जॉली तुला ठोस तथा द्रवों के आपेक्षिक गुरुत्व ज्ञात करने के अनेक उपकरण हैं। ऐसे उपकरणों में एक जॉली तुला है। जॉली तुला का कार्य आर्किमीडीज के सिद्धांता तथा हुक के नियम पर आधारित है। आर्कमीडीज के सिद्धांत के अनुसार किसी तरल पदार्थ में डूबा हुआ पिंड विस्थापित तरल के भार के बराबर बल से उत्प्लावित होता है। हुक के नियमानुसार किसी प्रत्यास्थ पिंड में कुछ सीमाओं के भीतर विकृति (Strain) प्रतिबल (Stress) का समानुपाती है। दूसरे शब्दों में, विस्थापन विस्थापक बल का समानुपाती है।
जॉली तुला में एक लंबी, सुग्राही, कुंडलीदार कमानी होती है। यह एक सम अंशांकित माप (Uniformly graduated scale) के सामने एक छोर से लटकती रहती है। कमानी के निचले भाग में एक पलड़ा होता है। पलड़े के नीचे एक तार पिटक (Wire asket) होता है। किसी सुविधाजनक बिंदु पर सूचक (index) होता है। यह प्राय: पलड़े के ऊपर होता है। सूचक से माप के अंश पढ़े जाते हैं। माप ऐसे दर्पण की सतह पर अंशाकित होती है जिसमें विस्थापनाभास (parallax) न हो। एक चल मंच पर छोटा सा जलपात्र होता है। जलपात्र को माप के सहारे इच्छित ऊँचाई पर स्थिर कर सकते हैं। यह तार पिटक के नीचे कमानी से जुड़ा रहता है। कमानी का निलंबनबिंदु ऊर्ध्वाधर चलता है। इससे तुला की सीमित माप बढती और सूचक सुविधानुसार शून्य स्थिति में लाया जा सकता है।
आपेक्षिक गुरुत्व ज्ञात करने के लिये पहले तार पिटक को पानी में डुबाते हैं। यह निलंबन तार के एक निश्चित बिंदु तक पानी में डूबता है। कमानी का निलंबनबिंदु इस प्रकार होना चाहिए कि कमानी के प्रसार में किसी प्रकार की बाधा न पड़े। सूचक की स्थिति को लिख लिया जाता है। माना यह भा१ (W1) है। अब पलड़े पर उस वस्तु को रखते हैं जिसका आपेक्षिक गुरुत्व निकालना है। जलपात्रयुक्त चलनशील मंच को झुकाकर निलंबन तार को उसी निश्चित बिंदु तक पानी में डुबाते हैं। पुन: सूचक की स्थिति लिख लेते
चित्र. जॉली की तुला
हैं। माना यह भा२ (W2) है। भा२-भा१ (W1-W2) कमानी का प्रसार है। इसे हम हवा में वस्तु का भार मान सकते हैं। अब वस्तु को पलड़े से निकालकर जलमग्न तार फ्टिक में रखते हैं। चलनशील मंच की स्थिति में परिवर्तन करके पानी की सतह को निलंबन तार के निश्चित बिंदु तक लाते हैं। सूचक की स्थिति माना भा३ (W3) है। भा२-भा३ (W2-W3) वस्तु भार का पानी में ्ह्रास बताता है।
इस प्रकार हवा में जल के सापेक्ष, कमरे के ताप पर वस्तु का आपेक्षिक गुरुत्व प्राप्त होता है। द्रव का आपेक्षिक गुरुत्व ज्ञात करने के लिये यही प्रयोग दुहराया जाता है। एक ऐसे ठोस पदार्थ से ''पानी में भार का ्ह्रास'' तथा ''द्रव में भार का ्ह्रास'' ज्ञात करते हैं जो पानी द्रवों से किसी प्रकार प्रभावित या परिवर्तित नहीं होता।
(माधवाचार्य)