीय कार्यों में करती है। दार एस्-सालाम तथा मुख्य नगरों के बीच तार और टेलीफोन हैं तथा संसार के अन्य भागों से रेडियो टेलीफोन संबंध भी है।

यहाँ की कुल जनसंख्या ९५,३८,००० (१९६२) है। दार-एस् सालाम टैंगैनिका की राजधानी एवं प्रमुख बंदरगाह है। यहाँ एक प्राविधिक संस्थान है। अन्य मुख्य नगर टैंगा, टैंबोरा, म्वांजा, डोडोमा, मोरो गोरा, लिंदी, मोशी, इरिंग, तथा अरुशा (१०,०००) हैं। उपर्युक्त सभी नगरों में शिक्षा की व्यवस्था है, लेकिन संपूर्ण रूप से शिक्षा बहुत ही पिछड़ी हुई है। (रा. प्र. सिं.)

निवासी - यहाँ के निवासियों में लगभग सवा सौ जातियाँ हैं, जो अपनी शारीरिक और भाषागत विशेषताओं के कारण एक दूसरे से भिन्न हैं। ९० प्रतिशत से अधिक लोग बांतू (Bantu) जाति के हैं, जो मूलत: हेमिटिक (Hamitic) और नीग्रो वंशों से संबंधित हैं। केवल लुओ (Luo) जाति मूलत: निलोटिक (Nilotic) है। हेमिटिक और निलोटिक लोगों के रक्तमिश्रण से अनेक जातियाँ उत्पन्न हुई हैं। बाहरी लोगों में भारतीय, पाकिस्तानी, अरब, यूरोपीय, सीरियाई, और चीनी हैं, जो यहाँ स्थायी रूप से बस गए हैं।

भाषा तथा धर्म - स्वाहिली (Swahili) या किस्वाहिली (Kiswahili) मुख्य भाषा है, जो अरबी, अंग्रेजी, फारसी, हिंदी, और पुर्तगाली शब्दों को भी अपना लेने के कारण सर्वाधिक प्रचलित है, यद्यपि अंग्रेजी का भी यथेष्ट प्रभाव है। राष्ट्रीय संविधान में दोनों भाषाओं को स्थान प्राप्त है।

अधिकतर लोग ईश्वरवादी हैं, किंतु धार्मिक रीतिरिवाजों में जाति-जाति में अंतर पाया जाता है। जादू टोने और मंत्र तंत्रों में व्यापक विश्वास है। पितरों की भी पूजा की जाती है। इस्लाम और ईसाई धर्मों को भी लोगों ने तेजी से अपना लिया है।

इतिहास - लीकी की १९५९ की खोजों पर आधारित मान्यताओं के अनुसार टैंगैनिका में मनुष्य आदिम काल से रहता रहा है। यद्यपि इसके प्राचीन इतिहास के संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, इस बात के प्रमाण उपलब्ध होते हैं कि अरब, भारत, चीन, फ़ारस, यूनान और पूर्वी अफ्रीका के बीच बहुत प्राचीन युग में व्यापार संबंध विद्यमान थे। ८वीं शताब्दी के लगभग अरबों ने पूर्वी अफ्रीका के तटों पर अपने उपनिशेष बसाए। इसी क्रम में फारसी लोगों ने भी पूर्वी अफ्रीका के तटों का उपनिवेशीकरण किया। तटीय अफ्रीकियों से अरबों के वैवाहिक संबंध होने के कारण स्वाहिली जाति की उत्पत्ति हुई। यूरोपीय जातियों के पहुँचने के पूर्व वहाँ सभ्यता स्वस्थ रूप से विकसित हो चुकी थी।

१६वीं शताब्दी के आरंभ में पुर्तगालियों ने कुछ तटीय स्थानों पर अधिकार कर लिया, किंतु आगे चलकर समुद्री बाधाओं के कारण मोजांबीक के अतिरिक्त सभी स्थानों से इन्हें हटना पड़ा अरब के ओमनी सुलतानों के दासव्यापार, तथा विभिन्न जातियों के बीच चलनेवाले युद्धों से देश की जनसंख्या कम हो गई। बरटन (Burton) और स्पीक (Speke) ने १८५७ में प्रदेश के कई आंतरिक भागों की खोज की। १८६६ में जंजीबार के सुलतान मजीद ने दार-उस्-सालाम (शांति का आश्रयस्थल) नगर की स्थापना की।

१८८४ में टैंगैनिका जर्मनी के प्रभावक्षेत्र में आ गया। १८९० में जर्मनी ने जंजीबार के सुलतान से कुछ तटीय भाग खरीद लिया, जिसमें टैंगैनिका और रुआंडा-उरुंडी भी सम्मिलित थे। वहाँ जर्मनी ने जर्मन पूर्वी अफ्रीका के नाम से अपना एक अड्डा स्थापित किया। धीरे-धीरे जर्मनी ने आंतरिक भागों पर भी अधिकार कर लिया। १९०५-७ का माजीमाजी विद्रोह बड़ी कठोरता से दबा दिया गया। जर्मनी ने यहाँ रेलों और बस्त्तियों के निर्माण का कार्य किया। दासव्यापार के स्थान पर अनिवार्य श्रम की व्यवस्था शुरू की।

प्रथम विश्वयुद्ध में यहाँ जर्मनों ने अंग्रेजी फौजों के विरुद्ध गुरिल्ला सैनिक नीति अपनाई जिसमें टैंगैनिका की बड़ी क्षति हुई। युद्ध के बाद ब्रिटेन ने राष्ट्रसंघ के शासनादेश से टैंगैनिका पर अधिकार कर लिया। १९४६-४७ में टैंगैनिका राष्ट्रसंघ ट्रस्ट के अधिकार में हो गया।

विधान परिषद् की स्थापना यहाँ १९२६ में ही हुई थी, किंतु अफ्रीकियों को प्रतिनिधित्व क अधिकार १९४५ में मिला। १९५१ में प्रथम बार एक अफ्रीकी कार्यकारिणी परिषद् (Executive Council) का सदस्य निर्वाचित हुआ १९५४ के पश्चात् टैंगैनिका अफ्रीकन नैशनल यूनियन (Tanganyika African National Union) ने राष्ट्रसंघ में ब्रिटेन के विरुद्ध टैंगैनिका की स्वतंत्रता के लिये आवेदन प्रस्तुत किया। १९६० में ज्यूलियस न्येरेरे प्रधान मंत्री निर्वाचित हुए। ९ दिसंबर, १९६१ को स्वतंत्र टैंगैनिका की घोषणा हुई। एक वर्ष पश्चात् टैंगैनिका गणराज्य बना। २६ अप्रैल, १९६४ को जंजीबार के साथ टैंगैनिका का ''यूनाइटेड रिपब्लिक ऑव टैगैनिका ऐंड जंजीबार'' नाम से विलयन हो गया। २९ अक्टूबर १९६४ को उच्चस्तरीय मंत्रिपरिषद् की बैठक में इसे रिपब्लिक आव् टांजानिया' नाम दिया गया।