जाबाल जाबाल शब्द का अर्थ 'जबाला' का अपतय भी हो सकता है, 'जाबालि' का अपत्य भी। इन दोनों से संबंधित कुल या वंश भी जाबाल पदवाच्य होता है। पुराणों में वास्कलि वास्कल, अगस्त्य अगस्ति आदि पर्यायवाची शबद हैं, अत: कहीं कहीं जाबालि को भी यदि जाबाल कहा गया है तो कोई विस्मय की बात नहीं। जाबाल के द्वारा प्रोक्त वैदिक शाखा भी 'जाबाल' ही होगी, जिनके लिये निम्नांकित 'जाबाल' पद प्रयुक्त होता है।

सत्यकाम जाबाल ¾ यह जबाला (स्त्री) के पुत्र थे। छांदोग्य उपनिषद् में हारिद्रमत गौतम से इनकी विद्याप्राप्ति की कथा वर्णित है (४.४)। बृहदारण्यक (६.३.१२) में भी सत्यकाम जाबाल की चर्चा है।

जाबाल शाखा ¾ शुक्ल यजुर्वेद की यह शाखा अब अप्राप्य है। शुक्लयजुर्वेद प्रवर्तक याज्ञवल्क्य का एक जाबाल नाम का शिष्य था, जिससे यह शाखा प्रवर्तित हुई थी। चरणव्यूह में भी शुक्लयजुर्वेद के १५ भेदों में 'जाबाल' भी है। इस शाखा क उपनिषद् आज भी मिलता है (वैदिक व्ाङ्मय का इतिहास, भाग १, पृ. २६५-२६८)!

जाबाल कल्प, जाबाल गृह्मसूत्र तथा जाबाल धर्मसूत्र भी प्रसिद्ध हैं। जाबाल एक गोत्रनाम भी है। (रामशंकर भट्टाचार्य)