जिना, मुहम्मद अली जातीय नाम मुहम्मद अली, खानदानी नाम जिना। ये २५ दिसंबर, १८७६ को कराची में पैदा हुए। उच्च शिक्षा के लिये बंबई भेजे गए। १६ साल की उम्र में कानून की शिक्षा के लिये इंग्लैंड गए और बैरिस्टर होकर १८९६ में हिंदुस्तान लौटे। बंबई मे प्रैक्टिस की। सन् १९०६ में दादा भाई नौरोजी के प्राइवेट सेक्रेटरी होकर हर साल इंडियन नेशनल कांग्रेस के अधिवेशन में संमिलित होने लगे। १९१३ मे आप गोखले के साथ दूसरी बार इंग्लैंड गए, वहाँ पर इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की। लौटकर मुसलिम लीग में शामिल हुए लेकिन कांग्रेस के भी मेंबर रहे। तीसरी बार कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल के सदस्य होकर इंग्लैंड गए। यह बैठक बहुत मशहूर है। इसी में कांग्रेस ने जिना साहब से वह समझौता किया जो 'लखनऊ पैक्ट' के नाम से प्रसिद्ध है। १९१८ में आपकी शादी रति पेटिट के साथ हुई। १९२० में आप कांग्रेस से अलग हुए लेकिन कोशिश करते रहे कि हिंदू मुसलिम समझौता हो जाए। १९२८ में साइमन कमीशन का विरोध किया और चतुसूची योजना जिसपर मुसलिम लोग की आगे आनेवाली नीति निर्भर रही। १९३० में मुसलमानों के प्रतिनिधि होकर गोलमेज कफ्रोंस लंदन में सम्मिलित हुए। लंदन से १९३४ में लौटे। उस समय पाकिस्तान बनने तक मुसलिम लीग के सभापति रहे। १९३७ में जब पहेली बार कांग्रेस का मंत्रिमंडल बना तब जिना साहब की नीति और कठोर हो गई क्योंकि उनके ख्याल में कांग्रेस के मंत्रिमंडल मुसलमानों के साथ न्याय नहीं कर रहे थे। १९४० का मुसलिम लोग का जलसा बहुत अहम है क्योंकि उसमें जिना साहब ने, जो अब कायदे आजम कहलाते थे, पाकिस्तान का प्रस्ताव पास करवाया। १९४२ में कांग्रेस ने ''भारत छोड़ो'' का आंदोलन शुरू किया लेकिन मुसलिम लीग उसमें शामिल नहीं हुई। जुलाई, १९४३ को बंबई में एक खाकसार ने, जिसका नाम उफीक सनिर था, जिना साहब पर घातक हमला किया लेकिन सफल न हो सका। जुलाई, १९४६ को कलकत्ता मुसलिम इजलास में 'डाइरेक्ट ऐक्शन' का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। इस जलसे में संमिलित मुसलमानों ने सरकारी खिताब वापस किए। १९४६ के अंत में जिना साहब लंदन गए लेकिन सूबों की तकसीम पर कोई समझौता न हो सका।

२० फरवरी, १९४७ को हाउस ऑव कामन्स में हिंदुस्तान की स्वाधीनता घोषिता की गई। जिना साहब और गांधी जी ने शांति की एक संयुक्त अपील निकाली और फसादों को रोकने की कोशिश की। अगस्त, १९४७ में हिंदुस्तान का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना। इसके पश्चात् १९४९ मे जिना साहब का कराची में निधन हो गया।

आपे अपने अंतिम व्याख्यान में फरमाया था 'पाकिस्तान में हमें यह बताना है कि किस तरह सब लोग सामूहिक रूप से शहरियों की भलाई के लिये वगैर नस्ल और मिल्लत का फर्क किए जद्दो जहद कर सकते हैं।' (रजिया सज्जाद ज़हीर)