जार्ज, संत पाँचवी श. ई. से संत जार्ज की शहादत के विषय में बहुत सी दंतकथाएँ प्रचलित हैं जिनकी प्रामाणिकता अत्यंत संदिग्ध है। इतना ही निश्चित है कि वह लगभग ३०० ई. में फिलिस्तीन देश के लिद्दा नगर में शहीद हुए। वह शाही सेना के उच्च पदाधिकारी थे, उन्होंने सम्राट् डायोक्लीशन से मिलकर ईसाइयों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आपत्ति की। उनके ब्रिटेन आने का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। यूनानी पौराणिक कथाओं के अनुकरण पर उनके विषय में निम्नलिखित कहानी सर्वाधिक प्रचलित हो गई है : 'लिबिया (उत्तरी अफ्रीका)' के सिलेन नगर के पास एक झील में एक मकर (ड्रेगन) रहता था, जिस नगरनिवासी प्रति दिन दो भेड़े अर्पित करते थे। भेड़ें समाप्त होने पर मनुष्यों की बारी आई और इसके लिये प्रति दिन दो भेड़े अर्पित करते थे। भेड़ें समाप्त होने पर मनुष्यों की बारी आई और इसके लिये प्रति दिन चिट्ठी निकाली जाती थी। किसी दिन राजा की एकमात्र पुत्री के नाम चिट्ठी निकली किंतु उसी समय संत जार्ज वहॉ आ पहुँचे। उन्होंने मकर को घायल करके राजकुमारी को आदेश दिया कि वह उसके गले में अपना कमरबंद डालकर उसे शहर के अंदर ले आए। वहाँ संत जार्ज ने नागरिकों से ईसाई बनने की प्रतिज्ञा कराई और इसके बाद उन्होंने मकर को मार डाला। यह देखकर राजा ने अपनी समस्त प्रजा के साथ ईसाई दीक्षा ग्रहण की।
क्रूसेड के समय संत जार्ज की लोकप्रियता पश्चिम में और विशेष रूप से सैनिकों में बहुत ही बढ़ गई। वह १४ वीं शती ई. में इंग्लैंड के संरक्षक संत घोषित किए गए। उनका पर्व २३ अप्रैल को पड़ता है।(फादर कामिल बुल्के)