जिब्रान, खलील (१८८३-१९३१) आधुनिक अरबी साहित्य में जिब्रान खलील 'जिब्रान' के नाम से प्रसिद्ध हैं, किंतु अंग्रेजी में वह अपना नाम खलील ज्व्राािन लिखते थे और इसी नाम से वे अधिक प्रसिद्ध भी हुए। उनका जन्म १८८३ ई. में लेबनान के बशेरी नामक कस्बे में हुआ। १२ वर्ष की अवस्था में वे अपनी माता एवं भाई बहिनों के साथ संयुक्त राज्य अमरीका चले गए और जून, १८९५ ई. से बोस्टन नगर में निवास करने लगे। वहीं उन्होंने बालकों के एक पब्लिक स्कूल में २/वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की। तदुपरांत एक रात्रि के स्कूल में वर्ष भर पढ़ते रहे। फिर वह लेबनान में मदरस्तुल हिकमत नामक एक उच्च कोटि के विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के लिये चले गए। वहाँ शिक्षा प्राप्त करके वह सीरिया तथा लेबनान में ऐतिहासिक स्थानों की सैर करते हुए १९०२ ई. में लेबनान से वापस चले गए। वह अपने परिवारवालों से बड़ा प्रेम करते थे। इसी कारण १९०२ ई. में अपनी बहिन, १९०३ ई. में अपने भाई तथा तीन मास उपरांत ही अपनी माँ के र्स्वगवास से उन्हें बड़ा शोक हुआ। इन पारिवारिका दु:खों की अनुभूति तथा अपने मितभाषी स्वभाव के कारण वे अपने विचारों के जगत् में ही विचरण करते रहते थे१ चित्रकला से उन्हें बड़ी रुचि थी। जब बच्चे उन्हें बातों में लगाना चाहते, वे ऐसी अद्भुत बातें छेड़ देते कि वे यह समझने पर विवश हो जाते कि कोई बड़ा ही विचित्र बालक है। १९०८ ई. में उनहोंने पेरिस की फाइन आर्टस् एकेडमी में मूर्तिकला की शिक्षा प्राप्त की। पेरिस से लौटकर वे न्यूयार्क में निवास करने लगे किंतु वे हर वर्ष अपने परिवारवालों के पास कुछ समय व्यतीत करने के लिये बोस्टन जाया करते थे। वहीं वे शांतिपूर्वक चित्रकला में अपना समय व्यतीत करते।

उनके जीवन की कठिनाइयों की छाप उनकी कृतियों में भी वर्तमान है जिनमें उन्होंने प्राय: अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण का चित्रण किया है। आधुनिक अरबी साहित्य में उन्हें प्रेम का संदेशवाहक माना जाता है। अंग्रेजी में अनूदित उनकी कृतियाँ बड़ी प्रसिद्ध हो चुकी है।

सं.ग्रं. 'दि फोररर (१९२०); दि प्रॉफेट (१९२३); सैंड ऐंड फोम' (१९२७); जीसस दि सन ऑव मैन (१९२८); दि अर्थ गॉडस (१९३१), दि वांडरर (१९३२); 'प्रोज पोएम्स (१९३४); निफ्स ऑव दि वैली, (१९४८)। बार्बरा यंग : दि मैन फ्राम लेबनान। (सैयद अतहर अब्बास रिज़वी)