जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था। ये जायस (जिला रायबरेली, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे, इसलिये जायसी कहलाते हैं। 'मलिक' उनकी उपाधि थी जो संभवत: उनके कुल में पहले से चली आ रही थी। हिंदी के अवधी क्षेत्र में पठानों के शासनकाल में इसलामी संस्कृति के कई अच्छे केंद्र बन गऐ थे जिनमें से एक जायस भी था। यहाँ पर चिश्ती संप्रदाय के सूफियों की एक शाखा स्थापित थी, जिसमें कई प्रसिद्ध संत हुए। इसी शाखा से जायसी का भी संबंध था।
इस अवधी क्षेत्र के सूफियों ने अवधी बोली में अनेक प्रेमाख्यान लिखे हैं। इनमें से सबसे प्रथम मुल्ला दाऊद आते हैं जिन्होंने सं. १४३६ में 'लोरकहा' नामक लोरिक चंदा की प्रेमकहानी लिखी जो 'चंदायन' के नाम से प्रसिद्ध है। सं. १५६० में कुतुबन ने 'मृगावती' नाम की प्रेम कहानी लिखी और तदनंतर सं. १५९७ में जायसी ने 'पदमावत' नाम की प्रेमकहानी इसी परंपरा में लिखी। इन प्रेमकहानियों में प्रेम की साधना का उपदेश और चित्रण किया गया है।
जायसी का जन्म जायस में हुआ माना जाता है, और अब भी वहाँ उनके मकान के खंडहर बताए जाते हैं। अपनी रचनाओं में भी जायसी ने जायस को अपना स्थान (निवासस्थान) कहा है। उनके माता-पिता के संबंध में कुछ ज्ञात नहीं है। संभवत: इनकी थोड़ी अवस्था में ही उनका स्वर्गवास हो गया था। किसी समय इन्हें कदाचित भयंकर चेचक निकली थी, जिसके परिणाम स्वरूप इनकी बाँई आँख जाती रही थी और बायाँ कान भी बेकार हो गया था। कहा जाता है, ये कृषि करते थे और उसी से जीवन निर्वाह करते थे। इन्होंने कदाचित् विवाह भी किया था और इनकी संतानें भी हुई थीं जो पीछे जाती रहीं।
जायसी की तिथियाँ विवाद का विषय बनी हुई हैं। जायसी की मानी जानेवाली एक रचना 'आखिरी कलाम' में उन्होंने कहा है, 'भा औतार मोर नौ सदी। तीस बरिष ऊपर कवि वदी, (छंद ४) और उसी रचना में अन्यत्र उन्होंने कहाँ है, 'नौ सै बरस छतीस जो भए, तब एहि कथा क आखर कहे' (छंद १३)। इन दोनों उल्लेखों में स्पष्ट वैषम्य है, और यही कारण है कि जायसी की जन्मतिथि के बारे में विवाद चल रहा है। इसी रचना में उन्होंने जन्म के कुछ बाद एक भयंकर भूचाल के आने का उललेख किया है (छंद ४)। 'बाबरनामा' के अनुसार जो भयंकर भूचाल आया था, संभवत: उसी का उल्लेख जायसी ने भी किया है। इनकी मृत्युतिथि भी अज्ञात है। कहा जाता है कि दीर्घ आयु पाकर ये परलोक सिधारे थे।
जायसी की रचनाएँ एक दर्जन से भी अधिक बताई जाती हैं, किंतु अभी तक आधी दर्जन रचनाएँ ही प्राप्त हुई हैं। ये हैं आखिरी कलाम, अखरावट, पदमावत, महरी बाईसी, चित्ररेख और मसलानामा। इनमें से आखिरी कलाम की रचना, जैसा ऊपर बताया जा चुका है, उन्होंने ९३६ हि. (सं. १५८६) में की थी और पदमावत की ९४७ हि. (सं. १५९७) में। शेष रचनाओं की तिथियाँ अज्ञात हैं। पद्मावत के अतिरिक्त शेष रचनाओं की प्रामाणिकता भी सुनिश्चित नहीं है।
आखिरी कलाम में कयामत के अनंतर होनेवाले अंतिम निर्णय की चर्चा की गई है। 'अखरावट' में वर्णमाला के अक्षरों को क्रम से लेकर सूफी सिद्धांतों का उपदेश किया गया है। पद्मावत में चित्तौर के राजा रतनसेन और सिंहल की पद्मिनी (पद्मावती) की प्रेमकथा है। (इसके सम्बन्ध में विस्तार से इसके स्वतंत्र शीर्षक के अंतर्गत देखिए)। 'मह बाईसी' में कहारों के गीतों की शैली में २२ गीत हैं जिनमें आध्यात्मिक उपदेश हैं। 'चित्ररेखा' में सावित्री सत्यवान के प्रसिद्ध पौराणिक आख्यान के ढंग का एक सती का आख्यान है जिसके साथ विवाह हो 'मसलानामा' में अवधी क्षेत्र की कुछ कहावतें हैं जिनका प्रयोग आध्यात्मिक उपदेश देने के लिये चतुष्पदियों और दोहों में किया गया है। ये सभी रचनाएँ अवधी में है।
सं.ग्रं. ¾ आचार्य रामचंद्र शुक्ल (सं.) : जायसी ग्रंथावली;। कल्मे, मुस्तफा : मलिक मुहम्मद जायसी। (माता प्रसाद गुप्त)