जार्ज द मांक यह बैजंटाइन इतिहासकार था जो माइकेल तृतीय के शासनकाल में (८४२ से ८६७) था। इसने उस समय विगत घटनाओं का एक नियमित वृत्तांत तैयार किया जबकि इतिहास लिखना मानवजगत् के लिये कोई विशेष आकर्षण की बात नहीं थी। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इसने पृथ्वी की रचना के प्रारंभ से लेकर सम्राट् नियोफिलस (८४२) के शासन तक का वृत्तांत देकर साहित्यजगत् में एक रोमांस पैदा किया। सारी घटनाओं को इसने चार अंकों में क्रमबद्ध किया और जहाँ तक इसकी प्रतिभा तथा अध्ययन पहुँच सकता था, इसने मानव सभ्यता के उन सभी पक्षों तथा अंगों का विवरण दिया जो मानव जगत् को नूतन दृष्टिकोण प्रदान करते थे। इसकी कृति मुख्यत: उन विभेदों, कलह और वैमनस्य को चरितार्थ करने में सफल हुई है जो सामाजिक विघटन के लिये विशेष रूप से उत्तरदायी है। वह मूर्तिपूजा का पोषक था और उसने अपनी कृति में प्रभावशाली शब्दों में उन तत्वों का घोर विरोध किया जो मूर्तिपूजा का खंडन चाहते थे। उसकी परिभाषा में मूर्तियाँ केवल धार्मिक भावना क ही प्रतिनिधित्व नहीं करती वरन् वे मानव के कलात्मक जीवन की अभिव्यक्ति भी हैं। जार्ज द मांक की रचना अपने समय का विश्वसनीय साहित्य है जिसके अध्ययन से नवीं शताब्दी के पूर्वार्ध की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था के विषय में कुछ आधिकारिक रूप से जाना जा सकता है। सभ्यता के उस युग में जबकि मानव में अब भी हिंसक बर्बरता पूर्ण रूप से विद्यमान थीं और जहाँ कला और लालित्य की ओर कोई भी विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था, लूटमार के कार्य ही मानव को व्यस्त किए हुए थे। ऐसे समय पृथ्वी की रचना से लेकर अपने समय तक की घटनाओं का क्रमबद्ध वृत्तांत देना जार्ज द मांक की ऐसी अमर देन है जिसके मूल्य की अवहेलना नहीं की जा सकती।