जार्ज प्रथम (हैलनीज) ¾ (१८४५-१९१३) यह हैलनीज का राजा था। यह डेनमार्क के शासक किंग क्रिश्चियन का द्वितीय पुत्र था। यूरोप में पूर्वीय समस्या के जटिल हो जाने पर एक राजनीतिक हलचल पैदा हुई और हैलनीज की ग्रीक जनता ने १८६२ ई. में अपने शासक ओटो को निष्कासित कर दिया। परिणामस्वरूप १८६३ ई. में जार्ज प्रथम हैलनीज का राजा नियुक्त किया गया। हैलनीज की गद्दी पर आरुढ़ हो जाने के उपरांत उसे डेनमार्क की गद्दी के उत्तराधिकार से त्याग-पत्र देना पड़ा। अब जार्ज ने इस बात की पूर्ण चेष्टा की कि वह ग्रीक जगत् में उठती हुई राष्ट्रीयता का नेतृत्व अपने हाथ में ले। अपने को यथेष्ट प्रभावशाली बना देने के लिये १८६७ ई. में इसने रूस की ग्रांड डचेज ओलगा से विवाह किया। हैलनीज की भौतिक स्मृद्धि बढ़ा देने के उद्देश्य मैक्यार्ज ने उन वैज्ञानिक साधनों एवं आविष्कारों का आश्रय लिया जो हैलनीज में औद्योगिक एवं कृषिव्यवस्था में विकास ला सकते थे। इसके अतिरिक्त उसने अनेक ऐसी सुधार-योजनाएँ लागू की जो ग्रीस के सांस्कृतिक तथा सामाजिक जीवन का प्रभावित कर रही थीं। १९ वीं शताब्दी के अंत तक पूर्वीय समस्या और भी जटिल हो गई थी और तुर्की में एक नया उग्र राजनीतिक दल 'यंग टर्क' के नाम से उठ रहा था जिससे ग्रीक राष्ट्रीयता को महान् खतरा पैदा हो गया था। अतएव जार्ज प्रथम ने इस बात की आवश्यकता महसूस की कि बालकन राष्ट्रों को एकता के सूत्र में बाँकर इस तुर्की ज्वार का सामूहिक रूप से सामना किया जाए अत: १९१२ ई. में इसने बालकन लीग की रचना में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और अपने सतत प्रयत्न से इस संगठन को स्थायित्व देने की चेष्टा की। दुर्भाग्यवश सैलेनिका में एक षड्यंत्र करके इसका वध कर दिया गया और इसके स्थान पर इसके पुत्र कांस्टैंटाइन को राजगद्दी ग्रहण करनी पड़ी।

जार्ज प्रथम प्रतिभाशाली, दूरदर्शी एवं निपुण शासक था। प्रजा के प्रति उसकी वास्तविक सहानुभूति थी। यही कारण था कि यद्यपि वह ग्रीक जनता के लिये विदेशी था, फिर भी अपने उदार शासन और मृदु व्यवहार से वह उनका प्रेमपात्र बन गया था। ग्रीक राष्ट्रीयता को इसने एक नूतन दिशा बताई थी और बालकन लीग की रचना में इसके प्रयत्न चरितार्थ हुए थे। यदि उसका वध न कर दिया गया होता तो यह निश्चय था कि प्रथम विश्वव्यापी युद्ध में ग्रीक जगत् को संभवत: वह अशांति न झेलनी पड़ती जिसने सभी वर्गो को उद्भ्रांत कर दिया था।

जार्ज द्वितीय ¾ जार्ज प्रथम का एकमात्र पुत्र। जार्ज आगस्टस (१६८३-१७६०) ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड का राजा था। १७०८ का क्वार्डरंडे का संघर्ष इसके जीवन की महत्वपूर्ण घटना है। इसका मित्रसमुदाय तथा व्यसन दोनों ही पिता के लिये आपत्तिजनक थे। पूरे समय तक बाप-बेटे का मनोमालिन्य राजनीतिक विवादों का विषय बना रहा। १७२७ में वह अपने पिता के मरने पर इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठा। इसकी रानी कैरोलाइन ने इंग्लैंड की राजनीति में पर्याप्त प्रभाव पैदा कर लिया था और वालपोल के १७४६ ई. तक शासन में बने रहने का यह प्रमुख कारण था। अपने पिता की ही भाँति इसने भी इंग्लैंड के साधनों का उपयोग हनोवर के स्वार्थो के रक्षण तथा वर्धन में लगाया। इसने आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध में मेरिया थेरेसा की नीति का समर्थन किया। १७४७ के डिटिंगन की विजय के अवसर पर वैयक्तिक रूप से स्वयं सैन्यसंचालन कर इंग्लैंड की जनता के संमुख एक गौरवपूर्ण प्रमाण रखने की चेष्टा की। शासक की स्थिति से इसने इंग्लैंड की वैधानिक मान्यताओं तथा मूल्यों का पूर्ण रूप से सम्मान किया जिसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड की मंत्रिमंडलप्रणाली को और प्रश्रय मिला। प्रशासकीय मामालों में इसका हस्तक्षेप नगण्य था। इसकी मृत्यु सप्तवर्षीय युद्ध के मध्य हुई।

जार्ज द्वितीय (हैलनीज) (१८९०-१९४७) जार्ज द्वितीय हैलनीज का राजा था। यह राजा कांस्टैंनटाइन का ज्येष्ठ पुत्र था। इसकी सहानुभूति जर्मनी के साथ थी। अत: पिता ही नहीं वरन् सारे मित्रराष्ट्रों के समर्थन से यह वंचित था। किंतु प्रथम विश्वव्यापी युद्ध के उपरांत कुछ राजनीतिक घटनाचक्र ऐसा रहा कि कांस्टैंटाइन शासन से अपदस्थ कर दिया गया और यह शासन पर आरूढ़ हुआ। जनता फिर भी विगत स्मृतियों से दुखी थी, अत: आंतरिक विद्रोह होते रहे। कुछ समय उपरांत इसपर यह संदेह किया गया कि इसने देश के विधान को समाप्त कर देने का कुचक किया था। कुछ ऐसे प्रमाण भी मिले जिन्होंने दृढ़ता के साथ सिद्ध किया कि इसने निरंकुश व्यवस्था हैलनीज को देनी चाही थी, अतएव क्षुब्ध जनता और संसद ने इसका निष्कासन किया। ग्रीस में मार्च, १९२४ ई. को एक गणतंत्रीय विधान दिया गया। गणतंत्रीय विधान घोषित हो जाने पर जार्ज द्वितीय ने अपना अधिकार पुन: प्राप्त करने के लिये जनता के स्वार्थो की दुहाई दी और फिर धीरे धीरे वह ग्रीक जनता का प्रेमभाजन बनने लगा। यह क्रम १९३५ तक चलता रहा जब एक साधारण जनमत से इसे फिर अपनी राजगद्दी पाप्त हुई और यह दूसरी बार ग्रीस का राजा बना। शीघ्र ही रायलिस्ट दल के नेता मैटक्साज (Mataxas) ने विधान को समाप्त कर अधिनायकवादी व्यवस्था जारी की। जब १९४१ ई. में मुसोलिनी ने फ्रांस पर आक्रमण किया तो ग्रीस ने मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध की घोषणा क। किंतु धुरी शक्तियों ने ग्रीस को परास्त और नतमस्तक कर दिया था। जार्ज को विदेशों में शरण ढूँढ़नी पड़ी। युद्ध समाप्त होने पर मित्रराष्ट्रों की सहायता से रायलिस्ट दल फिर सत्तारूढ़ हुआ तथा एक साधारण जनमत से जार्ज ने पुन: शक्ति ग्रहण की और वह तीसरी बार ग्रीस का राजा हुआ।

उपर्युक्त घटनाचक्रों से यह स्पष्ट है कि जार्ज द्वितीय असाधारण परिस्थिति में ग्रीस का राजा बना और जीवन भर असाधारण परिस्थितियों से संघर्ष करता रहा। उसमें उत्साह और अध्यवसाय की प्रचुरता थी। घोर संकटों के बीच धैर्य और बुद्धिमानी से काम लेते हुए उसने बार बार अपनी खाई शक्ति प्राप्त की, और वह भी राष्ट्र से जो सदैव हलचल और बवंडर से ही गुजरता रहा। शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई।

जार्ज तृतीय ¾ जार्ज फ्रेड्रिक विलियम (१७३८-१८२०) ग्रेट ब्रिटेन तथा आयरलैंड का राजा था। यह युवराज फ्रेड्रिक का पुत्र जार्ज द्वितीय का प्रपौत्र था। इसका लालन-पालन इंग्लैंड के वातावरण में ही हुआ था अत: यह अपने पूर्वशासकों की अपेक्षा वहाँ की व्यवस्था को हृदयंगम कर चुका था। उसकी शिक्षा प्रमुखता। अपनी माता और अर्ल ऑव व्यूट के तत्वावधान में हुई थी। इसने बोलिंगगब्रूक की पुस्तक 'पेट्रियट किंग' को ही अपनी बाइबिल बनाया और जब १७६० ई. में यह राजपद पर आसीन हुआ तो इसने राजा की प्रतिष्ठा स्थापित करने का प्रयत्न किया किंतु इसके राजतिलक तक इंग्लैंड की राजनीतिक परिस्थिति में व्यापक परिवर्तन हो चला था। राजा के स्थान पर मंत्रिमंडल सत्तारूढ़ था और वालपोल के दीर्घकालिक मंत्रित्व में मंत्रिमंडलीय प्रणाली पर्याप्त मात्रा में स्थापित हो चुकी थी। शासन का भार लेते ही उसने राजप्रभुतावाली अपनी आकाक्षां स्पष्ट कर दी। इसी निश्चय के अनुसार उसने अपने मंत्रियों क चुनाव अपने मन के अनुकूल कौशल से करना चाहा। इस अर्थ उसने अपना एक राजनीतिक दल बनाना आरंम्भ किया जिसे किंग्स फ्रेड्स की संज्ञा दी गई और शासन के प्रत्येक उच्च पद पर राजा के मित्र नियुक्त किए जाने लगे। पार्लिमेंट के चुनाव में भी राजा के मित्र उम्मेदवार घोषित किए गए। लगा कि इंग्लैंड से राजनीतिक स्वाधीनता शीघ्र ही लुप्त हो जाएगी।

कुछ समय बाद जार्ज तृतीय अर्ल ऑव व्यूट को अपना प्रथम प्रधान मंत्री नियुक्त कर राजा के विशेषाधिकारी की पुनरावृत्ति उग्र रूप से करने लगा परंतु इसी समय अमेरिका में एक आंदोलन चल पड़ा ¾ वहाँ की जनता इंग्लैंड द्वारा लगाए असहनीय करों पर अपना रोष प्रकट करने लगी। आंदोलन ने अमरीकी स्वातंत्र्य-संग्राम का रूप धारण किया और उस उपनिवेश ने स्पष्ट घोषित कर दिया कि जब तक उसका ब्रिटिश पार्लिमेंट में प्रतिनिधित्व न हो, उस पार्लिमेंट को उसपर कर लगाने का अधिकार नहीं। उत्तर में जार्ज तृतीय ने उग्र दमन और कठोरता का व्यवहार किया और यह बात स्पष्ट कर दी कि उपनिवेश की जनता केवल प्रार्थना कर सकती है, शासन का दावा नहीं। अमरीकी स्वातंत्र्य-संग्राम ने उग्र रूप धारण किया जिसमें जार्ज के अविनीत आचरण ने अग्नि में ईधंन का काम किया। इस युद्ध के दो परिणाम हुए। एक तो यह कि जो अंग्रेज राजनीतिज्ञ राजा की निरंकुश नीति का अवसान देखना चाहते थे वे सुखी हुए। दूसरे यूरोप की वे शक्तियाँ जो औपनिवेशिक संघर्ष में ब्रिटेन से पराजित हो चुकी थीं, विशेष प्रसन्न हुई। फ्रांस इस युद्ध के द्वारा अपने प्रतिकार की भावना को फलवती देखना चाहता था। वह इससे संतुष्ट हुआ। बाह्य और आंतरिक दोनों ओर से पर्याप्त बाधाएँ प्रस्तुत हुईं और जब यूरोप की बड़ी शक्तियों ने अमरीका के साथ सक्रिय सहयोग किया तब वार्साई की संधि के द्वारा अमरीकी स्वाधीनता की घोषणा को मान्यता प्रदान कर दी गई।,

इस युद्ध ने जार्ज तृतीय के मनोरथों को एक महान् आघात दिया और उसकी निरंकुश व्यवस्था शिथिल पड़ने लगी। पूरी असफलता का उत्तरदायित्व जार्ज तृतीय के बंधों पर डाला गया, अब वह इस स्थिति में नहीं था कि ब्रिटिश जनता के समाने अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रख सके। नया वातावरण राजनीति में प्रतिबिंविति होने लगा और जार्ज तृतीय का दूसरा प्रधान मंत्री राकिंघम १७८३ में मर गया तो उसके उत्तरधिकारी लार्ड शैलबर्न में इतनी क्षमता नहीं थी कि वह अपने प्रतिद्वंद्वी राजनीतिज्ञों के आघातों का सामना सफलतापूर्वक कर सके और शीघ्र ही फॉक्स और नार्थ के मिले जुले मंत्रिमंडल ने शासनसूत्र सँभाला। किंतु यह राजनीतिक मसलहत भी अधिक समय तक कारगर न हो पाई। इंडिया बिल के प्रश्न पर इस मंत्रिमंडल में घोर विभाजन पैदा हो गया और देश के राजनीति वातावरण को ध्यान में रखते हुए जार्ज तृतीय को इस मंत्रिमंडल का विघटन करना पड़ा। इस समय इंग्लैंड के राजनीतिक अंतिरिक्ष में एक नया नक्षत्र विलियम पिट के व्यक्तित्व में आ गया था जिसने पार्लिमेंट में प्रवेश करते ही राष्ट्र को अपने प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का संकेत दे दिया था। जार्ज तृतीय ने अपनी इस नैराशयपूर्ण और अस्तव्यस्त स्थिति में विलियम पिट को मंत्रिमंडल बनाने के लिये आमंत्रित किया।

१७८८ ई. में जार्ज तृतीय की मानसिक स्थिति विक्षिप्त हो गई और अब उसमें हठ और चिड़चिड़ापन आ गया था तथा १७८९ में फ्रांस में राज्यक्रांति छिड़ जाने से जार्ज तृतीय के राजनीतिक विचारों को और भी आघात पहुँचा। क्योंकि राज्यक्रांति समता, बंधुत्व और राष्ट्रीयता के सिद्धांत को लेकर चली थी, क्रांति का इंग्लैंड में महान् स्वागत हुआ। इसका कारण यह भी था कि इंग्लैंड की जनता जार्ज तृतीय की निरंकुश व्यवस्था से रुष्ट थी। कुछ ही समय उपरांत १८०१ ई. में 'ऐक्ट ऑव यूनियन' के पास हो जाने से जार्ज तृतीय को और भी पीड़ा पहुँची क्योंकि वह कैथोलिकों को त्राण देने के विरुद्ध था। और पिट का त्यागपत्र इस वातावरण में स्वाभाविक ही हो गया था। पिट के स्थान पर एंडिंगटन प्रधान मंत्री हुआ। ऐडिंगटन के ही तत्वावधान में एमींस की संधि हुई जिसकी निंदा सारे ब्रिटेन में हुई और ब्रिटिश जनता को अनुभूति हुई कि नैपोलियन के ज्वार को रोकने में पिट ही समर्थ हो सकेगा। अतएव जब १८०४ में इंग्लैंड और फ्रांस क युद्ध फिर छिड़ा तो पिट पुन: मंत्रिमंडल बनाने के लिये बाध्य किया गया। यह समय इंग्लैंड के लिये अत्याधिक दारुण था। नैपोलियन के युद्धों ने जो अशांति पैदा कर दी थी उसमें पिट का व्यक्तितव इतनी शीघ्रता से ख्याति प्राप्त कर रहा था कि जार्ज तृतीय की ओर रंचमात्र भी ध्यान देने का अवकाश ब्रिटिश जनता को न था। हाँ, कैथोलिकों को त्राण देने की योजना का उसने सक्रिय विरोध किया जिसके फलस्वरूप कैथोलिकों को १८१९ तक प्रतीक्षा करनी पड़ी।

इस अवधि में जार्ज तृतीय की मानसिक अवस्थता एवं चिड़चिड़ापन बढ़ता ही गया और उसका वैयक्तिक शासन १८११ तक समाप्त हो गया। यद्यपि वह नौ वर्ष तक और जीवित रहा, तथापि इस अवधि में वह मानसिक रूप से अस्वस्थ ही नहीं था, वरन् अंधा भी हो चला था। राजनीतिक जीवन अधिक बोझिल हो जाने के कारण जार्ज तृतीय अपने गार्हस्थ जीवन में कुछ अधिक दिलचस्पी न ले सका था। उसने १७६१ ई. में शार्ललोट सोफिया से विवाह किया, जिससे नौ पुत्र और छह पुत्रियाँ हुई थीं। उसकी संतान को यथेष्ट वात्सल्य प्राप्त न होने के कारण एक नियमित ओर यथोचित विकास से रहित होना पड़ा। उसका ज्येष्ठ पुत्र जार्ज रीजेंट नियुक्त किया गया जो उसकी मृत्यु (१८२०) तक उस पद का कार्यभार सँभाला रहा।

जार्ज तृतीय स्वभाव से उग्र, अहंमन्यता के भावों से आप्लावित, उस शासनसूत्र की कल्पना करता था जहाँ मंत्रिमंडल, पार्लिमेंट और न्यायव्यवस्था सभी उसके संकेत पर संचलित होती थी। यह उसके व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि उसने अपनी आकांक्षाओं को कार्यरूप में परिणत करना चाहा। यह दूसरी बात थी कि अमरीकी स्वातंत्र्य-संग्राम तथा फ्रांस की राज्यक्रांति ऐसी व्यापक घटनाएँ उसके शासन के लगभग अंतिम चरण में घटित हुई, जिनका प्रभाव इतना विश्वव्यापी हो गया था कि प्रत्येक इंग्लिश व्यक्ति को अपनी पूरी क्षमता और शौर्य के साथ देश की रक्षा में उतरना पड़ा, अन्यथा जार्ज तृतीय की नीतियाँ निरंकुश व्यवस्था लाने में क्रियाशील हो गई थीं और कुछ समय के के लिये तो राजा के विशेषाधिकारों की पुनरावृत्ति ही हो गई थी। यदि वह थोड़ी भी दूरदर्शिता को अपनाता और मंत्रिमंडल को समाप्त करने के स्थान पर उसे प्रगति देता तो इंग्लैंड के वैधानिक शासन के इतिहास में उसका नाम विक्टोरिया और जार्ज पंचम के पूर्व निश्चय ही गौरवान्वित ढंग से लिया जाता। किंतु बाल्यकाल की शिक्षा दीक्षा और संस्कार उसे मस्तिष्क पर इतनी अमिट छाप छोड़ चुके थे कि उसे विशेष दिशा में कदम बढ़ाना था जहाँ आधी ही मंजिल पार करने पर उसकी टाँग टूट गई।

सं.ग्रं. ¾ अई. डी. जी. डेविस : लाइफ ऑव जार्ज थर्ड; वी. विल्सन : 'जार्ज थर्ड ऐज मैन, मोनर्क ऐंड स्टेट्समैन')

जार्ज चतुर्थ (जार्ज आगस्टस फ्रेडरिक) हृ (१७६२-१८३०) ग्रेट ब्रिटेन तथा आयरलैंड का राजा था। यह जार्ज तृतीय का ज्येष्ठ पुत्र था। यह प्रतिभासंपन्न था और रूपलावणय के लिये प्रसिद्ध था। इसका जीवन अमितव्ययता का प्रतीक था। व्यसनों में इसकी रुचि थी और यह साथियों के संपर्क में निरंतर रहता था। इसके व्यसनी जीवन ने राज्य के ऋणभार में वृद्धि कर दी। व्यसनों में अनुरक्त होने के कारण पिता से इसके संबंध कटु होते हुए गए और १७८३ ई. में इसे कार्टन हाउस में अलग मैक्स दे दिया गया। नए निवासस्थल में उसका जीवन और भी नियंत्रित हो गया था और १७५८ ई में उसने गुप्त रीति से मेरिया सफ्रजरबर्ट नाम की एक कैथोलिक विधवा से विवाह किया जो अपने सौंदर्य के लिये विख्यात थी। किंतु ऐक्ट ऑव सटिलमेंट के पास होने तक वह इस विधवा को स्पष्ट रूप से अपनी धर्मपत्नी घोषित न कर सका, यद्यपि सारे साम्राज्य में इस संबंध की चर्चा थी और विवाह के गुप्त रखने के कारण राजतंत्र पर अनेक प्रकार की छींटाकशी होती रही। उसका वैवाहिक जीवन अब भी नवीनता की खोज में था और १७८५ ई. में उसने एक जर्मन प्रोटेस्टेंट राजकुमारी कैरोलाइन ऑव ब्रिन्सविक से विवाह कर अपने रागात्मक जीवन का नया अध्याय प्रारंभ किया। इस विवाह से उसके एक पुत्री उत्पन्न हुई जिसका नाम शार्लोलेट था।

१८११ ई. में जार्ज तृतीय की मानसिक अस्वस्थता बढ़ जाने पर यह रीजेंट (प्रतिसंरक्षक) नियुक्त किया गया। इस पद पर वह जार्ज तृतीय की मृत्यु तक कार्यभार सँभालता रहा। इसी कारण वह इंग्लैंड में प्रिंस रीजेंट कहलाया। रीजेंट हो जाने पर उसके जीवन की अनुशासनहीनता और उच्छृंखलता उत्तरोत्तर बढ़ती ही गई। साधनों के आधिक्य और सुविधाओं के प्राचुर्य ने उसकी वासना और व्यसन की प्रवृत्तियों को और भी प्रश्रय दिया और उसके वैयक्तिक जीवन की विडंबनाएँ एक सार्वजनिक अपवाद का कारण बनीं। इंग्लैंड की जनता उस अवसर की प्रतीक्षा करने लगी जब वह इस विलासी शासक से छुटकारा प्राप्त करती। १८२७ ई. में पिता की मृत्यु पर उसका राज्यतिलक हुआ। किंतु वह अपनी पत्नी रानी केरोलाइन से पहिले ही संघर्ष कर चुका था और अब उसके विरोधियों ने इस बात की चेष्टा की कि राजतिलक के अवसर पर कैरोलाइन भी गद्दी पद उसके साथ ही बैठे। इस योजना ने एक बीभत्स रूप ग्रहण किया और राजा के विरोध के कारण परित्यक्ता रानी केवल उपहास का कारण बनी। उसके परित्याग के प्रश्न को लेकर पार्लिमेंट में विषाक्त वातावरण पैदा हो गया। समाचारपत्रों तथा अन्य सार्वजनिक साधनों के द्वारा इस कृत्य की निंदा की गई। राजा के विरोधियों ने कैरोलाइन के प्रश्न को लेकर अपने राजनीतिक उद्देश्य को सिद्ध करना चाहा। तलाक का बिल अंतत: हाउस ऑव लार्ड से केवल नौ के बहुमत से पास हुआ। लार्ड ब्रोहम ने, जो राजा का घोर शत्रु था, इस बिल पर इतने कुशल वक्तृत्व का प्रदर्शन किया कि सारा जनमत इस बिल पर आकृष्ट हो गया। मंत्रिमंडल इस बात के लिये विवश हो गया कि कैरोलाइन के विरुद्ध लगाए गए आरोपों का समाप्त कर दिया जाए। इस घटना ने सारे इंग्लैंड में प्रसन्नता की लहर दौड़ा दी। राजा अपने तलाक के उद्देश्य में असफल रहा। किंतु शीघ्र ही कैरोलाइन की अकस्मात् मृत्यु हो जाने के कारण इस अध्याय की समाप्ति हुई। यद्यपि मृत्यु पर जार्ज चतुर्थ को घोर संवेदनशील देखा गया, जनता ने राजा और सरकार के तलाक संबंधी कार्य की इतनी निंदा की कि सरकार का परिवर्तन अवश्यभावी हो गया।

अपने शासन के दस वर्षो में उसने कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया। पूरे शासनकाल में यह जनता की दृष्टि में अप्रिय ही बना रहा। जार्ज चतुर्थ जहाँ राजनीतिक और वैयक्तिक जीवन की दृष्टि से अपने को घृणास्पद बना चुका था वहाँ वह कला और साहित्य की ओर बढ़ रही थी। उसके अमितव्ययी होने में उसकी कलात्मक प्रवृत्तियों का उत्तरदायित्व कम नहीं था। राजनीति की विषमताओं के मध्य उसकी कोर्ट मे बड़े बड़े साहित्यकार एवं कलाकार सतत रूप से संरक्षण प्राप्त करते रहे। वह स्वयं भी नृत्य, संगीत, घुड़सवारी और काव्यगत की और पर्याप्त प्रगति कर चुका था। उसकी एकमात्र संतान शार्लोट की मृत्यु १८१७ ई में हो चुकी थी। यह ऐसी घटना थी जिसने उसके जीवन में कुछ नैराशय पैदा कर दिया था और कुछ इतिहासकारों का ऐसा मत है कि पुत्री की स्मृति की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिये ही उसने नशे की मात्रा बढ़ा दी थी। उसका गार्हस्थ जीवन सदेव अशांत रहा। संभवत: उसकी राजनीतिक उदासीनता का यह भी एक कारण था।

सं. ग्रं. हृ आर. हुर्श्च :'मैम्वार्स ऑव जार्ज फोर्थ'; आर. फलफर्ड : 'लाइफ ऑव जार्ज फोर्थ।'

जार्ज पंचम (जार्ज फ्रेडिरिक अर्नेस्ट अलबर्ट) - (१८६५-१९३६) ग्रेट ब्रिटेन और ब्रिटेन के दूरस्थ डोमिनियनों के राजा तथा भारत के सम्राट् थे। ये महारानी विक्टोरिया के पौत्र तथा एडवर्ड सप्तम के द्वितीय पुत्र थे। १८७७ ई. में ये अपने भाई ड्यूक ऑव क्लैरेन्स के साथ जलसेना में भर्ती हुए। इनकी महत्वाकांक्षा जलसेना में विशिष्ट स्थान प्राप्त करने की थी और शीघ्र ही इन्हें सब-लेफ्टिनेंट का पद प्राप्त हुआ। १८८५ ई में ये लेफ्टिनेंट बने। अपनी सैनिक क्षमताओं के कारण ये उत्तरोत्तर उन्नति करते रहे और १८९० ई. में इन्हें एच.एम.एस. ्थ्रास्ट का कमांड दिया गया जिसमें इनकी ख्याति और भी बढ़ी। १८९२ ई. में युवराज पद पर आरूढ़ हो जाने के कारण इन्हें अपनी जलसेना के कमीशन का परित्याग करना पड़ा क्योंकि ड्यूक आफव क्लेरेंस की मृत्यु ने यह स्पष्ट कर दिया कि निकट भविष्य में उन्हें शासनभार ग्रहण करना होगा। इसी वर्ष ये ड्युक ऑव यार्क कहलाए। १८९३ ई. में इन्होंने राजकुमारी विक्टोरिया मेरी आगस्टा से विवाह किया। १९०१ ई. में इन्होंने प्रथम संघीय संसद का उद्घाटन करने के लिये अपनी आस्ट्रेलिया की यात्रा प्रारंभ की। आस्ट्रेलिया से लौटने पर इन्हें प्रिंस ऑव वेल्स की उपाधि से विभूषित किया गया।

१९१० ई. में इनका राज्यतिलक हुआ। १९११ ई. में ये भारत पधारे। इस समय यूरोप प्रथम विश्वव्यापी युद्ध की ओर जा रहा था। अतएव इन्हें कभी कभी पश्चिमी मोर्चो की यात्रा भी करनी पड़ी। युद्धकालीन परिस्थिति का समुचित सामना करने के लिये इन्होंने ब्रिटिश सरकार को जागरूक और चैतन्य रखने की भरसक चेष्टा की। १९१७ ई. में इन्होंने यह घोषणा की कि राजभवन भविष्य से हाउस ऑव विड्सर के नाम से संबोधित किया जायगा। इन्होंने क्रम से बेलजियम और रोम की यात्रा १९२२ और २३ में की। सम्राट् की इन यात्राओं ने बेलजियम और रोम में पर्याप्त सद्भावना तथा मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना में सहायता पहुँचाई। १९२८ ई. में ये घोर अस्वस्थता के शिकार बने किंतु धीरे धीरे स्वास्थ्यलाभ करते गए। प्रथम विश्वव्यापी युद्ध के उपरांत इंग्लैंड ने जो आशातीत प्रगति की, उसके परिणामस्वरूप १९३५ के मई महीने में इनकी रजत जयंती का समारोह आयोजित किया गया। २० जनवरी, १९३६ ई. के सैड्रिंघम में इनका देहांत हुआ। इनका आदरणीय व्यक्तित्व, जीवन की सरलता तथा जनता के प्रति अपार स्नेह इत्यादि ऐसे गुण थे जिन्होंने इन्हें अद्वितीय सर्वप्रियता जार्ज षष्ठ, एमरी जार्ज हुए ड्यूक ऑव केंट तथा जान। इनको एक पुत्री थी जिसका नाम मेरी था।

सं. ग्रं. हृ ब्रैट, ए. : लाइफ ऑव जार्ज फिफ्थ, १९३६; गोरे, जी. : किंग जार्ज फिफ्थ, १९४७।

जार्ज पंचम (हनोवर)हृ (१८१९-१८७८) यह १८५१ से १८६६ ई. तक हनोवर का राजा था। हनोवर के राजा अर्नेस्ट आगस्टस का एकमात्र पुत्र तथा इंग्लैंड के जार्ज तृतीय का पौत्र था। १८३३ ई. में, अपनी किशारेरावस्था में ही वह अंधा हो गया किंतु भाग्य ने उसका साथ दिया और १८९१ ई. में अपने पिता की मृत्यु पर वह हनोवर के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसकी राजनीतिक विचारधारा घोर संकीर्णता को लेकर चली थी और राष्ट्रीयता के उस युग में जबकि विस्मार्क जर्मनी के सभी राज्यों को प्रशा के तत्वावधान में एकता सूत्र में बाँधना चाहता था, जार्ज पंचम ने हनोवर के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने की चेष्टा की। अपने आंतरिक शासन में भी वह उन सभी प्रभावों को दबाने की चेष्टा करता रहा जो फ्रांस की राज्यक्रांति की देन थे। उसने प्रेस पर कठोर नियंत्रण लगाया जिससे क्रांतिकारी विचार हनोवर में प्रसार न पा सकें। उसके सभी प्रयत्नों के उपरांत भी हनोवर अपनी सत्ता की रक्षा न कर सका और १८६६ ई. में प्रशा के चांसलर विस्मार्क ने इसका विलयन कर प्रशा में मिला दिया। किंतु जार्ज शांत ने बैठ सका और राजगद्दी को पुन: प्राप्त करने के लिये इसने अनेक असफल प्रयत्न किए। बिस्मार्क की कठोर नीति और दूरदर्शिता के सम्मुख इसकी सारी चेष्टाएँ व्यर्थं हुईं। अपने अधिकार पद की चेष्टा में इसने यूरोप की कुछ राजधानियों की यात्रा की और प्रशा के विरुद्ध यूरोपीय राष्ट्रों का एक गुट बनाना चाहा। जब यह पेरिस की यात्रा कर रहा था तो इसकी मृत्यु हो गई तथा विंडसर के सेंट जार्ज के गिरिजाघर में इसे दफना दिया गया।

जार्ज पंचम की गणना उन शासकों में की जाती है जो संकीर्ण विचारों के होते हुए भी कठोर नियंत्रण में विश्वास रखते थे। यह इसका दुर्भाग्य था कि अल्पावस्था में ही यह अंधा हो गया। किंतु इसके प्रयत्नों और कूटनीतियों को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि वह नेत्रविहीन न होता तो संभवत: जर्मनी की राजनीति का एक दूसरा पक्ष इतिहास में आता जिसका प्रमुख पृष्ठ जार्ज और विस्मार्क का द्वंद्व होता।

जार्जं षष्ठ (ग्रेट ब्रिटेन) हृ अलबर्ट फ्रेडरिक आर्थर जार्ज (१८९५-१९५२) ग्रेट ब्रिटेन तथा ब्रिटेन के दूरस्थ डोमीनियनों के राजा और भारत के सम्राट् थे। १५ अगस्त, १९४७ ई. को भारत स्वाधीन हो गया तो इनकी उपाधियों में से भारतसम्राट की उपाधि हटा दी गई। ये जार्ज पंचम के द्वितीय पुत्र थे। इनकी शिक्षा रायल नेवल कालेज (आसबर्न) और कैंब्रिज में हुई थी। १९२० ई. में इन्हें ड्यूक ऑव यार्क की उपाधि से विभूषित किया गया। १९२३ ई. में इनका विवाह अर्ल ऑव स्ट्रेथमूर की कन्या ऐलिजबेथ से हुआ था। इनहोंने पूर्वी अफ्रीका, वेस्ट इंडीज, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड की यात्रा की थी। १९३६ ई. में इनके बड़े भाई एडवर्ड अष्टम ने जब राज्य का त्याग कर दिया तो ये इंग्लैंड के राजसिंहासन पर आरूढ़ हु। अपनी जनतांत्रिक अपील के कारण ये जनता में अत्याधिक प्रिय हुए तथा अपनी उच्च कर्तव्यपरायणता से इन्होंने क्राउन की प्रतिष्ठा बढ़ाई। ये पहले ब्रिटिश सम्राट् थे। जिन्होंने १९३९ में अमेरिका की यात्रा की। द्वितीय विश्वव्यापी युद्ध में इन्होंने सभी ब्रिटिश मोर्चो की यात्रा की थी हृ फ्रांस १९३९, माल्टा १९४३ तथा नार्वे १९४४। १९४९ ई. में इनके पैर का आपरेशन हुआ था और १९५३ ई. में सैंड्रिघम में इनकी मृत्यु हुई। इनके दो लड़कियाँ थीं, पहली राजकुमारी एलिजाबेथ जिसे ऐडिनबर्ग की डचेज की उपाधि मिली थी तथा जिसने इनकी मृत्यु पर शासनभार ग्रहण किया था; दूसरी का नाम राजकुमारी मारगरेट है।

जार्ज षष्ठ का शासनकाल द्वितीय विश्वव्यापी युद्ध की घटनाओं तब उसके उपरांत ब्रिटिश साम्राज्य के विघटन से भरा है। इस अशांतिकारक एवं विषम परिस्थिति में जिस तत्परता एवं सावधानी से इन्होंने ब्रिटिश के राज्यतंत्र को चलाया और मंत्रिमंडल के साथ पूर्ण सहयोग किया, उसकी जितनी ही सराहना की जाए कम है। परिस्थिति का समुचित अध्ययन एवं उसके अनुसार व्यवहार इनका ऐसा विशेष गुण था जिससे ब्रिटेन के महान वैधानिक शासकों में इनकी गणना की गई।