ज्योतिषी, भारतीय से अभिप्राय उन ग्रंथकारों से है जिन्होंने अपने ग्रंथ, भारत में विकसित ज्योतिष प्रणाली के आधार पर लिखे। प्राचीन काल के ज्योतिषगणना संबंधी कुछ ग्रंथ ऐसे हैं, जिनके लेखकों ने अपने नाम नहीं दिए हैं। ऐसे ग्रंथ हैं वेदांग ज्योतिष (काल ईo पूo १२००); पंचसिद्धांतिका में वर्णित पाँच ज्योतिष सिद्धांत ग्रंथ। कुछ ऐसे भी ज्योतिष ग्रंथकार हुए हैं जिनके वाक्य अर्वाचीन ग्रंथों में उद्धृत हैं, किंतु उनके ग्रंथ नहीं मिलते। उनमें मुख्य हैं नारद, गर्ग, पराशर, लाट, विजयानंदि, श्रीषेण, विष्णुचंद आदि। अलबेरूनी के लेख के आधार पर लाट ने मूल सूर्यसिद्धांत के आधार पर इसी नाम के एक ग्रंथ की रचना की है। श्रीषेण के मूल वसिष्ठ सिद्धांत के आधार पर वसिष्ठ-सिद्धांत लिखा। ये सब ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त (शक संवत् ५२०) से पूर्व हुए है। श्रीषेण आर्यभट के बाद तथा ब्रह्मगुप्त से पूर्व हुए हैं। प्रसिद्ध ज्योतिषियों का परिचय निम्नलिखित है :
आर्यभट प्रथम--देखें हिंदी विश्वकोश खंड १, पृष्ठ ४११ पर प्रकाशित लेख।
वराहमिहिर--देखें वराहमिहिर शीर्षक लेख।
ब्रह्मगुप्त--देखें ब्रह्मगुप्त शीर्षक लेख।
मनु--रचनाकाल : शक संवत् ८०० के लगभग, ग्रंथ : बृहन्मानसकरण।
विटेश्वर--रचनाकाल : शंक संवत् ८२१, ग्रंथ : करणसार।
बटेश्वर--इन्होंने सिद्धांत बटेश्वर लिखा है, जिसे हाल ही में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑव ऐस्ट्रोनॉमिकल ऐंड संस्कृत रिसर्च, नई दिल्ली, ने छपाया है। अलबेरुनी के पास इस ग्रंथ का एक अरबी अनुवाद था और उसने इसकी बहुत प्रंशसा की है। इसकी ज्याप्रणाली अन्य सिद्धांतों की ज्याप्रणाली से सूक्ष्म है। कुछ विद्वानों के अनुसार वित्तेश्वर और बटेश्वर एक ही व्यक्ति थे।
मुंजाल--इनका रचनाकाल शक संवत् ८५४ है। इनका उपलब्ध ग्रंथ लघुमानसकरण है। इन्होंने अयनगति १ कला मानी है। अयनगति के प्रसंग में भास्कराचार्य ने इनका नाम लिया है। मुनीश्वर ने मरीचि में अयनगति विषयक इनके कुछ श्लोक उद्धृत किए हैं, जो लघुमानस के नहीं हैं। इससे पता चलता है कि मुंजाल का एक और मानस नामक ग्रंथ था, जो उपलब्घ नहीं है।
आर्यभट द्वितीय--देखें हिंदी विश्वकोश खंड १, पृष्ठ ४१२।
चतुर्वेद--पृथूदक स्वामी, रचनाकाल : ८५०-९०० शक संवत् के भीतर। ग्रंथ : ब्रह्मस्फुटसिद्धांत की टीका।
विजयनंदि--रचनाका : शक संo ८८८। ग्रंथ : करणतिलक।
श्रीपति--इनका रचनाकाल शक संo ९६१ हैं। इन्होंने सिद्धांतशेखर तथा धीकोटिदकरण नामक गणित ज्योतिष विषयक और रत्नमाला नामक मुहूर्त्त विषयक ग्रंथ लिखा है। सुधाकर द्विवेदी के अनुसार इनका रत्नसार नामक एक अन्य मुहूर्त ग्रंथ भी है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ज्याखंडों के बिना केवल चाप के अंशों से ज्यासाधन किया है। ये नागदेव के पुत्र थे।
वरुण--रचनाकाल : शक संo ९६२। ग्रंथ : खंडखाद्य टीका।
भोजराज--इनका रचनाकाल शक संo ९६४ है। इनका ग्रंथ राजमृगांक है। इसमें इन्होंने ब्रह्मगुप्त के सिद्धांत के लिये बीजसंस्कारों को निकाला है।
दशबल--इनका रचनाकाल शक संo ९८० है। इसका ग्रंथ करणकमलमार्तंड है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सारणियाँ दी गई हैं, जिनसे ग्रहों की गणना सुगम हो जाती है।
ब्रह्मदेव गणक--इनके पिता का नाम चंद्र था। ये मथुरा के रहनेवाले थे। इनका रचनाकाल शक संo १०१४ है। इन्होंने करणप्रकाश नामक ग्रंथ लिखा है। इन्होंने आर्यभटीयम् की गतियों में लल्ल के बीजसंस्कार करके उसे ग्रहण किया है। इनका शून्यायनांश वर्ष शक संo ४४५ है। इन्होंने अयनगति १ कला मानी है१
शतानंद--जगन्नाथपुरी निवासी शतानंद का रचनाकाल शक संo १०२१ है। इनका प्रसिद्ध ग्रंथ भास्वतीकरण है। इनका शून्यायनांश वर्ष ४५० तथा अयनगति १ कला है। इन्होंने अहर्गण का साधन स्पष्ट मेष से किया है। इनकी विशेषता यह है कि इन्होंने ग्रहगतियों को शतांश अथवा प्रति शत में रखा है, जिससे गणित करने में सरलता हो जाती है। यह पद्धति आधुनिक दशमलव प्रणाली जैसी है१
महेश्वर--प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी भास्कराचार्य के पिता तथा गुरु, महेश्वर, का जन्मकाल शक संo १००० के लगभग है। शेखर इनका गणितज्योतिष का ग्रंथ है। इनके अन्य ग्रंथ हैं। लघुजातकटीका, वृत्तशत, प्रतिष्ठाविधिदीपक।
सोमेश्वर तृतीय--इनके अन्य नाम हैं भूलोक मल्ल और सर्वज्ञभूपाल। ये चालुक्य वंश के राजा थे। इन्होंने शक संo १०५१ में अभिलाषितार्थचिंतामणि नामक ग्रंथ लिखा।
भास्कराचार्य--देखें लेख भास्कराचार्य।
वाविलालकोच्चन्ना--रचनाकाल : शक सँवत् १२२०। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के आधार पर एक करणग्रंथ लिखा है।
महादेव प्रथम--ये गुजराती ब्राह्मण थे। शक संवत् १२३८ में इन्होंने चक्रेश्वर नामक ज्योतिषी द्वारा आरंभ किए हुए, ग्रहसिद्धि नामक सारणीग्रंथ को पूर्ण किया।
महादेव तृतीय--ये त््रयंबक की राजसभा के पंडित, बोपदेव, के पुत्र थे। इन्होंने शक संवत् १२८९ में कामधेनुकरण नामक ग्रंथ लिखा।
नार्मद--रचनाकाल : शक संवत् १३००। रचना : सूर्यसिद्धांत टीका।
पद्नाभ--रचनाकाल : शक संवत् १३२०। रचना : यंत्ररत्नावली, जिसके द्वितीय अध्याय में प्रसिद्ध ध्रुवमय यंत्र है।
लल्ल--पंo सुधाकर द्विवेदी ने इनका रचनाकाल शक संवत् ४२१ तथा केर्न ने शक संवत् ४२० माना है, किंतु बालशंकर दीक्षित के अनुसार इनका काल लगभग शक संवत् ५६० है। इन्होंने आर्यभटीयम् के आधार पर अपना शिष्यधीवृद्धिदतंत्र नामक ग्रहगणित का ग्रंथ लिखा है। प्रत्यक्ष वेध द्वारा इन्होंने कुछ बीज संस्कारों का वर्णन किया है। भास्कराचार्य ने सिद्धांतशिरोमणि में कई स्थानों पर इनके गणनासूत्रों की अशुद्धियाँ दिखलाई हैं।
दामोदर--रचनाकाल : शक संo १३३९, ग्रंथ : भट्टतुल्य। इसकी ग्रहगणना आर्यभट सरीखी है।
गंगाधर--रचनाकाल : शक संo १३५६। ग्रंथ : चंद्रमान।
मकरंद--रचनाकाल : शक संo १४००। इन्होंने सूर्यसिद्धांत के अनुसार सारणियाँ बनाईं, जो बहुत प्रसिद्ध है। आज भी बहुत से पंचांग इनके आधार पर बनते हैं।
केशव--प्रसिद्ध ग्रहलाघवाकार गणेश के पिता केशव का रचनाकाल १४१८ ईo संo के लगभग है। इन्होंने करणग्रंथ ग्रहकौतुक लिखा। ये बहुत निपुण वेधकर्त्ता थे। इन्होंने अपने ग्रंथ में प्रत्यक्ष वेध द्वारा अन्य सिद्धांतकारों के ग्रहगणित की अशुद्धियों का निर्देश किया है।
गणेश--केशव के पुत्र गणेश का जन्मकाल १४२० शक संo के लगभग है। इनके ग्रंथ हैं ग्रहलाघव, लघुतिथि चिंतामणि, बृहत्तिथिचिंतामणि, सिद्धांतशिरोमणि टीका, लीलावती टीका, विवाहवृंदावन टीका, मुहूर्तत्व टीका, श्राद्धनिर्णय, छंदोर्णव, टीका, तर्जनीयंत्र, कृष्णाष्टमीनिर्णय, होलिकानिर्णय, लघुपाय पात आदि। इनकी कीर्ति का मुख्य स्तंभ है ग्रहलाघवकरण। सिद्धांतग्रंथों में वर्ण्य प्राय: सभी विषय इसमें हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमें ज्या चाप की गणना के बिना ही सब गणना की गई है और यह अत्यंत शुद्ध है। ये बहुत अच्छे वेधकर्ता थे। इन्होंने अपने पिता के वेधों से भी लाभ उठाया। इसीलिये इन्होंने एक ऐसी गणनाप्रणाली निकाली जो अति सरल होते हुए भी बहुत शुद्ध थी। इनके ग्रंथ के आधार पर भारत में बहुत से पंचांग बनते हैं। ग्रहलाघव की अनेक टीकाएँ हो चुकी हैं।
लक्ष्मीदास--रचनाकाल : शक संo १४२२, रचना : सिद्धांतशिरोमणि के गणिताध्याय तथा गोलाध्याय की उदाहरण सहित टीका।
ज्ञानराज--इनका रचनाकाल शक संo १४२५ है। इनका ग्रंथ सुंदरसिद्धांत है। इसके दो मुख्य भाग हैं : गणिताध्याय तथा गोलाध्याय। ग्रहगणित के लिये इन्होंने करणग्रंथों की तरह क्षेपक तथा वर्षगतियाँ भी दी हैं। कहीं कहीं पर इनकी उपपत्तियाँ भास्करसिद्धांत से विशिष्ट हैं। इन्होंने यंत्रमालाधिकार में एक नवीन यंत्र बनाया है।
सूर्य--इनका जनम शक संo १४३० है। ये ज्ञानराज के पुत्र थे। इन्होंने गणित ज्योतिष के सूर्यप्रकाश, लीलावती टीका, बीज टीका, श्रीपतिपद्धतिगणित, बीजगणित, नामक ग्रंथों की रचना की है। कोलब्रुक के अनुसार इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि टीका तथा गणितमालती ग्रंथ भी बनाए हैं। इनका एक और ग्रंथ है सिद्धांतसंहितासार समुच्चय।
अनंत प्रथम--रचनाकाल : शक संo १४४७। रचना : अनंतसुधारस नामक सारणीग्रंथ।
ढुंढिराज--रचनाकाल : शक संo १४४७ के लगभग, रचना : अनुंबसुधारस की सुधारस-चषक-टीका, ग्रहलाघवोदाहरण, ग्रहफलोपपत्ति; पंचांगफल, कुंडकल्पलता तथा प्रसिद्ध फलितग्रंथ जातकाभरण।
नृसिंह प्रथम--ये गणेश के भाई, राम, के पुत्र थे। रचना मध्यग्रहसिद्धि (शक संo १४००) तथा ग्रहकौमुदी।
अनंत द्वितीय--मुहूर्तचिंतामणि के निर्माता राम तथा ताजिक नीलकंठी के निर्माता, नीलकंठ के पिता अनंत, का रचनाकाल शक संo १४८० है। इन्होंने कामधेनु की टीका तथा जातकपद्धति की रचना की।
नीलकंठ--रचनाकाल : शक संo ५०९, ग्रंथ : तोडरानंद तथा ताजिकनीलकंठी। गणकतरंगिणी के अनुसार इन्होंने जातकपद्धति भी लिखी थी। आफ्रेच सूची के अनुसार इनके अन्य ग्रंथ हैं : तिथिरतनमाला, प्रश्नकौमुदी अथवा ज्योतिषकौमुदी, दैवज्ञवल्लभा, जैमिनीसूत्र की सूबोधिनी टीका। ग्रहलाघव टीका, ग्रहौतक टीका, मकरंद टीका तथा एक मुहूर्तग्रंथ की टीका।
रघुनाथ प्रथम--काल : शक संo १४८४, रचना : सुबोधमंजरी।
रघुनाथ द्वितीय--काल : शक संo १४८७, रचना : मणिप्रदीप।
कृपाराम--काल : शक संo १४२० के पश्चात्, रचनाएँ : बीजगणित, मकरंद तथा यंत्रचिंतामणि की उदाहरणस्वरूप टीकाएँ। इन्होंने सर्वार्थचिंतामणि, पंचपक्षी तथा मुहूर्ततत्व की टीकाएँ भी की हैं।
दिनकर--काल : शक संo १५००, ग्रंथ : खेटकसिद्धि तथा चंद्रार्की।
गंगाधर--काल : शक संo १५०८, ग्रंथ : ग्रहलाघव की मनोरमा टीका।
रामभट--काल : शक संo १५१२, ग्रंथ : रामविनोदकरण।
श्रीनाथ--काल : शक संo १५१२, ग्रंथ : ग्रहचिंतामणि।
विष्णु--काल : शक संo १५३०, ग्रंथ : एक करणग्रंथ।
मल्लारि--काल : शक संo १५२४, ग्रंथ : ग्रहलाघव की उपपत्तिसहित टीका।
विश्वनाथ--काल : शक संo १५३४-१५५६। ये प्रसिद्ध सोदाहरण टीकाकार हैं। इन्होंने सूर्यसिद्धांत शिरोमणि, करणकुतूहल, मकरंद, केशबीजातक पद्धति, सोमसिद्धांत, तिथिचिंतामणि, चंद्रमानतंत्र, बृहज्जातक, श्रीपतिपद्धति वसिष्ठसंहिता तथा बृहत्संहिता पर टीकाएँ की हैं।
नृसिंह द्वितीय--जन्म : शक संo १५०८, ग्रंथ : सूर्यसिद्धांत की सौरभाष्य तथा सिद्धांतशिरोमणि की वासनाभाष्य टीकाएँ।
शिव--जन्म : शक संo १५१०, ग्रंथ : अनंतसुधारस टीका।
कृष्ण प्रथम--रचना : शक संo १५००-१५३०, ग्रंथ : भास्कराचार्य के बीजगणित की बीजनवांकुद तथा जातकपद्धति की टीकाएँ, तथा छादकनिर्णय।
रंगनाथ प्रथम--रचना : शक संo १५२५, ग्रंथ : सूर्यसिद्धांत की गूढ़ार्थप्रकाशिका टीका।
नागेश--रचनाकाल : शक संo--१५४१, ग्रंथ : करणग्रंथ, तथा ग्रहप्रबोध।
मुनीश्वर--ये गूढ़ार्थप्रकाशिकाकार रंगनाथ के पुत्र थे। इनका जन्मकाल श संo १५२५ है। इन्होंने सिद्धांतसार्वभौम ग्रंथ लिखा तथा लीलावती पर निसृष्टार्थदूती और सिद्धांतशिरोमणि की मरीचि टीका की। कुछ विद्वान् पाटीसार भी इनका लिखा मानते हैं।
दिवाकर--जन्मकाल : शक संo १५२८ है, रचना : मकरंद की मकरंदविवृत्ति टीका।
कमलाकर भट्ट--जन्म : शक संo १५३० के लगभग। इन्होंने काशी में शक संo १५८० के लगभग सिद्धांततत्वविवेक बनाया। यह आधुनिक सूर्यसिद्धांत के आधार पर लिखा गया है। इसमें बहुत सी गणित संबंधी नवीन रीतियाँ है। तुरीय यंत्र का विस्तृत वर्णन तथा ध्रुवतारा की स्थिरता का वर्णन इनकी नूतनता है। इन्होंने मुनीश्वर तथा भास्कराचार्य का कई
स्थलों पर खंडन किया है, जो कुछ स्थलों पर इनके निजी अज्ञान का द्योतक है। ये संक्षिप्त न लिखकर बहुत विस्तार से लिखते हैं१ इनके १३ अध्यायों के ग्रंथ में ३,०२४ श्लोक हैं।
रंगनाथ द्वितीय--जन्म : शक संo १५३४ के लगभग, ग्रंथ : सिद्धांतशिरोमणि की मितभाषिणी टीका तथा सिद्धांतचूड़ामणि।
नित्यानंद--रचनाकाल: शक संo १५६१। इन्होंने सायन मानों से सर्वसिद्धांतराज ग्रंथ लिखा है। इसमें वर्तमान ३६५।१४।३३।७ ४०४४८ दिनादि है, जो वास्तव काल के निकटतर है। इनके दिए हुए भगणों से यह स्पष्ट है कि ये कुशल वेधकर्ता थे।
कृष्ण द्वितीय--इन्होंने शक संo १५७५ में करणकौस्तुभ लिखा१
रत्नकंठ--इन्होंने शक संo १५८० में पंचांगकौस्तुभ नामक सारणीग्रंथ लिखा।
विद्दन--शक संo १६२६ से कुछ पूर्व, इन्होंने वार्षिकतंत्र लिखा। इनका अन्य ग्रंथ ग्रहणमुकुर है।
जटाधर--इन्होंने शक संo १६२६ में फत्तेशाह प्रकाश नामक करणग्रंथ लिखा।
दादाभट--इन्होंने शक संo १६४१ में सूर्यसिद्धांत की करणावलि टीका लिखी१
नारायण--रचना : शक संo १६६१। इन्होंने होरासारसुधानिधि, नरजातकव्याख्या, गणकप्रिया, स्वरसार तथा ताजकसुधानिधि लिखे।
जयसिंह--राजा जयसिंह शंक संo १६१५ में राजसिंहासन पर बैठे थे। इन्होंने हिंदू, मुसलमान तथा यूरोपीय ज्योतिष ग्रंथों का अध्ययन किया और देखा कि उनसे स्पष्ट ग्रह तथा दृश्य ग्रहों में अंतर है। इसलिये इन्होंने जयपुर, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन तथा काशी में पक्की वेधशालाएँ बनवाईं जो अब भी इनके कीर्तिस्तंभ की तरह विद्यमान हैं। आठ साल तक वेध करवाकर इन्होंने अरबी का जिजमुहम्मद तथा संस्कृत में सम्राट् सिद्धांत नामक ग्रंथ बनवाए। सिद्धांत सम्राट् इन्होंने जगन्नाथ पंडित से शक संo १६५३ में बनवाया। इनके ग्रंथ से ग्रह अतिसूक्ष्म आते हैं।
शंकर--इन्होंने शक सं १६८८ में वैष्णवकरण लिखा।
मणिराम--इन्होंने शक संo १६९६ में ग्रहगणित चिंतामणि लिखी।
भुला--इन्होंने शक संo १७०३ में ब्रह्मसिद्धांतसार लिखा।
मथुरानाथ--इन्होंने शक संo १७०४ में यंत्रराजघटना लिखा।
चिंतामणिदीक्षित--शक संo १६५८-१७३३। इन्होंने सूर्यसिद्धांतसारणी तथा गोलानंद नामक वेधग्रंथ लिखा।
शिव--इन्होंने शक संo १७३७ में तिथिपारिजात लिखा।
दिनकर--इन्होंने शक संo १७३४ से १७६१ के बीच ग्रहविज्ञानसारणी, मासप्रवेशसारणी, लग्नसारणी, क्रांतिसारणी आदि ग्रंथ लिखे।
बापूदेव शास्त्री--काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के मुख्य अध्यापक थे। बापूदेव शास्त्री (नृसिंह) का जन्म शक संo १७४३ में हुआ। ये प्रयाग तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयों के परिषद तथा आयरलैंड और ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल के सम्मानित सदस्य थे। इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि मिली थी। इनके ग्रंथ हैं : रेखागणित प्रथमाध्याय, त्रिकोणमिति, प्राचीन ज्योतिषाचार्याशयवर्णन, सायनवाद, तत्वविवेकपरीक्षा, मानमंदिरस्थ यंत्रवर्णन, अंकगणित, बीजगणित। इन्होंने सिद्धांतशिरोमणि का संपादन तथा सूर्यसिद्धांत का अंग्रेजी में अनुवाद किया। इनका दृक्सिद्ध पंचांग आज भी वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित होता है।
नीलांबर शर्मा--इनका गोलप्रकाश शक संo १७९३ में प्रकाशित हुआ।
विनायक अथवा केरो लक्ष्मण छत्रे--इन्होंने पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर ग्रहसाधनकोष्ठक शक संo १७७२ में लिखा। इनका अन्य ग्रंथ चिंतामणि हैं।
चिंतामणि रघुनाथ आचार्य--जन्म : शक संo १७५०। इन्होंने तमिल में ज्योतिषचिंतामणि लिखा।
कृष्ण शास्त्री गाडबोले--जन्म : शक संo १७५३। इन्होंने वामनकृष्ण जोशी गद्रे के साथ ग्रहलाघव का मराठी अनुवाद, ज्योतिषशास्त्र तथा पंचांगसाधनसार छपाया तथा 'मासानां मार्गशीर्षोहं' लेख द्वारा यह सिद्ध किया कि वेद शकपूर्व ३० हजार वर्ष से प्राचीन हैं१
वेंकटेश बापूजी केतकर--इन्होंने शक संo १८१२ में पाश्चात्य ज्योतिष के आधार पर 'ज्योतिर्गणित' लिखा, जिससे ग्रहगणना बहुत सूक्ष्म होती है।
सुधाकर द्विवेदी--इनका जन्मकाल शक संo १७८२ है। ये काशी के संस्कृत कालेज के ज्योतिष के प्रधान पंडित तथा अपने समय के अति प्रसिद्ध विद्वान् थे। इनहें महामहोपाध्याय की उपाधि प्राप्त थी। इनके ग्रंथ हैं : दीर्घवृत्तलक्षण, विचित्र प्रश्न सभंग, द्युचरचार, वास्ववचंद्रशृंगोन्नति, पिंडप्रभाकर, भाभ्रम रेखानिरूपण, धराभ्रम, ग्रहणकरण, गोलीयरेखागणित, रेखागणित के एकादश द्वादश अध्याय तथा गणकतरंगिणी। इन्होंने सूर्यसिद्धांत, ग्रहलाघव आदि ग्रंथों की टीकाएँ तथा बहुत से ग्रंथों का संपादन भी किया।
शंकर बालकृष्ण दीक्षित--जन्मकाल संo १७७५ है। इन्होंने विद्यार्थीबुद्धिवर्द्धिनी, सृष्टिचमत्कार, ज्योतिर्विलास, भूवर्णन तथा सेवेल के सहयोग से इंडियन कैलेंडर आदि ग्रंथ लिखे। इनकी कींर्ति का स्तंभ मराठी में लिखा भारतीय ज्योतिष है, जिसमें इन्होंने अनुसंधानात्मक तथा आलोचनात्मक ढंग से भारतीय ज्योतिष के विकास का इतिहास लिखा है।
संo ग्रंo -- सुधाकर द्विवेदी : भारतीय ज्योतिष। [मुरारिलाल शर्मा ]