जैमिनि जैमिनि वेदव्यास के शिष्य; महाभारत में लिखा है कि वेद का चार भागों में विस्तार करने के कारण वेदव्यास (विस्तार) नाम पड़ा। इन्होंने जैमिनि को सामवेद की शिक्षा दी तथा महाभारत भी पढ़ाया 'वेदानुध्यापयोमास महाभारतपञ्चनाम्। सुमंतु जैमिनि पैल शुकं चैव स्वमात्मजम्।।--महाo आदिo ६३१८९; महाधर--यजुर्वेदभाष्य, वाजसनेयि संहिता, आदि भाग'। इन्हीं व्यास ने ब्रह्मसूत्र की, उपनिषदों के आधार पर, रचना की। इसी को 'भिक्षुसूत्र' भी कहते हैं जिसका उल्लेख पाणिनि ने अष्टाध्यायी में किया है।
इन प्रसंगों से यह स्पष्ट हे कि जैमिनि वेदव्यास के समानकालिक ऋषि थे। वेदव्यास ने कौरवों और पांडवों को साक्षात् देखा था। (कुरूणां पाण्डवानांश्च भवान् प्रत्यक्षदर्शिवान्--महाo आदिo ६० १८) अतएव ये महाभारत के युद्ध-काल में रहे होंगे। विंटरनिट्ज के अनुसार महाभारत की रचना ईसा से पूर्व चौथी सदी में हुई होगी, किंतु भारतीय विद्वानों के अनुसार ३००० वर्ष ईसा से पूर्व ही महाभारत का समय हो सकता है। अतएव वेदव्यास का भी समय इसी के अनुसार निश्चय करना होगा।
पाणिनि ने अपनी अष्टध्यायी में जिस भिक्षुसूत्र का उल्लेख किया है उसके रचयिता भी यही वेदव्यास हैं जिन्हें बादरायण व्यास भी हम कहते हैं और इसीलिये यह बादरायण सूत्र भी कहलाता है। पाणिनि के काल के संबंध में अनेक मत होते हुए भी गोल्डस्टरक, वासुदेवशरण अग्रवाल आदि विद्वानों के अनुसार यह लगभग ६००० वर्ष ईसा से पूर्व रहे होंगे, ऐसा कहा जा सकता है।
सत्य्व्रात समाश्रमी का कहना है कि जैमिनि निरुक्तकार यास्क के पूर्ववर्ती हैं। यास्क पाणिनि के पूर्ववर्ती हैं। सामाश्रमी ने यास्क को ईसा से पूर्व १९वीं सदी में माना है। ब्रह्मसूत्र में वेदव्यास ने जैमिनि का ११ बार उल्लेख किया है (१।३।३८ : १।२।३१ : १।३।३१ : १।४।१८ : ३।२।४० : ३।४।२, १८,४०, ४।३।१२ : ४।४।५,११) आश्वलायन गृह्मसूत्र में भी जैमिनि का 'आचार्य' नाम से उल्लेख किया गया है (३।१८ (३) १।१।५ : ५।२।१९ : ६।१।८ : १०।८।४४ : ११।१।६४)। महाभारत का 'अश्वमेधपर्व' तो जैमिनि के ही नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार जैमिनि ने अपने पूर्वमीमांसासूत्र में पाँच बार बादरायण के मत का, उनका नाम लेकर, उल्लेख किया है।
इस प्रकार वेदव्यास के साथ जैमिनि का घनिष्ठ संबंध रखना प्रमाणित होता है। अतएव ये दोनों एक ही काल में रहे होंगे, ऐसा सिद्धांत मानने में दोष नहीं मालूम होता। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार जैमिनि ईसा से आठ शतक पूर्व ही रहे होंगे, किंतु भारतीय विद्वानों के अनुसार ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व जैमिनि का समय कहने में कोई विशेष आपत्ति नहीं मालूम होती।
जैमिनि के नाम से निम्नलिखित ग्रंथ प्रसिद्ध हैं :
इस सूत्रग्रंथ में सूत्रों में पुनरुक्तियाँ बहुत हैं, जैसे 'लिंगदर्शनाच्च' सूत्र ३० बार तथा 'तथा चान्यार्थदर्शनम्' २४ बार आए हैं। इसी प्रकार अन्य सूत्रों की भी पुनरुक्तियाँ हैं : इस ग्रंथ में निम्नलिखित आचार्यों के नाम हैं--बादरायण (५ बार), बादरि (५ बार), ऐतिशायन (३ बार); कार्ष्णाजिनि (२ बार), लावुकायन (१ बार), कामुकायन (२ बार), आत्रेय (३ बार), आलेखन (२ बार)। इसके अतिरिक्त जैमिनि ने स्वय पाँच बार अपना नाम भी मीमांसासूत्र में लिया है। इससे ये समझना कि दो जैमिनि हुए हैं, ठीक नहीं है। इस प्रकार अन्य ग्रंथों में भी उल्लेख मिलते हैं। यह प्राय: प्राचीन ग्रंथकारों की लेखशैली थी।
कुछ विद्वानों का कहना है कि पूर्व ओर उत्तरमीमांसा तथा संकर्षणकांड; ये सभी एक ही साथ लिखे गए। पूर्वमीमांसा १२ अध्यायों में तथा संकर्षणकांड ४ अध्यायों में जैंमिनि के नाम से तथा उत्तरमीमांसा (वेदांतसूत्र) ४ अध्यायों में बादरायण के नाम से प्रसिद्ध हुई। जब बादरायण तथा जैमिनि दोनों गुरु-शिष्य थे तब दोनों ने परस्पर मिलकर ही ये सभी लिखे हों तो कोई आश्चर्य नहीं।
मीमांसा सूत्र के प्रथम अध्याय का प्रथम पाद 'तर्कपाद' नाम से प्रसिद्ध है। इसमें मीमांसा के अनुसार दार्शनिक विचार हैं। धर्म की जिज्ञासा से ग्रंथ आरंभ होता है। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव तथा शब्द ये छ: प्रमाण इन्होंने माने हैं। प्रमाण में स्वत:प्रामाण्य ये मानते हैं। धर्म के लिये एकमात्र वेद प्रमाण है। वेद को अपौरुषेय जैमिनि मानते हैं। शब्द और अर्थ में नित्यसंबंध ये मानते हैं। शरीरादि से भिन्न एक पदार्थ 'आत्मा' इन्होंने स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त अपूर्व, स्वर्ग, मोक्ष भी जैमिनि ने माना है। ईश्वर को साक्षात् मानने की चर्चा इन्होंने नहीं की है। इन्हीं को लेकर अन्य दार्शनिक विचार भी हैं।
जैमिनि जनमेजय के सर्पयज्ञ में 'ब्रह्मा' बनाए गए थे (महाभारत, आदिपर्व ५३।६)। युधिष्ठिर की सभा में ये विद्यमान थे (महाभारत, सभापर्व, ४।११) और शरशय्या पर पड़े हुए भीष्मपितामह को देखने गए थे (महाभारत, शांतिपूर्व ४७।६)। पुराणों में लिखा है कि जैमिनि 'वज्रवारक' थे (शब्द कल्पद्रुम, पo ३४५ बंगला संस्करण)
जैमिनि--एक ज्यौतिषी जिन्होंने ज्यौतिष शास्त्र पर सूत्र रूप में एक ग्रंथ लिखा है। यह आयुर्विचार में विशेषज्ञ गिने जाते थे। हिंदू विश्वविद्यालय के भूतपूर्व ज्यौतिषशास्त्राध्यापक रामयत्न ओझा ने इस ग्रंथ का प्रकाशन किया था। 'जैमिनीय सूत्र' नाम से यह ग्रंथ प्रसिद्ध है।
संo ग्रंo -- महाभारत; बादरायण सूत्र (शांकरभाष्य भूमिका, मo मo पंo गोपीनाथ कविराज); शब्द कल्पद्रुम; एमo विंटरनित्स : हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर; बीo बरदचारी : 'ए हिस्ट्री ऑव दि संस्कृत लिटरेचर'।
[(म. म.) उमो मिश्र]