जाफर खाँ उम्दतुल्मुल्क यह सादिक खाँ मीरबख्शो के पुत्र थे। बचपन से ही सम्राट जहाँगीर की कृपादृष्टि इनपर रही और निरंतर उन्नति करने का अवसर इन्हें मिला। बीच में कुछ कारणवश इन्हें शाही सम्मान से वंचित रहना पड़ा, किंतु शीघ्र ही पुन: इन्होंने अपनी पूर्वस्थिति प्राप्त कर ली। ये पंजाब प्रांत के सूबेदार नियुक्त हुए। एक वर्ष के बाद खलीतुल्ला खाँ के स्थान पर ये मीरबख्शी नियुक्त हुए। दो तीन वर्ष बाद ये दिल्ली के सूबेदार नियुक्त हुए। एक वर्ष इस पद पर रहकर यह ठट्ठा के अध्यक्ष बनाए गए। ६-७ वर्ष तक ठट्ठा की अध्यक्षता के बाद मुअज्ज़म खाँ के पदमुक्त होने पर ये शासन के प्रधान वजीर बनाए गए।
औरंगजेब और दाराशिकोह के मध्य हुए संघर्ष में इन्होंने औरंगजेब का साथ देने की बुद्धिमानी दिखलाई जिसके पुरस्कारस्वरूप औरंगजेब ने इन्हें मालवा का सूबेदार नियुक्त किया और सर्वोच्च मंसब प्रदान किया। सन् १०७९ हिजरी में औरंगजेब ने इन्हें प्रधान मंत्री बना दिया। सन् १८०१ हिजरी में बीमारी से ये मर गए।
सम्राट् औरंगजेब इनका बहुत संमान करते थे। ये विवेकपूर्ण और जनहितैश्षी व्यक्ति थे। सम्राट ने इनके संबंधियों को अच्छे पद और पुरस्कार देकर सम्मानित किया।